राष्ट्रीय कृमि मुक्ति (डी-वर्मिंग) दिवस 8 फरवरी को

जिले के साढ़े आठ लाख बच्चे खाएंगे एल्बेन्डाजोल गोली
बीकानेर, 6 फरवरी। बच्चों में कुपोषण की रोकथाम, शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा 8 फरवरी को राष्ट्रीय कृमि मुक्ति (डीवर्मिंग) दिवस मनाया जाएगा। कार्यक्रम के तहत 1 वर्ष से लेकर 19 वर्ष तक के बच्चों व किशोरों को आंगनबाडी केन्द्रांे, सरकारी-निजी विद्यालयों व मदरसों में पेट के कीड़े मारने की दवा ‘एलबेण्डाजोल’ गोली निःशुल्क खिलाई जाएगी। इसके बाद 15 फरवरी को माॅप अप दिवस मनाया जाएगा। इस दिन 8 फरवरी को छूटे हुए बच्चों को एलबेंडाजोल गोली खिलाई जायेगी।
इस संबंध में मंगलवार को स्वास्थ्य भवन सभागार में प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गई। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. देवेन्द्र चैधरी ने बताया कि जिले में लगभग साढ़े 8 लाख बच्चों को डी-वर्मिंग गोली खिलाने का लक्ष्य निर्धारित है। आंगनबाड़ी केन्द्रों में 1 से 2 वर्ष तक के बच्चे को ऐल्बेण्डाजोल 400 एमजी की आधी गोली को दो चम्मच के बीच में रखकर चूरा करके स्वच्छ पीने के पानी में घोलकर पिलाई जाएगी व 2 से 6 साल के बच्चे को 1 गोली चबाकर खाने को दी जाएगी। जो बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, उन्हें भी आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से दवा खिलाई जाएगी। अभियान में शिक्षा विभाग तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। इस आरसीएचओ डाॅ. रमेश गुप्ता, जिला आई.ई.सी. समन्वयक मालकोश आचार्य व पीसीपीएनडीटी समन्वयक महेंद्र सिंह चारण उपस्थित रहे।
पूर्णतया सुरक्षित है दवा
कार्यक्रम के नोडल अधिकारी एवं आरसीएचओ डाॅ. रमेश गुप्ता ने बताया कि यह दवा पूर्ण सुरक्षित है। जो बच्चे स्वस्थ दिखें उन्हें भी ये खिलाई जानी हैं क्योंकि कृमि संक्रमण का प्रभाव कई बार बहुत वर्षों बाद स्पष्ट दिखाई देता है। दवा से पेट के कीड़े मरते हैं, इसलिए कुछ बच्चों में जी मिचलाना, उल्टी या पेट दर्द जैसे सामान्य छुट-पुट लक्षण हो सकते हैं लेकिन ये सामान्य व अस्थाई हैं। सामान्य बीमार बच्चों को भी दवा दी जा सकती है। मिर्गी के दौरे आने वाले बच्चों को ये दवाई नहीं खिलाई जायेगी।
कृमि संक्रमण के दुष्परिणाम
सीएमएचओ डाॅ. चैधरी ने बताया कि शरीर में कृमि संक्रमण से शरीर और दिमाग का सम्पूर्ण विकास नहीं होता है और कुपोषण और खून की कमी होने से हमेशा थकावट लगती रहती है। भूख ना लगना, बैचैनी, पेट में दर्द, उल्टी-दस्त व वजन में कमी आने जैसी समस्याएँ हो जाती हैं। बच्चों में सीखने की क्षमता में कमी और भविष्य में कार्यक्षमता में कमी आ सकती है।
कृमि संक्रमण चक्र
डाॅ. रमेश गुप्ता ने बताया कि एक संक्रमित व्यक्ति की शौच में कृमि के अंडे होते हैं जोकि मिट्टी में विकसित हो जाते हंै। अन्य व्यक्ति संक्रमित भोजन से गंदे हाथों से या फिर त्वचा के लार्वा के संपर्क में आने से संक्रमित हो जाते हैं। एक संक्रमित व्यक्ति में लार्वा बड़े कृमि में विकसित हो जाता है और इस व्यक्ति की आंत में रहता है। जो पोषण व्यक्ति भोजन से प्राप्त करता है, उसका बड़ा हिस्सा कृमि अपना भोजन बना लेता है जिससे व्यक्ति कुपोषण का शिकार हो जाता है। बच्चों में आमतौर पर राउंड कृमि, व्हिप कृमि व हुक कृमि पाए जाते हैं।
बचाव के लिए यह करें
आई.ई.सी. समन्वयक मालकोश आचार्य ने बताया कि कृमि संकमण से बचाव के लिये खुली जगह में शौच नहीं करना चाहिए, खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ धोना चाहिए और फलों और सब्जियों को खाने पहले पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए । नाखून साफ व छोटे रहें, साफ पानी पिएँ, खाना ढक कर रखें और नंगे पाँव बाहर ना खेलें, जूते पहन कर रखें।
क्या कहते हैं आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में करीब 22 करोड़ बच्चों के कृमि ग्रस्त होने की संभावना रहती है। बच्चों में यह संक्रमण अस्वच्छता, अस्वच्छ वातावरण, नंगे पैर एवं संक्रमित मिट्टी के संपर्क में आने से होता है। इसी कृमि संक्रमण से बच्चों में एनिमिया व कुपोषण होता है, जिसके कारण उनके शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
एक दिन पहले होगा जिला स्तरीय शुभारम्भ
राज्य सरकार के निर्देशानुसार कार्यक्रम का जिला स्तरीय शुभारम्भ एक दिन पूर्व बुधवार 7 फरवरी को किया जाएगा। राजकीय महारानी बालिका सी.सै. स्कूल में एल्बेंडाजोल गोली के फायदे बताकर शत प्रतिशत बच्चों को गोली खिलाने को प्रेरित किया जाएगा।

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