राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की समीक्षा बैठक आयोजित
**********
बीकानेर। जन्मजात विकृतियों और अन्य बाल रोगों के खिलाफ चल रहे महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की जिला स्तरीय समीक्षा बैठक शुक्रवार को स्वास्थ्य भवन सभागार में आयोजित हुई। बैठक में 2 माह के लिए कुपोषण के खिलाफ विशेष अभियान चलाने की रणनीति बनाई गई। आरबीएसके नोडल अधिकारी आरसीएचओ डॉ. रमेश गुप्ता ने एक-एक दल द्वारा किए गए कार्यों का सूक्षमता से मूल्यांकन किया। उन्होंने सभी आयुष चिकित्सकों से नियत समय में सभी आंगनवाड़ी केन्द्रों, विद्यालयों व मदरसों में बच्चों की स्क्रीनिंग पूर्ण करने के निर्देश दिए। उन्होंने अधिकाधिक बच्चों को लाभ दिलाने के लिए प्रत्येक रेफरल केस को आवश्यकतानुसार उच्चतर चिकित्सा संस्थान तक लेजाने के लिए बेहतर फोलो अप के निर्देश दिए। डीपीएम सुशील कुमार ने आंगनवाड़ी केन्द्रों, विद्यालयों व मदरसों की संख्या का आंकड़ा सम्बंधित विभागों से मिलान करने व लक्ष्यों को संशोधित करवाने के निर्देश दिए। एडीएनओ डॉ. मनुश्री सिंह व डीईआईसी प्रबंधक योगेश पंवार ने दैनिक स्क्रीनिंग और रेफरल केसों के फॉलोअप व सर्जरी की रिपोर्ट प्रस्तुत की। आईईसी समन्वयक मालकोश आचार्य ने दैनिक स्क्रीनिंग गतिविधियों व सफलता की कहानियों को आमजन तक ले जाने की बात रखी ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को आरबीएसके का लाभ मिल सके।
बैठक में साइकोलोजिस्ट सोनू गोदारा, ऑडियोमेट्रिक असिस्टेंट राजेन्द्र खदाव व सामाजिक कार्यकर्ता आशुराम सियाग सहित सभी 14 दलों के आयुष चिकित्सक व फार्मासिस्ट उपस्थित रहे।
2 माह कुपोषण के खिलाफ विशेष अभियान
डॉ. रमेश गुप्ता ने बताया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक नवीन जैन के निर्देशानुसार कुपोषण नियंत्रण आरबीएसके के सबसे महत्वपूर्ण व नियमित कार्यों में से है और 2 माह पूरे राजस्थान में कुपोषण के खिलाफ विशेष निर्णायक लड़ाई लड़ी जा रही है जिसमे आरबीएसके दल बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। प्रत्येक आँगनबाडी पर जाकर 6 माह से 5 वर्ष तक के बच्चों में कुपोषण की जाँचकर पीड़ित बच्चों को कुपोषण उपचार केंद्र पर रैफर रहे हैं। कमोबेश अभियान की प्रगति भी परिलक्षित होने लगी है। डॉ. गुप्ता ने कुपोषण के खिलाफ चल रहे सीमेम कार्यक्रम की जानकारी भी साझा की। डीपीएम सुशील कुमार ने कहा कि बाल रोगों के पीछे सबसे बड़े कारण एनीमिया व कुपोषण हैं, इन्हें टारगेट किए बिना राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का निहित उद्देश्य पूर्ण नहीं हो सकता। इसलिए सभी आरबीएसके दल अपने आंगनवाड़ी व विद्यालय भ्रमण के दौरान स्क्रीनिंग के साथ विफ्स व कुपोषण उपचार जैसे कार्यक्रमों की प्रभावी मोनिटरिंग करें।
क्या है कुपोषण ?
एडीएनओ डॉ. मनुश्री सिंह ने बताया कि कुपोषण के मायने होते हैं आयु और शरीर के अनुरूप पर्याप्त शारीरिक व मानसिक विकास न होना। जन्म से लेकर 5 वर्ष की आयु तक के बच्चों को भोजन के जरिये पर्याप्त पोषण आहार न मिलने, पेट के कृमि व अन्य बीमारियाँ के कारण उनमें कुपोषण की समस्या जन्म ले लेती है। इसके परिणाम स्वरूप बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का हास होता है और छोटी-छोटी बीमारियां उनकी मृत्यु का कारण बन जाती हैं। कुपोषण एक ऐस चक्र है जिसके चंगुल में बच्चे अपनी मां के गर्भ में ही फंस सकते हैं। अगर गर्भवती को पोषण ना मिले तो संतान पर भी असर स्वाभाविक है। कुपोषण जाँच के कई तरीके है लेकिन सबसे आसान है एमयूएसी टेप से बच्चें की भुजा का नाप लेना अगर माप 11.5 सेमी से कम हो तो वह बच्चा अति कुपोषित की श्रेणी में आता है। यह टैप हर आशा सहयोगिनी के पास भी मोजूद रहता है।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
बीकानेर