प्राकृत के लिए डॉ. सागरमल को राष्ट्रपति सम्मान

उदयपुर: 16 अगस्त 2018।
वरिष्ठ जैनविद्या मनीषी प्रो. सागरमलजी जैन को प्राकृत भाषा का वर्ष 2017 का राष्ट्रपति सम्मान प्रदान किया जाएगा। यह घोषणा 15 अगस्त 2018 को भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में की गई। यह सम्मान साठ और इससे अधिक आयु वाले मनीषियों को प्रदान किया जाता है। इस सम्मान के अन्तर्गत भारत के राष्ट्रपति महोदय प्रषस्ति-पत्र, अंगवस्त्र और पचास हजार रुपये का मानधन प्रदान करते हैं। सम्मान प्राप्तकर्ता को यह मानधन प्रतिवर्ष आजीवन मिलता है।
‘पुष्करवाणी’ के अनुसार 86 वर्षीय डॉ. सागरमलजी श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन परम्परा के संभवतः प्रथम विद्वान हैं, जिन्हें इस विषेष सम्मान से नवाजा जाएगा। निष्पक्ष लेखन के लिए विख्यात डॉ. सागरमलजी ने अपने गहन/व्यापक अध्ययन और अनुसंधान से जैनविद्या और प्राकृत भाषा को लेकर उत्पन्न की गई अनेक भ्रांतियों का सटीक निवारण किया है।
प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर के संस्थापक निदेषक डॉ. जैन अठारह वर्षों तक पार्ष्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के निदेषक रहे। जैनविद्या, प्राकृत भाषा और साहित्य के अनन्य उपासक डॉ. जैन द्वारा लिखित और सम्पादित लगभग दो सौ पुस्तकें प्रकाषित हो चुकी हैं। ‘श्रमण’ त्रैमासिक शोध पत्रिका के वर्षों तक सम्पादक रहे सागरमलजी ने विदेषों में भी जैन धर्म पर व्याख्यान दिये हैं। उन्होंने अब तक लगभग 300 साधु-साध्वियों को जैन धर्म-दर्षन का अध्यापन कराया तथा पचास से अधिक शोधार्थियों को पीएच.डी. हेतु मार्गदर्षन प्रदान किया है।
इससे पूर्व आपको गौतम गणधर पुरस्कार, आचार्य हस्ती सम्मान, आचार्य तुलसी प्राकृत पुरस्कार, आचार्य देवेन्द्र श्रुत सेवा सम्मान, आचार्य नानेष समता पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं। मध्यप्रदेष के तीन मुख्यमंत्रियों ने अलग-अलग समय पर आपका अभिनन्दन किया है।
श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ तथा स्थानकवासी समाज के सन्तों और विद्वानों ने इस उपलब्धि पर डॉ. जैन को बधाइयाँ दीं तथा उनके सुस्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन की मंगल-भावनाएँ प्रेषित कीं।

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