मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रतिपक्ष की नेता वसुंधरा राजे के बीच लंबे समय से चल रहे मनमुटाव का असर अब प्रदेश की संवैधानिक एवं प्रशासनिक संस्थाओं पर भी पड़ने लगा है। दोनों के बीच आपसी बातचीत के भी संबंध नहीं होने के कारण राजस्थान का सूचना आयोग अब बन्द हो गया है। वहीं लोकायुक्त का पद भी लंबे समय से खाली पड़ा है।
सूचना आयोग में ना तो सुनवाई हो रही है और ना ही दफ्तर समय पर खुल रहा है। इसका कारण है सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश, जिसमें सूचना आयोग में दो सदस्यों की पीठ द्वारा ही सुनवाई की बाध्यता लागू की गई है। राज्य में मुख्य सूचना आयुक्त तो है, लेकिन आयोग में दूसरा सदस्य नहीं है। दूसरे सदस्य के चयन के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रतिपक्ष की नेता की वसुंधरा राजे और विधि मंत्री शांति धारीवाल को एक साथ बैठना जरूरी है लेकिन पिछले चार साल में गहलोत और वसुंधरा राजे एक साथ बैठना तो दूर आमने-सामने तक नहीं हुए। नियमों के मुताबिक जब तक यह बैठक नहीं करेंगे दूसरे सदस्य का चयन नहीं हो सकेगा।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने दो सदस्यीय बैंच में मुख्य सूचना आयुक्त के अतिरिक्त एक वह सदस्य होना चाहिए जिसे या तो 20 साल वकालत का अनुभव हो या फिर सेवानिवृत जज हो।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त टी.श्रीनिवासन ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा कि शीघ्र ही एक अन्य सदस्य का चयन हो, तब तक वे सुनवाई बंद करते हैं। आयोग में सुनवाई तो बंद है, लेकिन अपील और शिकायत लगातार आ रही है, जिन्हें अगले साल तक की तारीख दी जा रही है। इधर एक अन्य संवैधानिक पद लोकायुक्त भी प्रदेश में लम्बे समय से नहीं है। जी.एल.गुप्ता के छह माह पूर्व सेवानिवृत होने के बाद से यह पद खाली है। नये लोकायुक्त का काम भी मुख्यमंत्री और प्रतिपक्ष की नेता को एक साथ बैठकर करना है। लोकायुक्त चयन के लिए बनी कमेटी में दोनों ही सदस्य है।
गौरतलब है कि प्रतिपक्ष में रहते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की व्यक्तिगत आलोचना की थी, वहीं वसुंधरा ने भी गहलोत को लेकर व्यक्तिगत एवं पारिवारिक हमले किए जिससे दोनों में ही नाराजगी है। दोनों ही नेता कभी विधानसभा कार्य सलाहकार समिति की बैठक में भी आमने-सामने एक साथ नहीं बैठे।