दीवाली तो आई मगर मिटटी के दीयों का बाजार सुस्त

जैसलमेर में दीपावली को लेकर कुम्हार करीगरों ने मिट्टी के दीपक बनाने का काम शुरू कर दिया है. कारीगरों का कहना है कि इस काम में ज्यादा फायदा नहीं हो पाता. लोग मिट्टी के दियों के बजाय चाइनीज लाइट्स लेना ज्यादा पसंद करते हैं. इसी के चलते मिटटी के दीयों का बाजार सुस्त हैं ,मिटटी के दियो के प्रति आमजन में जागरूकता के बाद भी मिटटी के दीयों के प्रति आमजनका आकर्षण नहीं हैं
रोशनी के पर्व दीपावली को लेकर लोगों ने अपने-अपने घरों में तैयारियां शुरू कर दी हैं. वहीं इसके दीपावली पर जलाने के लिए कुम्हार लोगों ने मिट्टी के दीये बनाने का काम शुरू कर दिया है. शहर के बलदेव नगर सहित अन्य स्थानों पर निवास करने वाले कुम्हार इन दिनों चाक पर मिट्टी के दिए बनाने में व्यस्त हैं.
कुम्हारों की मानें तो मिट्टी के भाव बढ़ने और बाजारों में चाइनीज लाइट्स की उपलब्धता के चलते मिट्टी के दीयों की बिक्री पर असर पड़ा है. धीरे-धीरे मिट्टी के दीयों की बिक्री में कमी आई है. लोगों को चाइनीज लाइट्स उनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीयों की अपेक्षा सस्ते लगते हैं.
मिट्टी के दीए बनाने वाले कुम्हार लालाराम ने बताया कि पहले बाड़मेर में 10 परिवार मिट्टी के दीए बनाने का काम करते थे. लेकिन अब बाजार में मिट्टी के दीयों की बिक्री कम होने के चलते 8 परिवारों ने काम बंद कर दिया है. अब केवल दो परिवार ही मिट्टी के दीए बना रहे हैं.
इस काम में कुम्हारों को लागत के अनुसार आमदनी नहीं हो पाती है. जिससे घर परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो जाता है. नई पीढ़ी के बच्चे अब चाक चलाना पसंद नहीं करते हैं. आने वाले दिनों में ये कारीगरी लुप्त हो सकती है. अगर सरकार द्वारा कारीगरों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिलता है, तो वह दिन दूर नहीं जब मिट्टी बर्तन की कला लुप्त हो जाएगी

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