भ्रम से ब्रह्म तक की यात्रा है प्रभु की कथा

राजस्थान पब्लिक स्कूल के सामने, सेक्टर-7 तिकोना पार्क, मुक्ता प्रसाद, बीकानेर में दिव्य ज्योति परिवार के तत्वाधान में प्रारम्भ हुई सात दिवसीय कथा में सर्व श्री आश्ुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री सुमेधा भारती जी ने कथा का व्याख्यान करते हुए कहा कि भगवान शिव ने माता सती को प्रभु श्रीराम कथा सुनाकर उन्हें प्रभु के आलौकिक रूप का वर्णन करते हुए बताया कि शिव अर्थात कल्याण-कारी, जो अपने भक्तों का सदा कल्याण करते हैं। और इसी कारण गो-स्वामी तुलसीदास जी भी रामचरित्मानस में लिखते है।

!! वन्दे बोधमय्र नित्यं शंकररुपिणम् !!

अर्थात् मैं अपने ज्ञानमय, नित्य शंकररुप गुरू की वन्दना करता हुँ। और यही एक कारण है कि जब एक साधारण इन्सान गुरु सत्ता से जुड़ता है। तो उसे गुरूदेव उसके घट में ही रूद्र-तत्व के दर्शन करवा देते हैं। क्योंकि यही गुरु का उद्ेश्य होता है। भगवान शिव के श्रृंगार मे जो अलंकार प्रयुक्त किये गये हैं वह मनुष्य को साधारण दृषि्ंट में तो भ्रमित करते हैं किन्तु वास्तव में जो इन अलंकारों के वास्तविक स्वरुप को पहचान जाता है वह भ्रमित न होकर ब्रह्म को प्राप्य हो जाता है। ओर यह आध्यात्मिक रहस्य कोई तत्व-वेता, ब्रह्म-निष्ट सत्गुरु ही उजागर कर सकता है। जिस प्रकार हम देखते है कि भगवान शिव का एक नाम रूद्र भी है, शिव का अर्थ है कल्याण-कारी जबकि रूद्र का अर्थ होता है भंयकर। ये कैसा विरोधाभास है। एक शक्ति किन्तु भाव दो। किन्तु अध्यात्म की दृष्टि से देखा जाये तो भगवान शिव यदि भयंकर हैं तो किस के लिये। क्या भक्तों कि लिये? नहीं वरन् उन लोगों के लिये जो भगवान शिव को भोला मानकर उनकी भक्ति केवल उनके भोले-भाले भक्तों को ठगने के लिये करते हैं। जैसा आज भी हम देखते हैं कि बहुत से कथा-वाचक भगवान शिव की कथा बडे अच्छे ढं़ग से श्रोताओं के समक्ष रख देते हैं। किन्तु शिव-तत्व की प्राप्ति कैसे हो इस विषय पर प्रश्न पुछने पर वे कह देते है कि यह तो असम्भव है। जबकि शिव-महापुराण में लिखा है कि एक पूर्ण तत्व-वेता गुरु के सान्निध्य में जाने से कोई भी जिज्ञासु उस तत्व को प्राप्त कर सकता है। और जो इस बात को स्वीकार नहीं करते और श्रोताओं को इस तत्व-ज्ञान के विषय में गुमराह करते हैं समाज को ठगते हैं, उन लोगों के लिए भगवान शिव रूद्र अर्थात् भयंकर है। स्वामी जी ने बताया कि शिव विवाह आत्मा व परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। जिस प्रकार श्री हरि विष्णु भगवान शिव को व श्री नारद जी माता पार्वती के विवाह के लिए प्रेरित करते है इसी प्रकार अध्यात्म की दृष्टि से एक पूर्ण सत्गुरु आत्मा व परमात्मा का मिलन करवाता है और प्रभु श्री शिव की कथा में यही एक बात अत्यधिक महत्वपूर्ण है। जब एक जिज्ञासु उस परमत्व से जुड जाता है तब प्रभु की कथा में गर्भित सभी रहस्य उसके अन्तःकरण में प्रगट हो जाते है। कार्यक्रम प्रभु की आरती के साथ सम्पन्न हुआ। आस-पास के कई गाँवों से कई श्रद्धालु इस कथा को श्रवण करने हेतु पहुंचे।

इस अवसर पर प्रोफेसर भागीरथ सिंह जी (उप-कुलपति महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय), श्री राजेश गोयल, श्री आर.़ क.े अग्रवाल, ड़ॉ सत्यनारायण जोशी, श्री विष्णु शर्मा, श्री प्रकाश नवल जी, श्री सप्रेम जोशी जी, सरदार श्री धर्मसिंह जी, सरदार श्री दलजीत सिंह जी बावा आदि प्रभु के चरणों में पावन दीप प्रज्ज्वलित करके प्रभु का आशिर्वाद ग्रहण किया।

-✍️ मोहन थानवी / देव थानवी

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