जयपुर/ राजस्थान में उच्च एवं तकनीकी षिक्षा में गुणात्मक एवं संख्यात्मक वृद्धि के लिए प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर की षिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है। षिक्षा में ओटोनोमी की जरूरत बताते हुए नियामक व्यवस्था को भी महत्त्वपूर्ण बताते हुए व्यवस्था में आ रहे तनावों को खत्म करने की चुनौती का सामना करने के लिए नीतिगत निर्णय करने की आवष्यकता बताई।
‘‘राजस्थान की उच्च षिक्षा में कोरपोरेट सेक्टर की सहभागिता’’ पर योजना भावन के सभागार में आयोजित कार्यषाला को सम्बोधित करते हुए प्रो. वी.एस. व्यास ने उक्त मत व्यक्त किया। प्रो. व्यास ने राजस्थान में उच्च षिक्षा क्षेत्र में देर से किये जा रहे प्रयासों को नवाचारों की पृष्ठभूमि में देखने की आवष्यकता बताते हुए कहा कि गुणवत्ता एवं षिक्षा के प्रसार में निजी भागीदारी बढ़ाने की प्रवृत्ति के साथ षिक्षा को सामाजिक सरोकारों से जोड़कर बढ़ाने की जरूरत है। षिक्षा को कोई व्यवसाय या उद्योग नहीं बनाना है ब्लकि व्यक्ति के जीवन को संवारने का माध्यम बनाना होगा। प्रो. व्यास ने षिक्षा को स्तर बनाये रखने के लिए नियामक व्यवस्था को जरूरी बताया।
भारतीय प्रबंधन संस्थान उदयपुर के नेतृत्व में राज्य आयोजना बोर्ड के निर्देष पर ‘‘राजस्थान में उच्च षिक्षा में कोरपोरेट सेक्टर की सहभागिता’’ पर तैयार रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर राज्य के मुख्य सचिव सी.के. मैथ्यू, आल इण्डिया टेक्निकल एजुकेषन काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. एस.एस. मन्था, सलाहकार डॉ. रेणु बापना, प्रमुख षासन सचिव-आयोजना विभाग के राकेष वर्मा, उच्च एवं तकनीकी षिक्षा के प्रमुख षासन सचिव राजीव स्वरूप, आईआईएम उदयपुर के निदेषक प्रो. जनत षाह, राज्य सरकार के सहकारिता के प्रमुख षासन सचिव विपिन चन्द्रा, प्रथम राजस्थान के ट्रस्टी प्रो. के.बी. कोठारी, रीको के पूर्व प्रबंध निदेषक राजेन्द्र भाणावत, राज्य आयोजना बोर्ड के सदस्य प्रो. अषोक बापना, डॉ. अषोक पानगडिया ने मुख्य रूप से कार्यषाला को सम्बोधित किया।
राज्य के मुख्य सचिव सी.के. मैथ्यू ने प्राथमिक एवं माध्यमिक षिक्षा में भारी-भरकम राषि खर्च करने के बावजूद षिक्षा की गुणवत्ता एवं स्तर में वांछित परिणाम सामने नहीं आने पर चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में वित्त, प्रतिभा, गुणवत्ता का समावेष जरूरी है।
सी.के. मैथ्यू ने कहा कि षिक्षा के क्षेत्र में कोरपोरेट क्षेत्र की सहभागिता के लिए ‘‘किसके लिए, क्या और कैसे’’ तीन सूत्रीय बातों का ध्यान रखना जरूरी है। उन्होंने प्रदेष में षिक्षा को बढ़ावा देने के लिए निःषुल्क अथवा रियायती दरों पर भूमि आवंटन, आयकर में छूट और अच्छे कार्यों के लिए निजी क्षेत्रों को प्रोत्साहन दिये जाने पर विचार करने का सुझाव दिया। श्री मैथ्यू ने कोरपोरेट क्षेत्र द्वारा सामाजिक सरोकारों पर व्यय किये जाने वाली राषि को उनकी प्रगति के परिप्रेक्ष्य में वार्षिक आधार पर निर्धारित करने की जरूरत बताई।
राजस्थान सरकार के योजना प्रमुख षासन सचिव राकेष वर्मा ने कहा कि उच्च्तर गुणवत्तापूर्ण षिक्षा के माध्यम से रोजगार प्रदत्त व्यवस्था जरूरी है। राकेष वर्मा ने बताया कि पिछले 10-15 वर्ष से राजस्थान में कोचिंग का जाल फैल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में कोचिंग की संभावनाओं की चर्चा करते हुए निजी क्षेत्र को सामाजिक सरोकारों एवं उद्योगों की आवष्यकता देखते हुए विस्तार करने को जरूरी बताया।
प्रारम्भ में राज्य आयोजना बोर्ड के षिक्षा से जुड़े सदस्य प्रो. अषोक बापना ने कहा कि दुनिया में भारत में सबसे बड़ा षिक्षा तंत्र है, परन्तु इसमें बालक-बालिकाओं के नामांकन का प्रतिषत कई देषों की तुलना में कम है। भारत में षिक्षा का पंजीकरण का रेषो 20 प्रतिषत है जबकि यही रेषो अमेरिका में 84 प्रतिषत, ब्रिट्रेन में 59 प्रतिषत व चीन में 28 प्रतिषत है। प्रो. बापना ने बेरोजगारी, कौषल की कमी को गम्भीर समस्या बताया।
प्रमुख षासन सचिव उच्च एवं तकनीकी षिक्षा श्री राजीव स्वरूप ने इन्जिनियरिंग और पोलिटेक्निक षिक्षा में कॉलेजों को आवंटित सीटों के खाली रहने पर चिन्ता जताई और कहा कि इन पाठ्यक्रमों के लिए षिक्षण षुल्क का भी नीतिगत निर्धारण हो। उन्होंने कहा कि षिक्षा को नैतिक एवं गुणात्मक तरीके से बढ़ाने की वजाय षिक्षा के व्यावसायिकरण को रोकने के लिए सेल्फ रेगुलेषन जरूरी है।
श्री स्वरूप ने बताया कि राज्य में इन्जिनियरिंग में 54200 सीटों की उपलब्धता के बावजूद 21300 सीटें खाली हैं। इसी तरह एमबीए में 55 प्रतिषत व पोलिटेक्निक में 46 प्रतिषत सीटें खाली हैं।
आल इण्डिया टेक्नीकल एजुकेषन काउंसिल (एआईसीटीआई) के अध्यक्ष डॉ. एस.एस. मन्था ने निजी भागीदारी की समस्याओं व षिक्षा के विस्तार पर बोलते हुए कहा कि भारत में 12वीं कक्षा पास करने के बाद 30 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं द्वारा कॉलेज की षिक्षा से वंचित होने के तथ्य की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि 12वीं कक्षा में 157 लाख बच्चों में से 79 लाख पास होते हैं। इसमें 4.5 लाख विज्ञान, 5 लाख कॉमर्स में, 10 लाख कला, 8 लाख ओपन यूनिवर्सिटी जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अधिकांष छात्र वित्तीय कारणों के कारण षिक्षा पूरी नहीं कर पाते, अधिकांष लड़कियों की षादी हो जाती है। इसके साथ ही कॉलेज, विष्वविद्यालय की क्षमता में भी कमी है।
डॉ. मन्था ने सुझाव दिया कि षिक्षा को बढ़ाने के लिए वित्तीय मॉडल विकसित किया जाना चाहिए, जिसके लिए ‘‘कोरपस फण्ड’’ स्थापित किया जा सकता है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरषिप इसके लिए जरूरी है।
डॉ. मन्था ने सुझाव दिया कि तकनीकी षिक्षा के विस्तार के लिए औद्योगिक आवष्यकताओं की मेपिंग एवं प्रारम्भिक षिक्षा में ड्राप आउट की समस्या की जांच की जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि 92 प्रतिषत तकनीकी संस्थाएं निजी क्षेत्र में है और इस तरह पूरी तकनीकी षिक्षा निजी क्षेत्र में है। उन्होंने तकनीकी षिक्षा में व्याप्त असंगतियों की चर्चा करते हुए बताया कि पूरे देष में खनन क्षेत्र से जुड़े कोर्स में 654 सीटें उपलब्ध है, 6000 सीटें आकिटेक्ट व 1.5 मिलियन इन्जिनियरिंग क्षेत्र के लिए है। पूरे देष की जनसंख्या को देखते हुए इस तरह की असंगति को दूर किये जाने की जरूरत है।
उदयपुर आईआईएम के प्रो. थॉमस जोसेफ, प्रो. विनय रमाणी, प्रो. सुमित कुमार ने राजस्थान के षिक्षा क्षेत्र में कोरपोरेट सेक्टर में उच्च षिक्षा के क्षेत्र में किये गये विस्तृत प्रतिवेदन रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए राज्य में उच्च तकनीकी षिक्षा के क्षेत्र में आ रही चुनौतियों एवं भविष्य की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की तथा प्रो. सौम्य सरकार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
-कल्याण सिंह कोठारी
मीडिया सलाहकार
मो. 9414047744
