सकारात्मक और सार्थक संदेश देने वाली विधा है लघुकथा – डॉ. अनिल शूर

जयपुर// विधा कोई भी हो किंतु साहित्य का उद्देश्य मात्र मनोरंजन करना नहीं है और ना ही मात्र मनोरंजन के लिए साहित्य लिखा जाना चाहिए। अपनी लेखन विधा के माध्यम से समाज को सार्थक संदेश देना ही एक साहित्यकार का सर्वप्रथम उद्देश्य होना चाहिए। लघुकथा छोटी विधा अवश्य है किंतु इसका फलक बहुत ही विस्तृत है। लघुकथा सकारात्मक एवं सार्थक संदेश देने वाली विधा है। डॉ. अनिल शूर आजाद ने लघुकथा शोध केन्द्र, भोपाल की दिल्ली शाखा के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन राष्ट्रीय लघुकथा संगोष्ठी में अपने महत्वपूर्ण विचार रखते हुए ये बात कही।

राष्ट्रीय स्तर की यह संगोष्ठी ऑनलाइन आयोजित की गई जिसमें देश के अनेक स्थानों से लघुकथाकारों ने भाग लिया और एक से बढ़कर एक लघुकथाओं का पाठ किया। संगोष्ठी से जुड़े श्रोताओं ने सभी लघुकथाओं को बहुत पसंद किया। डॉ. क्षमा सिसोदिया की लघुकथा ‘एक अनोख प्रणय निवेदन’ प्रेम एवं रिश्तों की नई व्याख्या प्रस्तुत करती है। कोटा की पूनम झा की लघुकथा ‘मुझे माफ कर दो पापा’ नई पीढ़ी को सार्थक संदेश देती हुई प्रतीत होती है। गुवाहाटी आसाम की लघुकथाकार कनक हरलालका की ‘ख्वाहिशें’ लघुकथा बताती है कि दुनिया में कोई सुखी नहीं है। अतः व्यक्ति को हर हाल में खुश रहना चाहिए। गौतम बुद्ध नगर की डॉ. रेणु सिंह की लघुकथा ‘एक नदी का बिछोह’ पर्यावरण विनाश की ओर सचेत करती है तो शिवपुरी मध्यप्रदेश के शेख शहजाद उस्मानी की लघुकथा ‘महागठन संकट में’ कोरोना वायरस के प्रतीक के माध्यम से एक करारा राजनीतिक व्यंग्य करती है। दिल्ली के सदानंद कवीश्वर ने अपनी लघुकथा ‘सुलाते रहो-सुखी रहो’ में बालविज्ञान के साथ नेताओं पर कटाक्ष किया है।

फरीदाबाद की डॉ.बबीता गर्ग सहर की लघुकथा ‘निश्चय’ निःसंतान दम्पत्ति की पीड़ा को ही नहीं दिखाती अपितु समस्या का उचित समाधान भी प्रस्तुत करती है। जयपुर से संगोष्ठी में शिरकत करने वाली शिवानी की बेहतरीन लघुकथा ‘हिस्सेदारी’ बच्चों द्वारा माता-पिता की अनदेखी की समस्या को न केवल इंगित करती है बल्कि समस्या का मनोविज्ञान विश्लेषण कर सुझाव भी प्रस्तुत करती है।
सोजत राजस्थान से रशीद गौरी की लघुकथा ‘प्रशिक्षण’ उस समस्या पर प्रकाश डालती है कि गरीब और अधिक गरीब तथा अमीर और अधिक अमीर होता जा रहा है। दिल्ली की पुनीता सिंह की लघुकथा ‘हाइट’ शारीरिक कमी और उसके कारण आई हीनभावना को बेहतर तरीके से दर्शाती है। गाजियाबाद की रेणुका सिंह की लघुकथा ‘नेकी कर दरिया में डाल’ एक सार्थक संदेश देती है कि हमें गरीबों का सहयोग करना चाहिए और बदलें में कुछ भी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। हरियाणा के नारनौल कस्बे से भूपेश भारती ने अपनी लघुकथा ‘सोच’ में बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं का बहुत ही सुंदर संदेश प्रस्तुत किया।

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली से डॉ. अनिल शूर आजाद और महेश्वर मध्यप्रदेश से विजय जोशी शीतांशु जी ने अपने महत्वपूर्ण विचार दिये। अपने वक्तव्य में विजय जोशी ने कहा की लघुकथा में हर शब्द का महत्व है इसलिए लघुकथाकार को बहुत ही सोच-समझ कर अपने शब्द खर्च करने और विवरण से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि लघुकथा तलवार की धार पर चलने वाली विधा है। इस अवसर पर लघुकथा शोध केन्द्र की निदेशिका श्रीमती कांता राय की भी गरिमामय उपस्थिति रही। उन्होंने कहा कि वे लघुकथा शोधकेन्द्र की अन्य शाखाएँ भी जल्द ही स्थापित करने वाली है।

संगोष्ठी के प्रारम्भ में अंजू खरबंदा ने सभी का स्वागत किया और अंत में रेणुका सिंह ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। ढाई घण्टे से भी अधिक समय तक चली इस संगोष्ठी में श्रोताओं को जोड़े रखने का कार्य सतीश खनगवाल द्वारा अपने शानदार संचालन के माध्यम से किया गया।

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