जयपुर, जून, 2021 : हर साल 19 जून को वर्ल्ड सिकल सेल डे मनाया जाता है, जिसका लक्ष्य है राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर सिकल सेल डिजीज (एससीडी) पर जागरूकता बढ़ाना। एससीडी खून का एक वंशानुगत रोग है, जो भारत में स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा बोझ है। हालाँकि देश में मौजूदा महामारी और स्वास्थ्यरक्षा अवसंरचना पर बढ़ते बोझ के कारण इसकी उपेक्षा हो रही है। जागरूकता में कमी, जांच का कम कवरेज और डाटा का अभाव, शोध और उपचार के नवाचारों को बाधित करता है। एससीडी को सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता बनाने और इसकी सही समय पर पहचान कर इसके प्रभावी नियंत्रण के लिये, एससीडी के रोगियों को बेहतर सहयोग देने और उनकी समस्याओं पर अंकुश लगाने वाली समग्र रणनीति के पहले चरण के तौर पर नवजात शिशुओं और गर्भवती महिलाओं की जाँच बढ़ाने की घोर आवश्यकता है।
आकलन के मुताबिक, भारत विश्व में सिकल सेल डिजीज के रोगियों की संख्या के मामले में दूसरे नंबर पर है। देश में एससीडी की व्यापकता उल्लेखनीय ढंग से विविधतापूर्ण है और यह मुख्यत: जनजातीय समूहों में पाया जाता है। यह रोग सबसे ज्यादा मध्य भारत पर हावी है, जिसे ‘सिकल बेल्ट’ भी कहा जाता है। यह गुजरात से लेकर ओडिशा तक फैला है और आकलन के अनुसार, छत्तीसगढ़, बिहार और उत्तर प्रदेश में इसकी सबसे ज्यादा व्यापकता है। हाल ही में, इसकी व्यापकता गैर-जनजातीय लोगों में भी देखी गई है। इसलिये सिकल सेल डिजीज को देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता के रूप में चिन्हित करने की घोर आवश्यकता है।
सुविधा से वंचित समुदायों में एससीडी की व्यापकता पर चर्चा करते हुए, एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर के सीनियर प्रोफेसर और पीडियाट्रिक हीमैटोलॉजी ऑन्कोलॉजी डिविजन के हेड, डॉ. कपिल गर्ग ने कहा कि, “अभी जयपुर या राजस्थान में सिकल सेल डिजीज की व्यापकता पर कोई सुप्रलेखित अध्ययन नहीं है; हालाँकि यह रोग राजस्थान के सिरोही, पाली, उदयपुर और डुंगरपुर के जनजातीय समुदायों के बीच ज्यादा आम है। कुछ अध्ययनों ने राजस्थान के गरासिया जनजातीय समुदाय में इस रोग की 9.2% व्यापकता बताई है। व्यवस्थित स्थानीय डाटा के अभाव के चलते शोध और नवाचार में सीमित प्रगति हुई है, और इस रोग के बोझ पर हमारी समझ भी प्रभावित हुई है।”
डॉ. कपिल गर्ग ने आगे कहा कि, “रोग का जल्दी पता लगाने, उस पर नियंत्रण करने और मनोसामाजिक समस्याएं पैदा करने वाली सामाजिक लांछन की समस्याओं को दूर करने के लिये चिकित्सकों और स्थानीय समुदाय के बीच रोग पर जागरूकता बढ़ाना पहला महत्वपूर्ण कदम है। सरकार द्वारा, खासकर जनजातीय समुदायों के बीच चलाये जाने वाले स्क्रीनिंग प्रोग्राम्स में प्रभावी आनुवांशिक और विवाह-पूर्व परामर्श भी शामिल किया जाना चाहिये। नवजात शिशु की जाँच से रोग का जल्दी पता लगाने और सही समय पर उपचार करने में मदद मिल सकती है, ताकि माता-पिता समग्र उपचार और रोग नियंत्रक समाधान लेने में अपने बच्चे का सहयोग कर सकें। इसके अलावा, सरकार के विस्तारित सहयोग के माध्यम से उन्नत उपचार समाधानों का दायरा बढ़ाना भी एससीडी के रोगियों को सहयोग देने का एक महत्वपूर्ण उपाय है।”
नेशनल अलायंस ऑफ सिकल सेल ऑर्गेनाइजेशंस (एनएएससीओ) के मेम्बर सेक्रेटरी, श्री गौतम डोंगरे सिकल सेल के 2 रोगियों के पिता हैं। उनके अनुसार, “भारत में सिकल सेल डिजीज (एससीडी) कम्युनिटी के लिये कोई पॉलिसी बनाने और क्रियान्वित करने में रोगी और उसकी देखभाल करने वालों की बात का समावेश जरूरी है। हमारा मिशन यह सुनिश्चित करना है कि भारत में सिकल सेल डिजीज से लड़ने वाला हर व्यक्ति दर्द से मुक्त जीवन जीये और उसे सभी स्वास्थ्यसेवा केन्द्रों में सही समय पर व्यापक गुणवत्तापूर्ण देखभाल और उपचार मिले।”
एससीडी का आशय लाल रक्त कणिकाओं के वंशानुगत रोगों के एक समूह से है। इसके लक्षण हैं बार-बार दुर्बल बनाने वाला दर्द, जिसे वैसो-ऑक्लुसिव क्राइसेस (वीओसी) भी कहा जाता है, और बुखार। सिकल सेल के रोगियों को होने वाले वीओसी को ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहने और अस्वस्थता से भी जोड़कर देखा जाता है। लंबी अवधि में इससे उत्पन्न होने वाली जटिलताओं में से कुछ हैं – अंगों की क्षति, किडनी का पुराना रोग और कार्यात्मक अक्षमता। इसके अलावा, एससीडी के रोगी संक्रमण, आघात, एक्युट चेस्ट सिंड्रोम, थकान और पैर में छाले के लिये भी ज्यादा संवेदनशील होते हैं। रोग की पहचान और उपचार में विलंब होने से यह समस्याएं बढ़ सकती हैं।
एससीडी ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित रहा है, इसलिये इसका पता लगाने, उपचार करने और इसके लिये नवाचार को अपनाने में प्रगति धीमी रही है। एससीडी को सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता के तौर पर चिन्हित करने के लिये एक राष्ट्रीय कार्यक्रम, देखभाल की एक व्यापक योजना और भारत के लिये उपचार के विशेष प्रोटोकॉल्स बनाने की जरूरत है, जिन्हें जमीनी स्तर पर क्षमता निर्माण से सहयोग मिले, ताकि राज्य अपनी जनसांख्यिकी की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने वाली स्थानीय योजनाएं दे सकें।
योजनाओं को आकार देने, उपचार और उन्नत थेरैपीज की बेहतर सुविधाओं की उपलब्धता और रोग को मैनेज करने की रोगियों की क्षमता बढ़ाने से उनके जीवन की गुणवत्ता उल्लेखनीय ढंग से सुधारी जा सकती है।