जेलें पश्चाताप और परिष्करण की यज्ञशालाएं हैं : प्रो बी. एम. शर्मा
जयपुर, 3 अक्टूबर । गांधी जी ने येरवडा जेल को मंदिर कहा और श्रम आधारित जीवन के कारण जेलों को आश्रम की संज्ञा दी । स्वतंत्रता संग्राम में जेलें चिंतन- मनन -सृजनात्मकता और रचनात्मकता का प्रमुख केंद्र रहीं । इन्हीं जेलों में महान साहित्य लिखा गया । सही अर्थों में जेलें पश्चाताप के साथ ही व्यक्तित्व शोधन और परिशोधन की यज्ञशालाएं हैं । ये उद्गार आरपीएससी के पूर्व अध्यक्ष एवं महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ गवर्नेंस एंड सोशल साइंसेज के नव नियुक्त निदेशक प्रोफेसर बीएम शर्मा ने राजस्थान संस्कृत अकादमी, राजस्थान सिंधी अकादमी और कला एवं संस्कृति विभाग और महानिदेशालय कारागार द्वारा गांधी सप्ताह के अंतर्गत बंदी सुधार दिवस के अवसर पर आयोजित संस्कृत एवं संस्कृति के आलोक में गांधी और जीवन बोध विषयक विशिष्ट व्याख्यान में मुख्यातिथि के रूप में व्यक्त किये ।
विशिष्ट व्याख्यान के मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर परिसर के साहित्याचार्य प्रोफेसर रमाकांत पांडेय ने कहा कि किसी भी अपराध के मूल में क्रोध और आवेश होता है और इसी से आगे असूया,द्वेष,हिंसा उत्पन्न होती है । उन्होंने कहा धन का उपार्जन और’ काम’ भी धर्म सम्मत ही होना चाहिए । काम- क्रोध -लोभ -मोह ;जो अपराध के कारक हैं,अगर व्यक्ति इन पर काबू पा ले तो वह सदैव बंधन मुक्त रहता है अर्थात कभी ‘बंदी’ नहीं बनाया जा सकता । उन्होंने कहा कि बड़े और कड़े अपराध के लिए भी धर्म में प्रायश्चित के प्रावधान हैं ।
इस अवसर पर कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ गांधीवादी विचारक धर्मवीर कटेवा ने कहा की वह काल, वह समय- चक्र महत्वपूर्ण है ;जिस क्षण में अपराध घटित- अथवा कारित हुआ । उसी काल के वशीभूत होकर भगवान राम को लंबा वनवास काटना पड़ा। यह कारावास भी उसी वनवास की तरह है; जहां से आदमी तपकर -निखर कर -सुधर कर बाहर आता है। अपराध करने वाले को सदैव यह ध्यान में होना चाहिए कि घर पर मां का आशीष, बीवी का मंगलसूत्र और बच्चों की आशाएं उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं ।
कार्यक्रम में स्वर मंगला के संपादक प्रोफेसर श्री कृष्ण शर्मा ने कहा कि गांधीजी अहिंसा रूपी साधन के माध्यम से सत्य रूपी लक्ष्य को प्राप्त करने की लोगों को प्रेरणा देते थे । सत्य ही ईश्वर है तथा ईश्वर ही सत्य का रूप है ।सही गलत का निर्णय अंतः करण करता है; अतः अंतःकरण को साक्षी मानकर ही काम करना चाहिए । कार्यक्रम में शांति एवं अहिंसा प्रकोष्ठ के समन्वयक श्री मनीष कुमार शर्मा, विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन एवं विषय प्रवर्तन केंद्रीय कारागार,जयपुर के अधीक्षक राकेश कुमार शर्मा ने किया। इस अवसर पर उपस्थित अतिथियों एवं बंदियों ने ‘गांधी वृद्ध सेवा संकल्प पत्र’ का सामूहिक वाचन किया । राष्ट्रगान से कार्यक्रम का समापन किया गया ।