विशेषज्ञों ने वर्ल्ड क्रॉनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया डे पर इस बीमारी के उचित प्रबंधन और उपचार का पालन करने की जरूरत पर जोर दिया

जयपुर, सितंबर 2022 : दुनिया भर में 22 सितंबर को वर्ल्ड क्रॉनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया डे मनाया गया, इस अवसर पर मेडिकल साइंस के विशेषज्ञों ने बोनमैरो और ब्लड कैंसर के तुलनात्‍मक रूप से असाधारण प्रकार पर लोगों को जागरूक करने की जरूरत पर जोर दिया। क्रॉनिक मॉइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल) प्रति वर्ष 1 लाख मरीजों में 0.4 या 3.9 फीसदी मरीजों में पाया जाता है। यह समय के साथ बढ़ता है और पुरुष मरीजों में ज्यादा मिलता है। यह एक पुरानी बीमारी है, जिसमें रोगियों को आजीवन इलाज करना चाहिए। विशेषज्ञों ने इस स्थिति के उचित प्रबंधन और इलाज को जारी रखने की जरूरत पर जोर दिया।
क्रोमोसोम में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के कारण सीएमएल होता है, जिससे बीमार सफेद रक्त कोशिकाओं का निर्माण बड़ी संख्या में होता है। यह स्वस्थ रक्त कोशिकाएं से ज्‍यादा हो जाती हैं और बोन मेरो को नुकसान पहुंचता है।
जयपुर में सवाई मान सिंह (एसएमएस) अस्पताल में मेडिकल ओन्कोलॉजी के एचओडी डॉ. संदीप जसुजा ने कहा, “जब तक स्थिति बहुत गंभीर नहीं होती, तब तक मरीजों में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखाई देता। यह देखा गया है कि इसमें से अधिकांश मरीज 50 साल उससे ज्यादा उम्र के हैं। रोग के प्रारंभिक लक्षणों में लगातार पेट भरे होने का एहसास होता है। अविश्वनीय ढंग से वजन कम होता है। स्प्लीन (प्‍लीहा) के असाधारण आकार और थकान इसके लक्षण हैं। हमने देखा है कि अगर सीएमएल की पहचान जल्दी हो जाती है तो 80 से 90 फीसदी रोग का बढ़ना रुक जाता है। मरीजों को यह समझना चाहिए कि यह संक्रामक रोग नहीं है औऱ आधुनिक इलाज के विकल्पों को अपनाकर मरीज सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।”
उन्होंने कहा, “श्वेत रक्त कोशिकाओं, लाल रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट्स की संख्या और उनकी विशेषताओं को समझने के लिए पेरिफेरल ब्लड स्‍मीयर टेस्ट के साथ कंप्लीट ब्लड काउंट ब्लड टेस्ट किया जा सकता है। प्रभावी इलाज लगातार कराने और इलाज के साथ परहेज का भी ध्यान रखने से सीएमएल की गंभीर स्थिति को उभरने से रोक सकते हैं।”
राजीव गांधी कैंसर इस्टिट्यूट में हेमटो ऑन्कोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. रयाज अहमद ने कहा, “आमतौर पर सीएमएल मरीजों में तब तक कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, जब तक स्थिति गंभीर नहीं हो जाती। हालांकि सीएमएल होने का पता ब्लड टेस्ट से लगाया जा सकता है, जिसमें असाधरण सफेद रंग की कोशिकाएं काफी बढ़ जाती हैं। यह इस स्थिति का संकेत देने वाला प्रमुख चिन्ह है। ब्लड टेस्ट के बाद शारीरिक जांच होती है और बोन मैरो टेस्ट होता है। कुछ मरीजों में अन्य लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं, जैसे थकान, भूख न लगना, वजन कम होना और कहीं से भी आसानी से खून निकलना होता है। सीएमएल के लक्षण धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं। केवल थोड़ी संख्या में मरीजों में यह गंभीर ल्यूकेमिया में बदल जाते हैं, जिसके लक्षण काफी गंभीर होते हैं। मरीजों को ध्यान रखना चाहिए कि सीएमएल कोई जानलेवा स्थिति नहीं है। यदि उपचार के आधुनिक नये विकल्‍पों के साथ बेहतर इलाज किया जाए तो इसमें रोजमर्रा की जिंदगी बेहतर ढंग से जी सकते हैं।”
डॉ. अहमद ने बताया, “सीएमएल में नियमित और लगातर इलाज की जरूरत होती है। सीएमएल को स्थिर इलाज से काबू में रखा जा सकता है। इलाज के प्रोटोकॉल का पालन न करने से स्थिति गंभीर हो इसलिए मरीजों को बेहतर इलाज की सलाह दी जाती है। टायरोसाइन किनसे इनहिबिटर्स (टीकेआई) सीएमएल के बहुत से रोगियों के लिए पसंदीदा प्रारंभिक इलाज है। दो-तिहाई से ज्यादा मरीज जीवन भर इस बीमारी पर पूरा कंट्रोल रखते हैं।”
सीएमएल स्टेम सेल में जेनेटिक बदलाव (आनुवांशिक उत्‍परिवर्तन) के कारण होता है। इसके होने का सटीक और पुख्ता कारण अभी पता नहीं चल पाया है। यह स्थिति आनुवांशिक नहीं है। भविष्य की पीढ़ियों में माता-पिता से यह बीमारी नहीं आ सकती है।

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