जयपुर । हर किसी को अपने व्यस्त जीवन से थोड़ा समय चाहिए। वह लगातार अपने व्यस्त जीवन से बोर हो जाते है और थोड़ा वक़्त अपने साथियों के साथ बिताना चाहते है ।एपीसी के साहित्यिक कार्यक्रम तो होते ही रहते हैं पर एपीसी की कोशिश रहती है कि साल की शुरुआत एक ऐसे कार्यक्रम से हो जहाँ हम सब साहित्यकार का चोला घर छोड़कर आएँ और इंसान बनकर मिलें-जुलें। अपने भीतर के बच्चे को बाहर आने का सुअवसर दें। दिखावे और वैमनस्य की दुनिया में उस बचपने को बचाए रखना बहुत ज़रूरी है जिसे देखकर किसी शायर ने कहा था कि ‘मेरे भीतर एक बच्चा है जो बड़ों की दुनिया देखकर बाहर आने से डरता है… इस तरह के प्रोग्राम हमारी स्मृतियों में हमेशा जीवित रहते हैं।
बस इसी तर्ज़ पर एपीसी की पिकनिक आज जेकेके में सम्पन्न हुई। भागती हुई ज़िन्दगी को कुछ पल आराम दिया। मिल-बैठ कर ज़रा बदलते वक्त की थाह ली। आज को जिया, कल की फ़िक्र छोड कर। हँसे-हँसाए कुछ ऐसा किया जो बहुत समय से न किया था, खुश होने के लिए…नये-पुराने साथियों से मिलना हुआ, एक दूसरे को जानने का अवसर मिला, अंताक्षरी हुई और कुछ देर सितोलिया भी खेला। खूब खाए-पिए और आखिर में एक दूसरे की रचनाएँ भी सुनी।
अनुपम तिवाड़ी आलू के परांठे और ताज़ा डला अचार लेकर आई थीं। श्रुति छाया ने ब्रेड और सूजी के कटलेट से दाद पाई। भाग्यम दीदी नमकीन और मीठे साँख बनाकर लाए थे। डॉ शिप्रा नाथानी ने सर्दी के पौष्टिक लड्डूओं का भोग लगाया। शिवानी ने सूजी की मसालेदार इडली और मूंगफली से सबके लंच की छुट्टी करवा दी। आहत ने घर से लाई अदरक की चाय पिलाकर सबको राहत पहुँचाई और आखिर में अरविंद भट्ट ने जल सेवा का मेवा पाया। साथियों के साथ हंसना-खेलना आजीवन याद रहता है। यही वो मीठे पल होते हैं जो लौटकर नहीं आते। लेकिन हमारी कोशिश रहेगी की इस तरह के प्रोग्राम पूर्व में भी करते रहे है और भविष्य में भी करते रहेंगे। जिसका हर सदस्यों को बेसब्री से इंतजार रहेगा ।
इस अवसर पर शिवानी जयपुर, गुरगुल, कविता माथुर, अरविंद भट्ट, डॉ क्षिप्रा नत्थानी, श्याम जी आहत, मीनाक्षी माथुर, श्रुतिछाया, उषा नांगिया, एस भाग्यम शर्मा, अनुपमा तिवाड़ी, प्रीति जैन, शत्रुंजय कुमार सिंह, तारकेश्वरी ‘सुधि’, सन्तोष “सन्त”, टीना शर्मा ‘माधवी’, अनु शर्मा, भरत राजगुरु, विजय पॉटर, डॉ बजरंग सोनी, सागर सैन, प्रज्ञा श्रीवास्तव ‘प्रज्ञान्जलि’ उपस्थित थे ।