राष्ट्रीय समसामयिक लघु चित्रण में विषयों पर आधारित वर्तमान परिवेश का अदभुद चित्रण करते देश के चित्रकार।
यह कार्यशाला कलावृत्त के संस्थापक कलागुरु डॉ. सुमहेन्द्र की स्मृति में उनके जन्मदिवस पर पिछले चार वर्षों से आयोजित हो रही है, इस बार 5वां संस्करण है।
जस्मीन कौर ने “आत्मचेतना की यात्रा” के भाव का चित्रण आरम्भ किया है। जस्मीन ने पंजाबी विश्विद्यालय के लघु चित्रण विभाग ने विधिवत शिक्षा ली है। कलावृत्त के संस्थापक डॉ. सुमहेन्द्र जी ने वर्ष 2004 में यहां लघु चित्रण का विशेष विभाग आरम्भ किया था तब पहले सत्र में इन्होंने लघु चित्रण में अपनी डिग्री ली, तभी से अपनी विशेष शैली के साथ चित्रण करती है।
प्रियंका बावेजा मुख्यरूप से ज्वैलरी डिजाइनिंग से जुड़ी कलाकार है। लेकिन लघु चित्रण में भी अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की, वर्तमान घटनाओं और सामाजिक कुरीतियों को बहुत प्रभावी ढंग से चित्रित करके। पांच वर्ष पहले कलावृत्त के परंपरागत चित्रण कला को पुनः स्थापित करने के लिए आयोजित कार्यशालाओं से जुड़ने के बाद अब निरंतर इस विधा में नव सृजन को प्राथमिकता देती है।
सावित्री शर्मा, जयपुर की आत्मशिक्षित चित्रकार है और इस बार इन्होंने “सामाजिक न्याय” से संबंधित चित्र आरम्भ किया है। अधिकतर इनके चित्र विषय प्रधान होते है जो वर्तमान की घटनाओं को परंपरागत चित्रण शैलियों में चित्रित करती है। मूलतः जयपुर और बूंदी शैली इनकी प्रेरणा स्त्रोत है। पिछले 20 वर्षों से लगातार अलग अलग विधाओं में चित्रण कार्य करने के साथ ही नई पीढ़ी के चित्रकारों को भी सीखती है।
हेमलता लौहार, उदयपुर की मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर से ड्राइंग एंड पेंटिंग में मास्टर्स, एम.ए., नेट, और पी.एच.डी. की है। फ्रीलांसिंग के साथ-साथ अध्यापन कार्य भी करती है। माता-पिता से प्रत्येक कार्य को कुशलता से करने की प्रेरणा मिलती रही, जिसने स्वत: मेरे भीतर के कलाकार को बढ़ने का अवसर दिया। स्वतंत्र चित्रकार के रूप में सजकता व समर्पण के साथ समसामयिक विषयों पर बनाए चित्रों से भाव प्रदर्शित का प्रयास करती है। स्वनिर्मित कलाकार है, विगत दो दशक से भी अधिक समय से अध्ययन, अध्यापन, चित्रकला एवं रचनात्मक लेखन से जुड़ी हुई है।
इन्हें परंपरागत और समसामयिक चित्रकार प्रभावित करते रहे हैं। उनके कार्यों की भिन्न-भिन्न विशेषताएं मुझे लुभाती हैं, परंतु कलाविद डॉ. शैल चोयल सर व डॉ. सुमहेन्द्र शर्मा सर के चित्रों से विशेष लगाव है। मैं प्रकृति और मानवीय संबंधों में सदैव अपने चित्रों के विषय खोजती हूं। तेल रंग और ऐक्रेलिक दोनों का प्रयोग अपने चित्रों में करना पसंद है। यदि समय कम हो तो एक्रेलिक और यदि पर्याप्त समय हो तो तेल रंग का चुनाव करती है।
हर्ष शर्मा, जयपुर के परंपरागत चित्रण के पारिवारिक बैकग्राउंड से है, इनके पिता और दादा भी चित्रकार है। हर्ष अभी राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट के मूर्तिकला के प्रथम वर्ष के विद्यार्थी है। लेकिन लघु चित्रण में इनकी विशेष रुचि है और उस चित्रण में विशेषता और स्तरीय चित्रण के लिए निरंतर प्रयासरत है।
पूजा मेहता, चित्तौड़गढ़ से आत्मशिक्षित चित्रकार है, पिछले 10 वर्षों से अलग अलग विधाओं में कार्य कर रही है। आप सेंट्रल एकेडमी स्कूल में कला शिक्षिका भी है जहां नव पीढ़ी को चित्रण की गहराई से अवगत करवाती है पूर्ण समर्पित होकर।
ममता देवड़ा, अजमेर की चित्रकार है, इन्होंने अपनी पेंटिंग में “खजुराहो की मूर्तियों की प्राचीनता और उनके भावनात्मक अभिव्यक्ति” को लघु चित्रण शैली में जीवंत करने का प्रयास है। जीवन, प्रेम और आत्मीय संबंधों का गहरा एवं प्रतीकात्मक अर्थ उभरकर हमारे सामने आता है। यक़ीनन ममता के सृजित चित्र को प्राचीन और आधुनिकता के उत्कृष्ट संयोजन को दर्शक नई दृष्टि से देखेंगे।
श्रद्धा सक्सेना, लखनऊ की चित्रकार है बी.वी.ए. (गोल्ड मेडल) तथा एम.वी.ए. इनके चित्र का शीर्षक है “कुर्सी की चाह” वे बताती है कि बचपन से उनकी इच्छा थी कि उन्हें जीवन में अच्छा पद मिले, कहीं न कहीं उनकी ये इच्छा उनके सृजन में भी आ जाती है। कार्यशैली लिए बन रहा चित्र भी उनकी इसी इच्छा को अपने तरीके से चित्रित कर रही है जिसमें उन्होंने मनुष्यों से तुलना करते हुए ये दिखने का प्रयास किया है कि एक कुर्सी को पाने के लिए न जाने कितने लोग प्रयास कर रहे है, परंतु प्राप्त उसी को होगी जो उसके लिए कठिन परिश्रम करेगा। श्रद्धा, साल्वाडोर डाली के चित्रों से बहुत प्रभावित है।
कलावृत्त के अध्यक्ष संदीप सुमहेन्द्र ने बताया कि चित्रकारों के आधुनिक और अमूर्त चित्रण के प्रति बढ़ते लगाव के कारण धीरे-धीरे हमारी लघु चित्रण की विश्व प्रसिद्ध शैलियां लुप्त सी होने लगी जिसका मुख्य कारण पुराने बने चित्रों की नकल (कॉपी) अत्याधिक मात्रा में बनने और आमजन में इसकी लोकप्रिय और लगाव में कमी ने आग में घी डालने जैसा काम किया। हर स्तर पर चीजें बदल रही थीं नई नई तकनीकें आ रही थी लेकिन परंपरागत लघु चित्रण में किसी ने उसकी और ध्यान नहीं दिया। डॉ. सुमहेन्द्र ने इस विराम को तोड़ते हुए सर्वप्रथम 1960 में अपनी प्रिय चित्रण शैली “किशनगढ़ शैली” में नए प्रयोग करने आरंभ किए और एक चित्र जिसमें उन्होंने बनिए ठनी को आधुनिक परिवेश में चित्रित किया जहां शीशे के सामने टाई-सूट में बनी ठनी लिपस्टिक लगते हुए चित्रित किया। अपने समय में उन्होंने हर विधा में अपने प्रयोग जारी रखते हुए अपने चित्र सृजित किए है।
संदीप सुमहेन्द्र
98294 37374