नए अध्ययन ने बताया, सर्दियों में सबसे ज्यादा बढ़ता है प्रदूषण
जयपुर, फरवरी 2025: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कानपुर ने यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के वैज्ञानिकों के साथ किए एक नए अध्ययन में बताया है कि जयपुर में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं और गाड़ियों से होने वाला उत्सर्जन है। यह रिसर्च ‘एटमॉस्फेरिक एनवायरनमेंट’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है। इस अध्ययन में सस्ते और आधुनिक सेंसर का इस्तेमाल किया गया, जिससे हवा की गुणवत्ता की सही जानकारी मिली।
मार्च 2022 से फरवरी 2023 के बीच हुए इस रिसर्च में जयपुर के 30 अलग-अलग जगहों पर प्रदूषण की जांच की गई, जिनमें औद्योगिक, व्यावसायिक, रिहायशी और ट्रैफिक वाले इलाके शामिल थे। नतीजे बताते हैं कि साल के अलग-अलग मौसम में PM2.5 प्रदूषण के स्तर में बड़ा बदलाव आता है। बरसात के मौसम में यह सबसे कम (25.64 ± 10.55 µg/m³) रहता है, जबकि सर्दियों में सबसे ज्यादा (83.07 ± 44.65 µg/m³) हो जाता है। इसकी वजह मौसम में बदलाव, प्रदूषण के स्रोत और दूर-दराज से आने वाले प्रदूषित कण हैं।
मुख्य निष्कर्ष: सभी मौसमों में सबसे ज्यादा PM2.5 प्रदूषण औद्योगिक इलाकों में पाया गया, इसके बाद सबसे ज्यादा ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में रहा। हवा की रफ्तार प्रदूषण फैलाने में अहम भूमिका निभाती है—धीमी हवा होने पर प्रदूषक कण ज्यादा इकट्ठा होते हैं। बरसात के मौसम में बारिश की वजह से हवा में मौजूद प्रदूषक कण कम हो जाते हैं, जबकि बरसात के बाद और सर्दियों में ये कण ज्यादा जमा होते हैं। सुबह 6:00 से 9:00 बजे के बीच PM2.5 का स्तर सबसे ज्यादा पाया गया, जिसका कारण मानवीय गतिविधियां और मौसम संबंधी बदलाव हैं।
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक, नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की विशेषज्ञ समिति के सदस्य और आईआईटी कानपुर के कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के डीन प्रोफेसर सचिदानंद त्रिपाठी ने कहा, “हमारे एक साल लंबे अध्ययन में यह सामने आया कि जयपुर में PM2.5 स्तर में मौसम के अनुसार बड़ा बदलाव होता है। सर्दियों में इसका स्तर सबसे ज्यादा रहता है, जबकि बरसात के मौसम में यह सबसे कम होता है। इस बदलाव की मुख्य वजह मौसम से जुड़े कारक हैं, जैसे कि हवा की गति, जो प्रदूषकों को फैलाने में मदद करती है, और बारिश, जो हवा से प्रदूषक कणों को हटाने में मददगार होती है।
उन्होंने आगे बताया कि इस अध्ययन के तहत शहर के अलग-अलग इलाकों में कम लागत वाले सेंसर लगाकर उच्च गुणवत्ता वाला डेटा इकट्ठा किया गया, जिससे पता चला कि औद्योगिक गतिविधियां और वाहन प्रदूषण, शहरी वायु प्रदूषण के बड़े कारण हैं। प्रोफेसर त्रिपाठी ने कहा कि यह अध्ययन नीतिगत सुधारों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसके जरिए ऐसे ठोस कदम उठाए जा सकते हैं, जो प्रदूषण के स्रोतों को कम करने और लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करें।
अध्ययन में यह सामने आया है कि जयपुर में वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह औद्योगिक और यातायात से जुड़ी गतिविधियां हैं। प्रोफेसर त्रिपाठी ने बताया, “हमारे निष्कर्ष दिखाते हैं कि औद्योगिक इलाकों में PM2.5 का स्तर लगातार ज्यादा रहा है, जिसकी मुख्य वजह वाहन आवागमन, फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं और ईंधन का जलना है। इसके अलावा, ट्रैफिक जाम और सड़कों से उड़ने वाली धूल भी प्रदूषण बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं।”
यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम से इस अध्ययन के सह-लेखक डॉ. रवि साहू ने कहा, “इस अध्ययन के निष्कर्ष यह बताते हैं कि जयपुर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने की जरूरत है। हमारी यह रिसर्च नीति-निर्माताओं को कारगर समाधान प्रदान करती है। कम लागत वाले सेंसर का इस्तेमाल डेटा की कमी को दूर कर सकता है और वास्तविक समय में वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर प्रभावी नीतियां लागू करने में मदद कर सकता है।”
यह अध्ययन ATMAN ( एडवांस टेक्नोलॉजी फॉर मॉनिटरिंग एयर क्वालिटि इंडिकेटर्स) पहल के तहत किया गया, जिसे एरिक्सन इंडिया और ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रोपीज़ का समर्थन प्राप्त है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने रेस्पायरर लिविंग साइंसेज़ द्वारा प्रदान किए गए कम लागत वाले सेंसर को निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन पर स्थापित करने में मदद की है ताकि डेटा का सही तरीके से सत्यापन किया जा सके।
रेस्पायरर लिविंग साइंसेज़ के सीईओ और संस्थापक रोनक सूत्राइया ने कहा, “कम लागत वाले सेंसर नेटवर्क के जरिए वायु गुणवत्ता की बेहतर निगरानी की जा सकती है, जिससे बड़े क्षेत्र में डेटा एकत्र कर नीतिगत फैसले लिए जा सकें। औद्योगिक इलाकों में कड़े उत्सर्जन नियंत्रण और बेहतर ट्रैफिक प्रबंधन नीतियां प्रदूषण कम करने के लिए बेहद जरूरी हैं। इसके अलावा, हरियाली बढ़ाने और शहरी योजना को प्रभावी तरीके से लागू करने से प्रदूषण वाले हॉटस्पॉट्स को कम किया जा सकता है और समग्र वायु गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।”
यह अध्ययन शहरी वायु प्रदूषण की निगरानी के क्षेत्र में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह दिखाता है कि कम लागत वाली तकनीकें पर्यावरणीय प्रशासन को बेहतर बनाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।