जयपुर । आसमान छूते भावों के कारण एक तरफ जहां प्याज रसोई से गायब हो रहा है वहीं मांग नहीं होने से लहसुन के भाव औंधे मुंह गिर गए।
राजस्थान की कई थोक मंडियों में किसानों को लहसुन पचास पैसे से दो रुपए प्रति किलो में भी कोई खरीदने को तैयार नहीं है। पिछले वर्ष इसी फरवरी माह में 50-60 रुपए प्रति किलो बिकने वाले लहसुन का 40 किलो का कट्टा मात्र 20 रुपए में बिकने को तैयार है। लहसुन के भावों में गिरावट ने पिछले दो दशक का रिकार्ड तोड़ दिया है। 1990 में फरवरी माह में लहसुन दो रुपए प्रति किलो बिका था।
राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि यह सही है कि प्रदेश के कई जिलों में लहसुन की प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने से किसानों को लहसुन के भाव नहीं मिल रहे हैं।
पिछले कई वर्षो की तुलना में लहसुन का रकबा और उपज बढ़ी है। पिछले एक दशक में फरवरी माह में लहसुन के भाव 50-200 रुपए प्रति किलो तक रहे हैं। इसके चलते किसानों ने लहसुन की बम्पर बुवाई कर स्टॉक कर लिया। अब मांग नहीं होने से मंडियों के व्यापारी किसानों के लहसुन को प्लेटफार्मो पर नहीं उतार रहे हैं।
एक तरफ जहां किसानों को लहसुन के भाव नहीं मिल रहे, वहीं दूसरी तरफ रिकॉर्ड तेजी के कारण प्याज राजस्थान में आम आदमी की पहुंच से दूर हो गया। प्रदेश में प्याज के खुदरा भाव 30 से 35 रुपए प्रति किलो हो गए है,थोक में ये भाव 20 से 25 रुपए प्रति किलो है।
अब 21 फरवरी से शुरू होने वाले राजस्थान विधानसभा सत्र में प्याज और लहसुन का मुद्दा उठने की उम्मीद है। सभी राजनीतिक दलों के विधायक इस मामले में किसानों के साथ है। विधायक चाहते है कि सरकार किसानों को कोई पैकेज दे।