चार साल की उम्र में ठान लिया था बनेगी डॉक्टर…आखिर पा ही ली मंजिल

doctorपाल गांव में 17 साल पहले महिला डॉक्टर को प्रैक्टिस करते देख 4 साल की बच्ची ने ठान लिया कि वह डॉक्टर बनेगी, कड़े संघर्ष और समाज से लड़कर पाई मंजिल
जोधपुर.‘अरे..रेखा! वो ही नटखट जो मेरा स्टेथेस्कोप लेकर खुद की धड़कनें गिनने लग जाती थी..वो ही हो तुम!’ ‘हां, डॉक्टर मैडम..। मैं वो ही रेखा हूं। आपकी प्रेरणा से अब वास्तव में धड़कनें गिन सकती हूं’ ‘अरे रेखा तुम तो सच में डॉक्टर बन गई हो।’ और डॉ. सुनीता मालवीय डॉ. रेखा को गले लगा लेती हैं। इसके साथ ही शुरू होता पुरानी यादें ताजा करने का सिलसिला।
रेखा बताती हैं संघर्ष से डॉक्टर बनने तक की कहानी। लौट आते हैं- सत्रह वर्ष पुराने वे दिन, जब पाल गांव में डॉ. सुनीता मालवीय ने डिस्पेंसरी खोली थी। और रेखा डिस्पेंसरी में सिर्फ इसलिए आती थी कि वहां काम करने वाले अपने घर वालों की मदद कर सके। काम पर आते-आते चार साल की रेखा को डॉक्टर बनने का जुनून सवार हो गया। वह अपने मां-बाबूजी को खेती के कार्य में संघर्ष करते देखती थी।
दूसरी तरफ डॉ. सुनीता की जिंदगी देख वह ऐसा ही बनने का सोचती। एक दिन उसने डॉ. सुनीता से पूछ ही लिया कि क्या वह डॉक्टर बन सकती है? इस पर उनका जवाब हां में सुनकर रेखा के मन में धुन सवार हो गई। किस तरह उसने स्कूल में दाखिला लिया और क्लास-दर-क्लास पास करते हुए सीनियर सैकंडरी की, यह अलग ही किस्सा है। इसके बाद बारी आई आरपीएमटी की। चार प्रयास के बाद पांचवें प्रयास में उनका आरपीएमटी में सलेक्शन हो गया।
समाज से लड़ी, बाल-विवाह टाला 
डॉ. रेखा मेघवाल के संघर्ष की कहानी यही पर खत्म नहीं होती। डॉक्टर बनने के प्रयास में उसे और उसके परिवार को समाज से भी खासा संघर्ष करना पड़ा। रेखा बताती हैं- वह दौर ही ऐसा था..। समाज में बेटी को पढ़ाना गलत समझा जाता था। बाल-विवाह अनिवार्य शर्त था। उसके परिवार को बाल-विवाह नहीं करने पर समाज से बाहर निकाल दिया गया। सदमे में पिता चल बसे, लेकिन मां ने संघर्ष में साथ दिया। कैसे भी हो, बाल-विवाह रुकवाया।
पांचवें प्रयास में मिली सफलता  
अग्रवाल जमना देवी स्कूल से सीनियर सैकंडरी की। वर्ष 2004 में पहली बार आरपीएमटी दिया, लेकिन चयन नहीं हुआ। दो बार आरपीएमटी में फेल होने के बाद तीसरी बार आयुर्वेद में चयन हुआ। रेख कहती हैं, मुझे तो एमबीबीएस करना था। चौथी बार प्रवेश परीक्षा दी तो होम्योपैथी में चयन हुआ। लगातार नाकाम रहने से वे डिप्रेशन में आ गईं, लेकिन 2007 में जब आरपीएमटी दिया तो सफलता मिली। फिर उदयपुर के गीतांजलि मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो गया।
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