जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सुझाव दिया है कि राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं मुख्य न्यायधीशों के सम्मेंलन को न्यायालयों की समस्याओं के समाधान और संख्यात्मक सुधारों तक ही सीमित नहीं रखा जाए बल्कि इसके दायरे को बढ़ाकर इसमें न्याय प्रशासन के सुधार के सभी मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए।
गहलोत ने रविवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा उद्घाटित राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं मुख्य न्यायधीशों के सम्मेंलन में भाग लेते हुए यह बात कही।
बैठक में केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अश्वनी कुमार, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अल्तमश कबीर, राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अमिताव रॉय और राज्य के विधि सचिव प्रकाश गुप्ता ने भी भाग लिया।
गहलोत ने सुझाव दिया कि सम्मेंलन के एजेंडा बिन्दुओं में विधि एवं न्याय से संबंधित गुणात्मक सुधारों के मुद्दों जैसे कानूनी प्रक्रियाओं के लघुकरण, कानूनों का सरलीकरण और संहिताकरण, निर्वचन के सिद्धान्तों के मानकीकरण, न्याय प्रशासन से सशक्त मानव संसाधनों के गुणवत्तापूर्ण विकास और उपलब्ध संसाधनों के अधिकतम उपयोग के उपायों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार के सहयोग और राजस्थान उच्च न्यायालय के सतत् प्रयासों से प्रदेश में आमजन को उनके निकटवर्ती क्षेत्रा में ही त्वरित न्याय उपलब्ध कराने की दिशा में हम तेजी से आगे बढ़े हैं और आशा है कि राज्य में लम्बित प्रकरणों की संख्या को कम करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में हम सफल होगें।
गहलोत ने बताया कि राजस्थान में अब तक पंचायत समिति स्तर पर 45 ग्राम न्यायालय खोले गये हैं और इन न्यायालयों ने अपना कार्य भी शुरू कर दिया है। इससे ‘‘न्याय आपके द्वार‘‘ की अवधारणा मूर्त रूप लेने लगी है तथा अब जनता को पंचायत समिति स्तर पर ही न्याय उपलब्ध होने लगा है। इससे लोगांे को अब छोटे-छोटे मामलांे के लिए जिला मुख्यालयों पर जाने की आवश्यकता नहीं रही है। साथ ही इन न्यायालयों का कार्य पूर्णतः प्रभावी रूप से क्रियान्वित होने से नियमित न्यायालयों के कार्यभार में भी काफी कमी आयेगी और विचाराधीन मामलांे का तेजी से निपटारा संभव हो सकेगा।
उन्होंने बताया कि यह न्यायालय अभी ‘‘पायलट-प्रोजेक्ट‘‘ के रूप में शुरू किये गये हैं और आशानुरूप परिणाम मिलने पर राज्य सरकार सभी पंचायत समिति मुख्यालयों तक इनका विस्तार करने पर भी विचार करेगी।
मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रदेश के न्यायालयों के कम्प्यूटरराईजेशन के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय को अब तक 9 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी जा चुकी है और राज्य के अधीनस्थ न्यायालयों में विचाराधीन मामलों की डॉटा एन्ट्री का काम भी पूरा हो चुका है। उच्च न्यायालय की जोधपुर स्थित मुख्यपीठ़ और जयपुर पीठ़ के न्यायिक मामलों की सूचनाएं ‘‘नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड‘‘ पर उपलब्ध करवा दी गई हैं। इसी प्रकार जयपुर जिला न्यायालय के न्यायिक मामलों की सूचनाएं भी जॉच और परीक्षण के लिए भेजी जा चुकी हैं। इसके अलावा अन्य जिला न्यायालयों की सूचनाएं भी तैयार करवा ली गई है जिनकी जॉच प्रक्रिया पूर्ण होते ही ‘‘नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड‘‘ पर उपलब्ध करवा दी जायेेंगी।
श्री गहलोत ने बताया कि राजस्थान उच्च न्यायालय की मुख्यपीठ और जयपुर पीठ के बीच ‘‘वीडियों कॉन्फ्रेसिंग‘‘ की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा चुकी है। साथ ही राष्ट्रीय न्यायालय प्रबंध के अन्तर्गत राज्य में 37 न्यायालय प्रबंधकांे के पद सृजित किये गये हैं। प्रदेश में न्यायिक प्रकरणों को तेजी से निपटाने के लिए ग्राम न्यायालयों के साथ ही 242 नये न्यायालय खोले जा चुके हैं इनमें 43 फास्ट ट्रेक न्यायालय के स्थान पर नियमित न्यायालय, 22 पारिवारिक न्यायालय, 10 मोटर दुर्घटना अधीकरण, अनूसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण संबधी मामलों के लिए आठ, भ्रष्टाचार निवारण संबंधी मामलों के लिए सात, महिला अत्याचार निवारण संबधी मामलांे के लिए पॉच और सीबीआई के दो विशेष न्यायालय सम्मिलित हैं।
उन्होंने बताया कि राज्य में केन्द्र की सहायता से 83 फ्रास्ट ट्रेक न्यायालय कार्यरत थे। मार्च, 2011 के बाद केन्द्रीय सहायता राशि बन्द होने के बावजूद विचाराधीन मामलों को निपटाने के लिए राज्य सरकार के खर्चे पर 43 फास्ट ट्रेक न्यायालयों को जारी रखते हुए इन्हें बाद में नियमित न्यायालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। मुख्यमंत्राी ने बताया कि राज्य के सभी जिला न्यायाधीशों को मानवाधिकार न्यायालयों और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत विशेष न्यायालय की शक्तियॉ प्रदान की गयी हैं।
श्री गहलोत ने बताया कि न्यायिक अकादमी, जोधपुर के भवन निर्माण के लिए मंजूर किये गये 900 लाख रुपए को शामिल करते हुए प्रदेश में अधीनस्थ न्यायालयों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और आधारभूत संरचना विकास के लिए करीब 11,041 लाख रुपए न्यायालय भवनों और 484.23 लाख रुपए न्यायिक आवासों के लिए मंजूर किये गये हैं। इसी प्रकार राज्य के 238 न्यायालय भवनों, 297 न्यायिक आवासों के निर्माण के लिए क्रमशः 12842.12 लाख और 6271.64 लाख रुपए के प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भिजवाये गये हैं।
उन्होंने बताया कि प्रदेश के अधीनस्थ न्यायालय में सिविल जज कनिष्ठ खण्ड की 2011 की 114 रिक्तियों के लिए मुख्य परीक्षा करवा ली गई हैं और वर्ष 2013 के 187 रिक्त पदों पर भर्ती की कार्यवाही विचाराधीन है। राज्य के सभी 33 जिलों में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कार्यरत हैं तथा 12 जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में पूर्णकालिक सचिव के रूप में न्यायिक अधिकारियों के पद सृजित कर दिये गये हैं। शेष जिलों में सचिव का कार्य सिविल जज सीनियर डिवीजन स्तर के न्यायिक अधिकारी कर रहे हैं।
श्री गहलोत ने बताया कि राज्य के सभी जिलों और उच्च न्यायालय में नियमित रूप से लोक-अदालत कार्यरत हैं। राज्य के 370 अधिवक्ताओं, 278 न्यायिक अधिकारियों और 7 अन्य व्यक्तियों को अब तक मध्यस्थता का प्रशिक्षण दिलवाया गया है।
उन्होंने इस बात की खुशी व्यक्त की कि राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का यह सम्मेंलन अब परम्परा का रूप ले चुका है। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्राी, केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्राी और भारत के मुख्य न्यायाधिपति के प्रति आभार व्यक्त करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि सरकार के तीनों अंग विधायिका, कार्यपालिका एवं न्याय पालिका अपनी-अपनी भूमिका बखूबी निभाते हुए अब तक के अपने अनुभवों के आधार पर न्याय प्रशासन में सुधार तथा इसे और बेहतर बनाने के लिए अपने कारगर सुझाव देंगे।
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