चलो हम मान लेते है की नीतीश को हरा कर वहां एक दूसरे मोदी, बिहारी सुशील मोदी को मुख्य मंत्री बनाया जायगा , तो फिर बिहार का शासन तंत्र चलाने के लिए अमेरिका से या इंग्लैंड से लोगो को लाया जाएगा शासन तंत्र को सुधरने के लिए या फिर भगवा ब्रिगेड के भरोसे शासन चलाया जाएगा। हम समझ नहीं पा रहे हैं की कौन से जंगल राज से मुक्ति के बात कर रहे है ? क्या यह उस जंगल राज की बात कर रहे है जिस जंगल और गांवों के संकरी गलियों से साइकिलों पर सवार होकर गाँव की छोरिया जब शहर और कस्बों की सड़को पर निकलती है और गाँव और जंगल के भेद को समाप्त करके पुरुषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाने को आतुर बिहार की नौजवान पीढ़ी अपनी बिहारी पहचान को कायम करना चाहती है जिससे उनको सुदूर पंजाब और दिल्ली में खाना बदोशों जैसा जीवन न काटना पड़े.
अब यह बात अलग है की बिहारी मोदी को अपने सुशासन बाबू का “ड्रीम प्रोजेक्ट ” “साईकिल ” द्वारा गाव ग्रामों में हुई क्रांति से इतना भय क्यों सत्ता रहा है की पुरे बिहार को ही जंगल राज का दर्जा देने से नहीं चूक रहे है अभी १७ महीने पहले उसी सत्ता में साझीदार होकर मलाई दार विभागों की मलाई चाट रहे थे / इस लिए हमार पहला सवाल है की क्या भगवा ब्रिगेड छात्रों को साइकिल से वंचित करके उन्हें घर में बैठाना चाहते है। कथित जंगल राज से जिस लालू यादव को जोड़ कर पुरे बिहार को बदनाम करने का षड्यंत्र आजकल मिडिया में खूब चर्चा का विषय है और होना भी चाहिए। / क्योंकि भय निर्मूल भी नहीं है इसी लिए शाह को लालू फोबिया हो गया है और अपने कार्यकर्ताओं से कहते है सा …ल लो। . जम कर प्रचार करो नहीं तो लालू का जंगल राज आ जाएगा ; क्योंकि उन्हें मालूम है लालू यादव वही व्यक्ति है जिसने ९० के दसक में भगवा बिर्गेड का राम रथ जिस पर सवार होकर वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी १५ राज्यों से होकर जब पटना बिहार पहुंचे तो इन्ही लालू यादव जो उस समय बिहार के मुख्य मंत्री थे उस रथ को आगे बढ़ने से रोक ही नहीं दिया था बल्कि आडवाणी को गिरफ्तार भी कर लिया था ? अब यही भय इन पार्टी वालो चलो को सत्ता रहा है की अगर लालू सत्ता के करीब आ गए तो क्या होगा क्या एक बार नरेंद्र मोदी को भी यह भय सत्ता रहा है की लालू उनको भी गिरफ्तार करवा सकता है।
असल में कहानी यह है की दिल्ली में होते हुए भी ये गुजराती जोड़ी दिल्ली फतह नहीं कर सकी क्योंकि लोक सभा चुनाव में किये गए वायदे से मुकरना और झूंठे सपने दिखाना और बात है शासन चलाना और बात है। क्योंकि दिल्ली में अरविन्द इनके बढ़ते हुए अश्वमेधयज्ञ के घोड़े या यूँ कहें की हिंदी बैल्ट में एकछत्र राज्य के सपने को तोड़ चूका था इस लिए यह दूसरे हिंदी राज्य बिहार को शाम दाम और दंड भेद से किसी भी प्रकार से अपने कब्जे में करना चाहते है 😕
चारा घोटाला और कथित जंगल राज्य को जिस लालू यादव के साथ जोड़ा जा रहा है उसके लिए लालू यदा को जनता द्वारा और न्यायालय के द्वारा पूर्ण रूप से सजा मिल चुकी है और वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किये जा चुके है और चुनाव भी नहीं लड़ रहे है. इसलिए वर्तमान बिहार को जिसको देखना हो वह वहां जाकर स्वयं देखे कि किस प्रकार वहां की छात्राएं साइकिलों पर सवार होकर जब सड़कों पर निकलती है तो नितीश कुमार की जय जयकार होती है और उन साइकिल सवार लड़कियों के उत्साह को कोई बिहारी ही महसूर कर सकता है क्योंकि अबसे १० वर्ष पहले तक यही लड़कियां खर से बहार ही नहीं निकलती थी।
क्योंकि नफरत की राजनीती और साम्प्रदायिकता के बल पर राज्य तो किया जा सकता है दिल नहीं जीते जा सकते / क्योंकि दिल्ली की कहानी कोई पुरानी नहीं है ? जब दोनो गुजराती दिल्ली पहुँच कर भी दिल्ली वालों का दिल नहीं जीत सके तो पटना और बिहार तो बहुत दूर की बात है। इसलिए की बिहार की धरती महत्मा बुद्ध की धरती है जिसने पूरी दुनिया को अहिंसा का सन्देश दिया और पूरी दुनिया से महात्मा बुध के अनुयायी महात्मा बुद्ध की जिस भूमि को शीश नावाने के लिए पुरे वर्ष ही आते है और सत्य अंहिंसा का पालन भी करते है। यहां आकर हिंसक जानवर भी सुधर जाते है ऐसा कहा जाता है। तो फिर ऐसी हालत में हिंसक गुजराती जोड़ी किस प्रकार से इस धरती पर सफलता पा सकती है यह एक प्रशन बनता ही है ? जिसका परिणाम १२ नवम्बर को ही मालुम चल सकता है की जंगल राज दिल्ली में है या फिर बिहार में है जंगल राज ?
एस पी सिंह, मेरठ