आंखों देखा तबाही का मंजर: धिक्कार उन्हें, जो मुर्दो की जेबें टटोल रहे

flood-in-uttrakhand-everything-is-destroyदेहरादून I  बारह घंटे हमने खुले आसमान के नीचे एक टीले पर गुजारे। हाड़ कंपकंपाने वाली ठंड थी। दो वृद्धों ने देखते ही देखते दम तोड़ दिया। आर्मी मदद को पहुंची तब जाकर हम नीचे आ पाए। देखते क्या हैं, हर ओर लाशें बिछी हुई हैं। कुछ लोग (धिक्कारते हुए) लाशों की जेब और सामान टटोल रहे हैं। उस आखिरी रात आठ हजार के आसपास लोग केदारनाथ में रहे होंगे, लेकिन अब बिल्कुल श्मशान जैसा नजारा है। चार हजार घोड़े और घोड़े वाले थे, वह कहां गए, कुछ नहीं मालूम।
यह कहना है गोंडिया (महाराष्ट्र) निवासी सीताराम सुखटिया का, जो बुधवार दोपहर हेलीकॉप्टर से सहस्त्रधारा हेलीपैड पहुंचे। ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे, इसलिए साथ के दो लोग सहारा देकर हमारी तरफ लाए। दो घूंट पानी पीने के बाद मुरझायी आवाज में बोले, 63 साल की उम्र हो गई, लेकिन मैंने ऐसी तबाही नहीं देखी। वहां अब कुछ नहीं बचा है। सब-कुछ तबाह हो गया। गाड़ी-घोड़ा, दुकानें, घर, होटल सभी। मिलिट्री वालों ने बहुत सपोर्ट किया, तभी हम भी आपके बीच हैं। सरकार के भरोसे रहते तो श्मशान ही पहुंचना था।
बकौल सीताराम, ‘पता नहीं मेरी बूढ़ी टांगों में इतनी ताकत कहां से आ गई। धराली से हम सब पैदल ही हर्षिल पहुंचे। वहां मिलिट्री वालों ने बहुत सेवा की। यह जीवन उन्हीं का दिया है। सरकार की तरफ से तो हलक तर करने को पानी का इंतजाम भी नहीं है। मैंने खुद नदी में सैकड़ों सिलेंडर, मवेशी व इंसान बहते हुए देखे। कम से कम 15 हजार लोगों का जीवन लील गई यह तबाही।’ हम तो भगवान से यही दुआ करते हैं कि सभी यात्री सकुशल लौट आएं।
अच्छा फोन रखते हैं, पानी तेज हो गया है
देहरादून। ‘हम केदारनाथ में राजस्थान धर्मशाला में हैं। यह काफी सेफ जगह पर है, लेकिन बाहर निकल पाना मुमकिन नहीं है। अच्छा, फोन रखते हैं, पानी तेज हो गया है।’ यह आखिरी कॉल है, जो 17 जून की सुबह 6:30 बजे केदारनाथ से प्रदीप राठी के परिजनों की उनके लिए आई थी। इसके बाद अब तक कोई संपर्क नहीं हुआ। कहां और किस हाल में हैं, कुछ पता नहीं।
प्रदीप राठी अपने भाई प्रमोद राठी व चार अन्य साथियों के साथ 12 दिन पहले केदारनाथ यात्र पर गए अपने 19 परिजनों की तलाश में संभलपुर (उड़ीसा) से बुधवार को राजधानी पहुंचे। इनमें से दो सदस्य कंट्रोल रूम में बैठे हैं और दो ऋषिकेश गए हुए हैं। प्रदीप व प्रमोद सुबह से हेलीपैड की खाक छान रहे हैं कि कुछ तो सूचना मिले। उन्हें देखकर ऐसा लगता, मानो अभी रो पड़ेंगे। लेकिन, जैसे-तैसे खुद को संयत कर रहे हैं। लिहाजा, हमारी उनसे मुलाकात भी बेहद भावुकता-भरी है। उन्हें देखकर लगता है कि बुधवार से कुछ खाया नहीं, सो होंठ सूखे हुए हैं। आखें बता रही हैं कि अकेले में बहुत रोये हैं। बस, भगवान से दुआ मांग रहे हैं, लेकिन कोई हेलीकॉप्टर उतरता है तो दौड़ पड़ते हैं उसकी ओर।
रुंदे कंठ से प्रमोद राठी बताते हैं, सुना है आपदा प्रशासन कोई लिस्ट जारी कर रहा है। 225 लोगों की जो पहली लिस्ट निकली है उसमें हमारे किसी भी परिजन का नाम नहीं है। अब बता रहे हैं कि 450 की और जारी होने वाली है। उसी का इंतजार कर रहे हैं। पता होता कि परिजन कहां हैं, तो खुद ही निकल पड़ते। (सोचनीय मुद्रा में) पर किसके सहारे जाएं, सरकार को कोई परवाह नहीं और अफसर सीधे मुंह जवाब नहीं दे रहे।

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