आत्मा परमात्मा को जानकर विशाल होती है-संत ज्ञानचंद

केकड़ी। सद्गुरू के बिना इस भवसागर से कोई तर नहीं सकता हैं,इंसान जैसी प्रीत कुटुम्ब से रखता हैं वैसी ही प्रीत परम पिता परमात्मा से रखे तो ही जीवन में निखार ला सकता हैं। ये उद्गार संत ज्ञानचंद ने अजमेर रोड़ पर स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन में आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किये।
मण्डल प्रवक्ता रामचन्द्र टहलानी ने बताया कि संत ने कहा कि जिस प्रकार तिल में तेल हैं,चकमक में आग हैं,उसी तरह प्रभु भी तुम सभी में हैं जाग सको तो जागो,जिस प्रकार कस्तूरी मृघ की नाभी में होती हैं और वह दर-दर भटकता रहता हैं उसी प्रकार जीव भी परमात्मा को वनों में ढूंढता हैं,परमात्मा का कण-कण में समाये हुए हैं इसका ज्ञान केवल सद्गुरू के द्वारा ही संभव हैं। जिस प्रकार पेड़ की जड़ में पानी देने पर पानी पेड़ के हर जगह पहुंच जाता हैं उसी प्रकार जब आत्मा परमात्मा को जान लेती हैं तो वह विशालता को धारण करती हैं।
सत्संग के दौरान दादन देवी टहलानी,गोपाल,गोरधन,नमन टहलानी, प्रवीण रंगवानी,रामचन्द्र बैरवा,विकास टहलानी,आशा रंगवानी,भरत भगतानी,काजल,तेजनारायण सहित अन्य ने गीत विचार प्रस्तुत किये। संचालन ब्रांचमुखी अशोक रंगवानी ने किया तथा संत का स्वागत मण्डल प्रवक्ता रामचन्द्र टहलानी ने किया।
-पीयूष राठी

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