भक्त नरसी मेहता और नानी बाई का मायरा कथा

हर मानव में अच्छाइयां भी भरी है और बुराइयां भी
गृहस्थ में रहकर भी जो संत स्वरुप रहता है, उसकी सदैव दीवाली
प्रभुनाम की महिमा सुनने से जीव मात्र का कल्याण

DSC_0228अजमेर। सुविख्यात संत एवं कथावाचक श्री पुष्करदास जी महाराज ने कहा कि हर मानव में अच्छाइयां भी भरी है और बुराइयां भी। गृहस्थ में रहकर भी जो संत स्वरुप रहता है, उसकी सदैव दीवाली होती है। जैसे दीवाली से पूर्व घर की सफाई करते हैं उसी प्रकार संतपुरुष अपने अंतर्मन को सदैव साफ़ रखते हैं और जिस प्रकार दीपावली के अगले दिन रामा-शामा के रूप में मानते हैं और एक दुसरे के घर जाते हैं उसी प्रकार संतजन सोचते हैं कि जैसे अन्य व्यक्ति हमारे घर आते हैं, उसी प्रकार संभव है कि भगवान भी हमारे घर आ जाएँ।
श्री पुष्कर गौ आदि पशुशाला समिती की ओर से रविवार से लोहागल रोड स्थित गौशाला में प्रारम्भ हुई भक्त नरसी मेहता और नानी बाई का मायरा कथा के प्रथम दिवस संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने कहा कि गौशाला में प्रभुनाम की महिमा सुनने से जीव मात्र का कल्याण होता है। हिन्दू धर्म में गाय को माता माना जाता है और उसकी हर तरह से सेवा एवं रक्षा करना पुण्य कर्म माना जाता है। गाय को माता मानने के पिछे यह आस्था है कि गाय में समस्त देवता निवास करते हैं व प्रकृति की कृपा भी गाय की सेवा करने से ही मिलती है। भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल), भगवान इंद्र के पास समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली गाय कामधेनू, भगवान श्री कृष्ण का गोपाल होना एवं अन्य देवियों के मातृवत गुणों को गाय में देखना भी गाय को पूज्य बनाते हैं।
कथा आयोजन समिति के लक्ष्मी नारायण हटूका ने बताया कि संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने कहा कि संत किसी वेशधारी का नाम नहीं है। मन में संतत्व होना चाहिए। भक्त नरसी मेहता कोई वेशधारी संत नहीं थे बल्कि एक साधारण गृहस्थ थे। संतवृत्ति संतत्व के गुण से आती है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर संतत्व के गुण होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में अच्छाई और बुराई हैं, बस उन्हें पगचं कर अच्छाई को पास रखें है और बुराई को दूर करने का प्रयास करना है। बुराई दूर होते ही संतत्व के गुण सहज ही प्रकट होने लगते हैं।
संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने कहा कि नरसी मेहता का जन्म जूनागढ़ के समीपवर्ती “तलाजा” नामक ग्राम में हुआ था और उनके पिता कृष्णदामोदर वडनगर के नागरवंशी कुलीन ब्राह्मण थे। उनका अवसान हो जाने पर बाल्यकाल से ही नरसी को कष्टमय जीवन व्यतीत करना पड़ा। एक कथा के अनुसार वे आठ वर्ष तक गूंगे रहे और किसी कृष्णभक्त साधु की कृपा से उन्हें वाणी का वरदान प्राप्त हुआ। साधु संग उनका व्यसन था। उद्यमहीनता के कारण उन्हें भाभी की कटूक्तियाँ सहनी पड़तीं और अंतत: गृहत्याग भी करना पड़ा। विवाहोपरांत पत्नी माणिकबाई से कुँवर बाई तथा शामलदास नामक दो संतानें हुई। कृष्णभक्त होने से पूर्व उनके शैव होने के प्रमाण मिलते हैं। कहा जाता है, “गोपीनाथ” महादेव की कृपा से ही उन्हें कृष्णलीला का दर्शन हुआ जिसने उने जीवन को सर्वथा नई दिशा में मोड़ दिया।
कथा के दौरान संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने साज की मधुर धुन पर श्री राम नाम एवं श्री कृष्ण नाम संकीर्तन के पश्चात दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे, पायो जी मैंने राम रतन धन पायो, धन तो म्हारो गोपी चन्दन अने तुलसी चन्दन नो हार, कैसे आऊं रे कन्हैया तेरी दूर नगरी, मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो ना कोई रे, पकड़ नहिए आवे रे कान्हा दिलदार आदि भजन भी प्रस्तुत किये जिस पर कथा प्रांगण मे उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर होकर नृत्य करने लगे।
रविवार की कथा का शुभारम्भ ग्रन्थ पूजन से हुआ। कथा आयोजन समिति के सदस्यों शंकरलाल बंसल, माणकचंद सिसोदिया, लक्ष्मीनारायण गनेड़ीवाल, चतुर्भुजा गनेड़ीवाल, सत्यनारायण पालड़ीवाल, भोलेश्वर भट्ट, संजय अग्रवाल और योगेंद्र ओझा ने कथा पूजन किया और संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने का चरणवन्दन किया। मंच संचालन उमेश गर्ग ने किया।

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