दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुकी विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस अपनी सेवा फिर से शुरू करने के लिए सरकार से भले ही बात कर रही हो, लेकिन इसे अरबों रुपये कर्ज देने वाले बैंक इस योजना को गंभीरता से नहीं ले रहे।
किंगफिशर एयरलाइंस को साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का कर्ज देने वाले सरकारी बैंकों का कहना है कि अगर कंपनी ने बकाया कर्ज के कम से कम दस फीसद हिस्से का तुरंत भुगतान नहीं किया तो वे बंधक पड़ी परिसंपत्तियों की बिक्री प्रक्रिया शुरू कर देंगे। कर्ज के बदले माल्या ने गोवा स्थित अपने मशहूर गेस्ट हाउस सहित 4200 करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों को गिरवी रखा हुआ है।
किंगफिशर को कर्ज देने वाले एक बड़े सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि कंपनी को नया कर्ज तब तक नहीं मिलेगा जब तक वह पुराने कर्ज पर स्थिति स्पष्ट नहीं करती है। अगर उसे कर्ज लेना है तो कम से कम दस फीसद बकाया राशि तुरंत जमा करानी होगी। उसके बाद बैंक कंपनी को नए सिरे से कर्ज अदायगी का समय देंगे। साथ ही नए कर्ज के प्रस्ताव पर भी विचार किया जा सकता है। वे एयरलाइंस के वरिष्ठ अधिकारियों के रवैये को लेकर काफी ज्यादा नाराज हैं।
उन्होंने कहा कि कंपनी के अधिकारी सिर्फ नया कर्ज लेने की बात करते हैं। किंगफिशर प्रबंधन यह मान कर चल रहा है कि उनकी कंपनी को चलाने का ठेका बैंकों का है। जानकारों के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, आइसीआइसीआइ बैंक सहित 17 बैंकों की अगले हफ्ते बैठक होगी। इसमें कंपनी से कर्ज वसूलने पर विचार-विमर्श होगा। बैंक चाहते हैं कि इस बैठक में किंगफिशर के मुखिया विजय माल्या भी आएं।
पिछले दिनों भी बैंकों के साथ इस तरह की एक बैठक में माल्या उपस्थिति थे। हालाकि, उन्हें बुलाने के लिए बैंकों को काफी दबाव डालना पड़ा था। सूत्रों के मुताबिक किंगफिशर ने पिछले छह महीने में किसी भी बैंक को एक पैसे की कर्ज अदायगी नहीं की है। जबकि पिछले वर्ष नवंबर में उसे कर्ज लौटाने के लिए बैंकों ने ज्यादा समय दिया था।
किंगफिशर को कर्ज देने वाले एक अन्य बैंक के अधिकारी ने बताया कि बैंकों ने अपने स्तर पर कंपनी की तरफ से बंधक रखी परिसंपत्तियों का आकलन शुरू कर दिया है। इनमें गोवा सहित कई शहरों में स्थित कंपनी के गेस्टहाउस भी हैं। हालाकि, इन परिसंपत्तियों की बिक्री कर कर्ज वसूलने की प्रक्रिया काफी लंबी होगी। बैंकों को इसके लिए कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ सकती है। शायद यह भी एक वजह है कि बैंक कंपनी को कर्ज लौटाने के लिए और समय देना चाहते हैं।