भारत के जिस संविधान को लेकर 26 नवम्बर को लोकसभा और राज्यसभा में गरमा गरम बहस हुई, उस संविधान को बनाने वाली सभा में अजमेर के मुकुट बिहारी लाल भार्गव भी सदस्य थे। यानि भार्गव ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मदन मोहन मालवीय जैसे महापुरुषों के साथ बैठकर संविधान को बनाया। आज उसी संविधान पर हमारा यह लोकतांत्रिक देश खड़ा है। 26 नवम्बर को पीएम नरेन्द्र मोदी ने एकदम सही कहा कि किसी का नाम लेने अथवा न लेने से उसकी शख्सियत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। कांग्रेस ने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि कांग्रेस के जिन नेताओं ने संविधान को बनाने में भूमिका निभाई उनके नाम वर्तमान केन्द्र सरकार के द्वारा नहीं लिए गए। संसद में 26 नवम्बर को पक्ष विपक्ष की बहस में मुकुट बिहारी लाल भार्गव का नाम भी नहीं आया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भार्गव की शख्सियत कम होगी। अजमेर की युवा पीढ़ी भी भले ही मुकुट बिहारी लाल भार्गव को नहीं जानती हो, लेकिन अजमेर और देश के महत्व को बढ़ाने में भार्गव ने कोई कसर नहीं छोड़ी। यह अजमेर के लिए गौरव की बात है कि भार्गव की कर्मस्थली अजमेर ही थी।
भार्गव के साथ वकालत और राजनीति करने वाले अजमेर के मशहूर वकील सत्यकिशोर सक्सेना ने पुरानी यादें ताजा करते हुए मुझे बताया कि जब देश के संविधान बनाने को लेकर मंथन चल रहा था तब भार्गव भी बेहद सक्रिय थे। उस समय संविधान के निर्माण को लेकर अलग-अलग कमेटियां बनाई गई। चूंकि डॉ. अम्बेडकर युवा और अच्छी अंग्रेजी जानने वाले थे इसलिए संविधान की ड्राफ्ट कमेटी का अध्यक्ष उन्हें ही बनाया गया। उस समय भार्गव की गिनती भी तेज तर्रार युवा वकीलों में होती थी। लेकिन भार्गव का यह दुर्भाग्य रहा कि देश की आजादी के समय उनकी आंखों की रोशनी चली गई। स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेज सरकार ने भार्गव को सेन्ट्रल जेल में बंद कर दिया। तब जेल में चेचक जैसी महामारी फैल गई और समुचित इलाज के अभाव में भार्गव की रोशनी चली गई। लेकिन फिर भी भार्गव की काबिलियत और याददास्त को देखते हुए संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। नेत्रहीन भार्गव ने भी बताया कि देश के संविधान में क्या-क्या होना चाहिए। एडवोकेट सक्सेना बताते हैं कि भार्गव की याददास्त जबरदस्त थी। अदालत में पैरवी करने से पहले भार्गव अपने जूनियर वकीलों से सुनते थे और फिर अदालत में जाकर मजिस्ट्रेट को बताते थे कि फाइल के किस पन्ने पर क्या लिखा है और संविधान की किस पुस्तक में कौनसे पृष्ठ पर क्या बात दर्ज है।
तीन बार रहे सांसद:
एडवोकेट सक्सेना ने बताया कि देश में पहली बार 1952 में लोकसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में भार्गव ही सांसद बने। इसके बाद 1959 और 1962 में भी भार्गव ही सांसद चुने गए। 1967 व 71 के चुनावों में भार्गव के भतीजे विश्वेश्वर नाथ भार्गव अजमेर से सांसद बने। चूंकि मुकुट बिहारी लाल भार्गव के अपनी कोई सन्तान नहीं थी इसलिए अपनी बहन के पुत्र सुरेन्द्र नाथ भार्गव को गोद लिया। बाद में वही भार्गव हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी बने। सुरेन्द्र नाथ भार्गव इन दिनों जयपुर में निवास करते हैं।
मार्ग के नाम पर हुआ था विवाद:
26 नवम्बर को जिस संविधान पर देश ने गर्व किया, उसी संविधान को बनाने वाले स्व. मुकुट बिहारी लाल भार्गव के नाम पर अजमेर में एक मार्ग उनके नाम करवाने को लेकर विवाद हुआ था। गत कांग्रेस के शासन में अजमेर शहर के कचहरी रोड का नाम स्व. भार्गव के नाम पर रखने का प्रस्ताव नगर निगम की साधारण सभा में रखा गया, लेकिन यह प्रस्ताव दलगत राजनीति की भेंट चढ़ गया। अब जब 26 नवम्बर को संसद में पीएम मोदी ने संविधान बनाने वालों को जबरदस्त मान सम्मान देने की बात कही है तब यह देखना होगा कि क्या अजमेर नगर निगम की साधारण सभा में फिर से इस प्रस्ताव को लाया जाता है? जिन मुकुट बिहारी लाल भार्गव ने सम्पूर्ण देश में अजमेर का गौरव बढ़ाया, उनके नाम पर उनके ही शहर में कम से कम एक मार्ग तो किया जा सकता है।
(एस.पी. मित्तल)
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