प्रचण्ड बहुमत के बाद दिल्ली में आप ने अपनी सरकार बना ली। मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल ने शपथ समारोह में शामिल होने के लिए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा-कांग्रेस नेताओ को आमंत्रित किया। यह एक परम्परा की अच्छी शुरआत हे।
मुझे लाइव शपथ समारोह देखकर दुःख हुआ। समारोह में भारी संख्या में लोग रामलीला मेंदान में पहुचे। लेकिन किसी भी राजनितिक दल का कोई भी नेता नही पहुंचा। मोदी सुलझे एवं जमीन से जुड़े हुए नेता हे। वे कई मायनो में प्रोटोकोल से हटकर देशवाशियो सहित विदेशियों को अपना लोहा मनवाते दिखते हे। दिल्ली में जिस नये नवेले नेता ने समूचे विश्व को भोचक्का कर दिया। ऐसा बहुमत तो भारत की राजनीति में पहली बार ही किसी को मिला हे। मोदी ने हाल ही ओबामा के लिये जिस तरह प्रोटोकाल तोड़ा। इसके बावजूद ओबामा ने अमेरिका पहुंचकर जिस तरह भारत की भद्द पिटी। वेसा कुछ वन्दे मातरम का जयगोष करने वाला यह राष्ट्रभक्त तो नही करता। मोदी को तो यह सिर माथे ही बैठाता। क्यों कि मोदी भाजपा के नही देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमन्त्री हे।
माना कि मोदी का आज के लिए डेढ़ माह पूर्व ही कार्यक्रम तय हो गया था। इस स्थिति में वे अपने प्रतिनिधि के रूप में किसी मन्त्री को भेज देते तो भी उनकी वहिवाही हो जाती। समूचे देश में स्वस्थ राजनितिक संदेश जाता।
कमोबेश कांग्रेस भी इस वाहिवाही को लपकने से चूक गई। वो तो वेसे भी केजरीवाल की पिछली सरकार में सहयोगी बनी थी। जीरो रन को सहलाने के लिये भी उसने यह मोका खो दिया
आमतोर पर एक पार्टी की सरकार के शपथ समारोह में दुसरे दल के नेता शामिल होने से गुरेज करते हे। मुख्यमन्त्री-प्रधानमन्त्री प्रान्त व देश के होते हे। किसी पार्टी के नही। दिल्ली का ऐतिहासिक बदलाव स्थापित राजनितिक दलों को आईना दिखा रहा हे।भाजपा को ही नही सभी दलों के लिए आत्मचिंतन का समय आ गया हे। नही तो दिल्ली जेसे ही अन्य प्रान्तों में मतदाताओ के सामने ज्यो ज्यो अन्य विकल्प आयेगा त्यों त्यों ऎसे ही ‘आप’ जेसो को उभरते देर नही लगेगी। नेताओ को सबक सीख़ लेना चाहिए। कहावत भी हे- “काठ की हांडी बार बार नही चढती हे।”
पत्रकार सिद्धार्थ जैन, ब्यावर
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