9 तपस्वियों के पारणे हुए संपन्न

तपस्या जैन जीवनचर्या का महत्वपूर्ण: दिनेष मुनि
समाज के लिए भौतिक सुखों का त्याग जैन धर्म की परम्परा: पुष्पेन्द्र मुनि

P 1औरंगाबाद – 29 अप्रैल 2017।
औरंगाबाद शहर के उपक्षेत्र सिडको एन 3 के श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ द्वारा केसरबाग में शनिवार को आयोजित ‘अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव व श्रमण संघ स्थापना दिवस’ श्रमण संघीय सलाहकार दिनेष मुनि आदि ठाणा तीन के पावन सानिध्य में विविध गांव – शहरों से आए तपस्वी एवं बहनों ने भगवान ऋषभदेव कि परंपरा का अनुसरण करते हुए ईक्षुरस का पान कर पारणा संपन्न किया। नवकार महामंत्र की स्तृति से प्रारम्भ समारोह में स्वागत गीत श्रीमती प्रीती सुराणा द्वारा प्रस्तुत किया गया
श्रमण संघीय सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा कि तप आत्म शुद्धि का उत्कृष्ट सोपान है। तपस्य्ाा से न केवल तन के विकार दूर होते हैं बल्कि मन के संताप और क्लेश भी नष्ट होते हैं। वे लोग धन्य्ा हैं जो वर्षभर ही तपोधनी बने रहकर अपनी काय्ाा को कंचन किए रहते हैं। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन की तुलना इस समय्ा कोई अन्य्ा दर्शन नहीं कर सकता है। आज का दिन दान, तप, शीलता और भावना का समय्ा है। धर्मावलम्बिय्ाों को चाहिए कि वे अपने जीवन में अहिंसा और संय्ाम का समावेश करने का प्रय्ाास करें। उन्होंने भगवान ऋषभदेव का स्मरण करते हुए कहा कि वे महान थे और उनकी तप साधना भी उच्चकोटि की थी। हमें उनके बताएं सिद्धांतों पर चलने की आवश्य्ाकता है। जैन धर्म में इन पर्वों और व्रतों की संख्या प्रतिवर्ष 250 से अधिक है। ये व्रत-उपवास मात्र देवताओं को प्रसन्न करके भौतिक कामनाओं की पूर्ति के लिए नहीं, बल्कि मोक्ष रूपी अनंत सुख को प्रदान करने वाले होते हैं, बशर्तें उनकी व्याख्या ठीक प्रकार से की गई हो तथा पालन उचित ढंग से हुआ हो। व्रत-उपवासों की महत्ता पयुर्षण पर्व और चातुर्मास के दौरान ही नहीं, वे तपस्यामय जैन जीवनचर्या का अंग है। उपवास आत्मा के उच्चभावों में रमण और आत्मा के सात्विक भावों के चिंतन में सहायक है। जैन धर्म में उपवास तपस्या का ही एक महत्वपूर्ण अंग हैं। जैन धर्म के उपवासों में किसी भी तरह का फल या फलारस भी निषेध होता है। सिर्फ उबाल कर थारा हुआ या धोवन पानी सूर्योदय के बाद से सूर्यास्त पूर्व तक लिया जा सकता है। उपवास वाले दिन से पहले वाली रात्रि से ही भोजन का त्याग शुरू हो जाता है जो अगले दिन भर और रात भर जारी रहता है।
दूर दराज के क्षेत्रों से आए तपस्वीया को संबोधित करते हुए आगे कहा कि तप के तेज से तपस्वियों का चेहरा चमक दमक रहा है। उन्हें पारणा कराने के लिए श्रावक-श्राविकाएं उत्साहित नजर आए। तप के पारणे का महोत्सव अद्भूत होता है। लगाताार एक दिवस उपवास और दूसरे दिन आहार ग्रहण कर वर्षभर निकालना कठिन है। जिस तपस्वी का मन बलवान हो वहीं इतनी कठिन तपस्या पूर्ण कर पाते हैं। सारी इश्छाओं पर नियंत्रण रखना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है। तप करने वाला भाग्यशाली होता है, लेकिन तपस्वी की सेवा करने वाला भी कम पुण्यशाली नहीं है। उसे भी बहुत पुण्य प्राप्त होता है। डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने तप अनुमोदना भाव व्यक्त किये।
समारोह में ‘प्रभु ऋषभ: एक यषोगाथा’ पर प्रकाष डालते हुए डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि भौतिकवादी व सांसारिक सुखों का समाज के लिए त्याग करना ही जैन धर्म की सबसे बड़ी मुख्य विषेषता हैं। आज के आपाधापी के य्ाुग में जब चारों ओर का पयर््ाावरण प्रदूषित हुआ जा रहा है और मनुष्य्ा कई तरह से अस्वस्थ बना हुआ है तब तप ही एकमात्र्ा विकल्प है जो मानव समाज को तन और मन दोनों दृष्टिय्ाों से निरोग, स्वस्थ और सुखी रख सकता है। जैन दर्शन में प्रारंभ से ही तप का महत्व सर्वोपरि रूप में स्वीकार किय्ाा गय्ाा है और इसीलिए वर्षीतप का सिलसिला आत्म कल्य्ााण के लिए प्रारंभ हुआ जो अन्य्ात्र्ा शाय्ाद ही देखने को मिलेगा। तीर्थंकर भ. ऋषभ के कठोर तपश्चरण 13 महीने और 10 दिन के सुदीर्घ तप के पश्चात् वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन हस्तिनापुर में श्रेयांसकुमार के करकमलों द्वारा उनका पारणा इक्षुरस से संपन्न हुआ। उसी परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए जैन धर्मावलम्बि आज के दिवस इक्षुरस का सेवन करते हैं।
समारोह में मुख्य रुप से संगीतकार संजय संचेती ने वर्षीतपरा झल डाल्या – डाल्या चारों ओर, हमारा नमन है गुरु तुम्हारे चरणों में, इक्षुरस से किया पारणा इत्यादि भक्तिमय गीतों द्वारा सभा को भावविभोर किया। सीमा झांबड़ द्वारा ‘आदिनाथ प्रभु के चरणों में शीश झ्ाुकाते चले’ भजन का संगान कर वातावरण को भक्तिमय्ा बना दिय्ाा। इसी क्रम में गायिका सुश्री स्नेहा कांकरिया ने ‘तपस्या भावे संतांे ने अनोमुदना करों, गीत प्रस्तुत किया और श्राविका सुनीता देसर्डा ने गुरु महत्त्व प्रतिपादित करते हुए अपने विचार व्यक्त किये। नांदेड़ के पूर्व विधायक ओमप्रकाष पोखरना ने जैन जीवन शैली पर प्रकाष डाला और विधान परिषद् सदस्य आमदार सुभाष झांबड़ ने कहा कि जैन संतों ने अपने उपदेशों द्वारा ग्रामीणजनों को सर्वाधिक प्रभावित किय्ाा और अनेकों को व्य्ासन मुक्त रहने का संकल्प दिलाय्ाा है। इस अवसर पर आमदार झांबड़ ने सलाहकार दिनेष मुनि की प्रेरणा से घोषण कि वे शीघ्र ही एक वृदाश्रम का निर्माण करेंगे जिसका नाम ‘अपना -घर’ होगा, जहां पर घर जैसे वातावरण में बुजुर्ग – असहाय महानुभावों को आश्रय दिया जाएगा।
9 तपस्विय्ाों का पारणा
इस अवसर पर वर्षीतप के 13 महीने की विशिष्ट तपस्य्ाा करने वाले 11 श्रावक-श्राविकाओं नेे सलाहकार दिनेश मुनि को इक्षु रस बहराकर तत्पश्चात् पारणा सम्पन्न किय्ाा। डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि (द्वितीय वर्षीतप – उपवास), डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि (द्वितीय वर्षीतप – एकासन), श्रावक नितीन शांतिलाल ओस्तवाल ( दसवां वर्षीतप – एकासन), श्रीमती विमलाबाई शंकरलाल बडोरा, ( 28वां वर्षीतप – आयंबिलमय उपवास), श्रीमती कमलाबाई चौपड़ा ( 23वां वर्षीतप – उपवास), श्रीमती विमलाबाई रुणवाल ( दसवां वर्षीतप – उपवास), श्रीमती सुषीलाबाई बंब ( आठवां वर्षीतप – उपवास), श्रीमती छायाबाई चौपड़ा ( तृतीय वर्षीतप – उपवास), श्रीमती भानुमती गादिया ( पाचवां वर्षीतप – एकासन), का पारणा संपन्न हुआ। उसके पश्चात् धर्मसभा में सभी तपस्वियों का श्राविकारत्न प्रभादेवी चंपालाल देसर्डा, श्रीमती सीमादेवी आमदार सुभाष झांबड़, श्रीमती सीमा संदीप छल्लाणी, श्री मीठालाल प्रकाष कांकरिया, श्रीमती कमलाबाई प्रेमचंद ओस्तवाल, श्रीमती शशीकलाबाई पोपटलाल मुणोत, श्रीमती विमला प्रकाष बाफना, श्रीमती विमलादेवी हरखचंद कटारिया, श्रीमती कांताबाई खेमराज संघवी, श्रीमती विद्यादेवी नवीन गुगले, श्रीमती विमलादेवी मेघराज कांकरिया, श्री मांगीलाल माणकचंद फूलफगर, श्रीमती नंदा राजीव कांकरिया, श्रीमती मीनाबाई सुभाष मुथा सहित अनेक परिवारों द्वारा तपस्वियों का बहुमान किया गया।
श्रमण संघ का 66 वें वर्ष में प्रवेश
समारोह के दौरान जानकारी दी गई कि 66 वर्ष पूर्व आज ही के दिन अखिल भारतीय्ा श्वेताम्बर स्थानकवासी श्रमण संघ की स्थापना हुई थी। वर्ष 1952 में मेवाड की इसी धरा के प्रमुख कस्बे सादडी गांव में 22 संप्रदाय्ाों के एकीकृत से श्रमण संघ का गठन हुआ। आज का दिन प्रत्य्ोक श्रावक श्राविकाओं के लिए सौभाग्य्ा का अवसर है।
सलाहकार दिनेष मुनि को चादर भेंट
इस अवसर पर नांदेढ़ पूर्व विधायक ओमप्रकाष पोखरणा, आमदार सुभाष झांबड़, पूर्व न्यायाधिपति कैलाषचंद चांदीवाल, श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष प्रकाष बाफना, सिडको श्रीसंघ मंत्री सुरेष जैन, डॉ. प्रकाष झांबड़, शेखरचंद देसर्डा, संदीप छल्लाणी, किषोर देसर्डा परिवार ने सलाहकार दिनेश मुनि को श्वेत चादर समर्पित की एवं साथ ही डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि, डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि को उनके तपस्या निमित चादर ओढा कर अभिनंदन किया गया।
समारोह को सफल बनाने में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्राविका मंडल, माता त्रिषला महिला मंडल, प्रभाकिरण महिला मंडल, लब्धिकृपा महिला मंडल, पार्ष्वधर्म महिला मंडल, संस्कार महिला मंडल की सदस्याओं के साथ साथ श्रीमती सीमा झांबड़, श्रीमती सुनीता देसर्डा, श्रीमती सीमा छल्लाणी, श्रीमती भारती बागरेचा, श्रीमती नगीनादेवी ओस्तवाल, श्रीमती शीला छाजेड़ इत्यादि का सहयोग प्राप्त हुआ। स्वामीवात्सलय का लाभ श्रीमती प्रभादेवी, शेखरचंद – सुनिता, किषोर – नयना, मधुर, उत्कर्ष एवं तीर्था देसर्डा परिवार ने लिया।
मुनित्रय का विहार पुना की ओर
श्रमण संघीय सलाहकार श्री दिनेश मुनि जी म., डॉ. श्री द्वीपेन्द्र मुनि, डॉ. श्री पुष्पेन्द्र मुनि का वर्ष 2017 का चातुर्मास पूना शहर के कात्रज क्षेत्र के श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, दŸानगर, आंनद दरबार में संपन्न होगा। दो दिवसीय औरंगाबाद प्रवास के पश्चात् मुनित्रय पूना की ओर विहार करेगें। अहमदनगर, घोड़नदी होते हुए 30 मई को पूना नगर प्रवेष करेगें और चातुर्मास प्रवेष 29 जून को होगा।

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