सच कहते हैं कि राजनीति में समय अक्सर करवट लेता है। महज चंद घंटों में ही नितिन गडकरी के जाने का फैसला हो गया। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को आखिरकार फिर अध्यक्ष पद मिल गया। अटल बिहारी वाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी के बाद राजनाथ सिंह ऐसे नेता हैं, जिन्हें बीजेपी का अध्यक्ष दो बार मिला। अपने भाषण में राजनाथ सिंह ने खुद ही स्वीकार किया कि विषम परिस्थितियों में अध्यक्ष बना हूं। राजनाथ को पता है कि सफलता की पनघट की डगर कठिन है। अब यह ताज कांटों भरे ताज से कम नहीं दिखता है। चलिए हम आपको राजनाथ सिंह के सामने आने वाली सात चुनौतियों के बारे में बताते हैं।
कर्नाटक पर किचकिच
भाजपा के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह की सबसे पहली और बड़ी चुनौती कर्नाटक की सरकार को बचाना है। पूर्व मुख्यमंत्री बी. एस. येदयुरप्पा के समर्थक दो मंत्रियों के इस्तीफा देने और उनके समेत 13 विधायकों के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के निर्णय के बाद कर्नाटक की भाजपा सरकार संकट में फंस गई है।
भ्रष्टाचार पर लगाम
पार्टी नेताओं के भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा को कड़ा रुख अपनाना होगा, ताकि भाजपा की साख बच सके। आडवाणी के भाषण को गौर से सुने तो आडवाणी ने पार्टी विद द डिफरेंस की परिभाषा के जरिए संदेश देने की कोशिश की।
राज्यों में होने वाले हैं चुनाव
राजनाथ सिंह पर इसी साल नौ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाओं में कमल खिलाने का दबाव है। विधानसभा के ये चुनाव लोकसभा 2014 का सेमीफाइनल माना जा रहा है।
यूपी में भाजपा को बेहतर करने का दबाव
यूपी में भाजपा की खस्ता हालत किसी से छुपी नहीं है। यूपी में पार्टी गुटबाजी की शिकार है। कार्यकर्ताओं में हताशा है। अध्यक्ष पद संभालने के दौरान ही आडवाणी ने यूपी में भाजपा की मजबूती की जिम्मेदारी का स्पष्ट संदेश दिया।
मिशन लोकसभा 2014
राजनाथ सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती है 2014 में भाजपा नेतृत्व में केंद्र में वापसी। सभी बड़े नेताओं ने राजनाथ सिंह को अप्रत्यक्ष रुप से इस जिम्मेदारी का एहसास करा दिया। भाजपा में पीएम पद के दावेदारों की लंबी लिस्ट है। इन सबको एक साथ लेकर चलना राजनाथ सिंह के लिए सबसे बड़ी चुनौति है।
भाजपा-संघ-आडवाणी में संतुलन
आपको याद हो तो संघ के दबाव में राजनाथ सिंह ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान आडवाणी गुट को किनारे लगा दिया था। इस बार हालात बदले हुए हैं। संघ भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के दवाब में नितिन गडकरी को पीछे कर लिया है। अब राजनाथ सिंह के सामने संघ परिवार और भाजपा के बरिष्ठ नेताओं के बीच संतुलन बनाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी है।
राजग के साथ दूसरे घटक दलों को जोड़ना
वैसे तो राजनाथ सिंह सियासत में समीकरण बैठाने में माहिर खिलाड़ी हैं लेकिन नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार को साथ लेकर चलना बहुत ही मुश्किल है। छिटक चुके घटक दलों को वापस जोड़ने की चुनौति है।
आपकी राय। पिछले कार्यकाल में राजनाथ सिंह का रिकॉर्ड कुछ खास नहीं रहा। क्या इन चुनौतियों से पार पाएंगे राजनाथ सिंह?