तपस्वियों के संकल्प से बढ़ता है समाज का गौरव
दसलक्षण पर्व के अंतिम दिवस समझाया क्षमा का महत्व
दिगम्बर जैन मंदिर ‘षिर्डी’ में सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा-
षिर्डी। संसार में ऐसा कौन है, जिसका दुखों से पाला न पड़ा हो। मनुष्य को तो छोड़िए भगवान श्रीकृष्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, भगवान पार्श्वनाथ और महावीर सभी ने दुख भोगा है। याद रखो, संसार के पथ पर कदम तभी डगमगाते हैं जब सुख हमारे साथ होता है। दुख जैसा कोई मीत नहीं। दुख ही हमें बताता है, कौन अपना और कौन पराया। यह तो हम पर ही निर्भर करता है कि हम इसे किस रूप में स्वीकार करते हैं। बिना दुख के सुख का कोई वजूद नहीं। यह विचार सलाहकार दिनेष मुनि ने रविवार को दिगम्बर जैन कांच मंदिर में आयोजित दसलक्षण पर्व के अंतिम दिवस ‘क्षमावाणी’ पर श्रद्धालुजनांे को धर्मसभा में संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
अनुशासन बहुत जरूरी
सलाहकार दिनेष मुनि ने आगे कहा कि जीवन में अनुशासन बहुत जरूरी है। पुलिस अनुशासन की बात बैंत से और संत प्रेम के संकेत से सिखाते हैं। वाणी में मिठास होना चाहिए। क्योंकि यह अपनों को पराया और परायों को अपना बना लेती है। लोग नाम के लिए दान करते हैं और भाई दर-दर की ठोकरें खा रहा है। ऐसे दान को भगवान भी स्वीकार नहीं करता।
तपस्वियों के संकल्प से बढ़ता है समाज का गौरव
सलाहकार दिनेष मुनि ने आगे कहा कि अग्नि स्नान किए बिना घड़ा पानी भरने योग्य नहीं बनता है। सूरज तपकर ही संसार को उजाला और ऊर्जा देता है। इसी प्रकार आत्मा को निर्मल बनाना है तो तपस्या करना ही होगी। तपस्या में तपस्वी का संकल्प महत्वपूर्ण होता है। संकल्प शक्ति से बड़े से बड़े संकट समाप्त हो जाते हैं। तपस्वियों के संकल्प से समाज का गौरव भी बढ़ता है। ऐसे ही सामाजिक गौरव में वृद्धि का कार्य तपस्वी रिंकु कासलिवाल व समुति गंगवाल ने दस दिवस की कठोर तपसाधना की पूर्ति से किया है। उन्होंने आगे कहा क्षमा मांगना एवं क्षमा करना वीरों का आभूषण है। प्रभु महावीर स्वामीजी ने ‘क्षमा वीरस्य भूषणम’ के माध्यम से क्षमा की विशेषता बताई है।
डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि भूख सहन करना बहुत कठिन है। आठ उपवास वालों को इसलिए तो सम्मान मिलता है कि वे पूरे दिन निराहार रहते है जो बहुत ही कठिन कार्य है। हर व्यक्ति दिन में एक बार नहाता हैं, कपड़े धोता हैं जबकि खाना जब मर्जी आए कुछ भी खा लेता हैं। जो इन सभी पर नियंत्रण कर लेता है, वह बहुमान के योग्य है।
तपस्वियों का हुआ बहुमान
दस दिवसीय तपस्या करने वाली सुश्राविका श्रीमती रिंकु कासलिवाल व श्रावक सुमित गंगवाल व उपेन्द्र मिश्रा ने सर्वप्रथम सलाहकार दिनेष मुनि से 10 उपवास के नियम ग्रहण किये तत्पष्चात्् श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ की ओर से तपस्वियों का हार व रजत पत्र देकर स्वागत किया गया। समारोह में नंदलाल सिंयाल, दीपिका गंगवाल, मधु लोढा, सतीष गंगवाल, बसन्तीलाल भोगर, पुखराज लोढा, विजय लोढा, रिंकू कासलीवाल व सुषीला बहु मंडल की सदस्यों ने विचार व्यक्त किये।