बच्चों को 10 फरवरी को एलबोण्डाजोल गोली खिलाना न भूलें

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति (डीवर्मिंग) दिवस 10 फरवरी को

DSCN2271बीकानेर 7/2/15 । स्वास्थ्य विभाग द्वारा 10 फरवरी को एक ही दिन में बच्चों को दवा की गोली खिलाई जाएगी । दरअसल
बच्चों में कुपोषण की रोकथाम, शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिये चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग 10 फरवरी को राष्ट्रीय कृमि मुक्ति (डीवर्मिंग) दिवस मना रहा है। कार्यक्रम के तहत 1 वर्ष से लेकर 19 वर्ष तक के बच्चों व किशोरों को आंगनबाडी केन्द्राें, सरकारी-निजी विद्यालयों व मदरसों में पेट के कीड़े मारने की दवा एलबेण्डाजोल दवा निशुल्क खिलाई जाएगी। इसके बाद 15 फरवरी को मॉप अप दिवस मनाते हुए 10 फरवरी को गोली खाने से वंचित बच्चों को एलबेंडाजोल गोली खिलाई जायेगी। यह जानकारी स्वास्थ्य भवन सभागार में मीडिया प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. देवेन्द्र चौधरी ने दी। उन्होंने विभाग द्वारा कृमि मुक्ति दिवस आयोजन संबंधी की जा चुकी एवं की जा रही तैयांरियों के बारे में बताया । डॉ चौधरी ने जानकारी दी कि आंगनवाड़ी केन्द्रों में 1 से 2 वर्ष तक के बच्चे को ऐल्बेण्डाजोल 400 एमजी की आधी गोली को दो चम्मच के बीच में रखकर चूरा करके स्वच्छ पीने के पानी में घोलकर बच्चों को पिलाई जायेगी व 2 से 6 साल के बच्चे को 1 गोली चबाकर खाने को दी जाएगी। जो बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं उन्हें भी आंगनवाड़ी केन्द्रों के मार्फत दवा खिलाई जाएगी।

पोस्टर का विमोचन

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति (डीवर्मिंग) दिवस से सम्बंधित पोस्टर का विमोचन भी किया गया। जिला सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी हरिशंकर आचार्य ने मीडिया प्रतिनिधियों से देश के भविष्य यानिकी बच्चों के स्वास्थ्य से सम्बंधित इस महत्वपूर्ण जानकारी को अधिकाधिक प्रसारित करने की अपील की। इस अवसर पर प्रतिष्ठित समाचार पत्रों व चेनलों के प्रतिनिधियों सहित जिला आई.ई.सी. समन्वयक मालकोश आचार्य व चिकित्सा विभाग के अधिकारी उपस्थित रहे।

दवा है सुरक्षित
सीएमएचओ ने बताया कि यह दवा पूर्ण सुरक्षित है जो बच्चे स्वस्थ दिखें उन्हें भी ये खिलाई जानी हैं क्योंकि कृमि संक्रमण का प्रभाव कई बार बहुत वर्षों बाद स्पष्ट दिखाई देता है। दवा से पेट के कीड़े मरते हैं इसलिए कुछ बच्चों में जी मिचलाना, उल्टी या पेट दर्द जैसे सामान्य छुट-पुट लक्षण हो सकते हैं लेकिन ये सामान्य व अस्थाई हैं जिन्हें आंगनवाड़ी व विद्यालय में संभाला जा सकता है। सामान्य बीमार बच्चों को भी दवा दी जा सकती है हाँ मिर्गी के दौरे आने वाले बच्चों को ये दवाई नहीं खिलाई जायेगी।

कृमि संक्रमण के दुष्परिणाम
डिप्टी सीएमएचओ डॉ. अनिल वर्मा ने बताया कि शरीर में कृमि संक्रमण से शरीर और दिमाग का सम्पूर्ण विकास नही होता है और कुपोषण और खून की कमी होने से हमेशा थकावट लगती रहती है। भूख ना लगना, बैचैनी, पेट में दर्द, उल्टी-दस्त व वजन में कमी आने जैसी समस्याएँ हो जाती हैं बच्चों में सीखने की क्षमता में कमी और भविष्य में कार्यक्षमता में कमी आ सकती है।

कृमि संक्रमण चक्र
कार्यक्रम के नोडल अधिकारी एवं आरसीएचओ डॉ. रमेश गुप्ता ने बताया कि एक संक्रमित व्यक्ति की शौच में कृमि के अंडे होते है जोकि मिट्टी में विकसित हो जाते हैं। अन्य व्यक्ति संक्रमित भोजन से गंदे हाथों से या फिर त्वचा के लार्वा के संपर्क में आने से संक्रमित हो जाते हैं। एक संक्रमित व्यक्ति में लार्वा बड़े कृमि में विकसित हो जाता है और इस व्यक्ति की आंत में रहता है। जो पोषण व्यक्ति भोजन से प्राप्त करता है उसका बड़ा हिस्सा कृमि अपना भोजन बना लेता है जिससे व्यक्ति कुपोषण का शिकार हो जाता है। बच्चों में आमतौर पर राउंड कृमि, व्हिप कृमि व हुक कृमि पाए जाते हैं।

बचाव
डिप्टी सीएमएचओ डॉ. अनिल वर्मा ने बताया कि कृमि संकमण से बचाव के लिये खुली जगह में शौच नहीं करना चाहिए, खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ धोना चाहिए और फलों और सब्जियों को खाने पहले पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए । नाखून साफ व छोटे रहें, साफ पानी पिएँ, खाना ढक कर रखें और नंगे पाँव बाहर ना खेलें, जूते पहन कर रखें।

क्या कहते हैं आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में करीब 24 करोड़ दस लाख बच्चों के कृमि ग्रस्त होने की संभावना रहती है। बच्चों में यह संक्रमण अस्वच्छता, अस्वच्छ वातावरण, नंगे पैर एवं संक्रमित मिट्टी के संपर्क में आने से होता है। इसी कृमि संक्रमण से बच्चों में एनिमिया व कुपोषण होता है, जिसके कारण उनके शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है। एक वर्ष से 19 वर्ष तक के 70 प्रतिशत बच्चे एनिमिया एवं 43 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार होते है, जबकि 15 से 19 वर्ष के 56 प्रतिशत लड़कियों व 30 प्रतिशत लड़कों में एनिमिया पाया जाता है।

error: Content is protected !!