dr. j k gargमहर्षि गर्ग ने भगवान अग्रसेन को 18 पुत्रके साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। उन दिनो यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। जिस समय 18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि देने की तय्यारी की जा रही थी उस वक्त एक घोडा बलीके लिए लाया गया | महाराज अग्रसेन ने देखा कि घोड़े की आँखों से आंसुओं की गंगा जमुना बह रही थी और वो यज्ञ की वेदी से दूर जाने और वहां से भागने की कोशिश कर रहा था | इस दृश्य कोदेख कर महाराज अग्रसेन का दिल दया से भर गया और वे आहत भी हुए | उन्होंने सोचा के ये कैसा यज्ञ है जिसमें हम मूक जानवरों की बलिचढ़ाते है? महाराजा अग्रसेनजी ने पशु वध को बंद करने के लिये अपने मंत्रियों के साथ विचार विमर्श किया और अपने मंत्रीमंडल के विचारों के विपरीत जाकर उन्हें समझाया कि अहिंसा कभी भी कमजोरी नहीं होती है बल्कि अहिसा तो एक दुसरे के प्रति प्रेम और अपना पन जगाती है | महाराजा अग्रसेन ने उनसे कहा कि अहिंसा कायरता की नहीं किन्तु वीरता की परिचायक है, आदमी को किसी भी प्राणी की जान लेने का अधिकार नहीं है | महाराजा अग्रसेन ने तुरंत प्रभाव से मुनादि करवा दी की उनकेराज्य मे कभी भी कोई हिंसा ओर जानवरों की हत्या नहीं होगी | अग्रसेन जी अहिसां परमोधर्म का संदेश देने वाले प्रथम महाराजा बने, अहिसां का संदेश उन्होंने बुद्ध, महावीर के संदेश से 2500 साल पहिले ही दे दिया था |
डा.जे. के. गर्ग Visit Our Blog —-gargjugalvinod.blogspot.in