तीन सौ घरों की बस्ती, योजनाओं से वंचित

JHOPADI01अजमेर। राजस्थान में इन दिनों विधानसभा चुनाव होने जा रहे है। राजनेता वोटो पर पकड़ मजबूत करने के लिए गाँव और गलियों में घूम रहे है। लेकिन इन सब से दूर कुछ लोग ऐसे भी है जिनके लिए इन चुनावो का कोई महत्व नहीं। अंतिम और वंचित कहे जाने वाले इन लोगो के पास आज वोट का अधिकार नहीं।
कोटड़ा इलाके में आबाद इस कच्ची बस्ती का कोई नाम नहीं है। बस्ती का नाम नहीं तो कोई बात नहीं लेकिन बात यदि यहंा रहने वालो की करे तो देश के लोकतंत्र में यहंा रहने वालो का कोई अस्तित्व नहीं। लगभग एक दशक से कोटड़ा के इस इलाके में झुग्गी बना कर रह रहे इन लोगो में अधिकांश बिहार और मध्यप्रदेश के पिछड़े इलाको से है जो रोजी रोटी की आस में अजमेर आये और फिर यही के हो कर रह गए। गुजरे सालो में कई चुनाव आये लेकिन इस बस्ती में रहने वालो पर किसी की नजर नही गई। 300 झुग्गियों की इस बस्ती में कोई भी मतदाता नहीं है। होता तो तब जब इनके पास अपने अस्तित्व का सरकारी पहचान पत्र वोटर आई डी कार्ड होता।
बात केवल मतदान के अधिकार की ही नहीं है। सरकारे अंतिम तबके के उत्थान के लिए जिन योजनाओ का ढिंढोरा पिटती है उस का लाभ मिलना तो दूर इन्हे उस के नाम तक की जानकारी नहीं है। आश्चर्यजनक रूप से विगत एक दशक से इस इलाके में आबाद इस बस्ती में रहने वालो के आज तक ना तो राशन कार्ड बनाये गए और ना ही मतदाता सूचि में इनके नाम शुमार किये गए। चुनाव के समय इस बस्ती में कोई नेता आ कर नहीं झांकता। वजह स्पष्ट है कि जब इनके पास वोट का अधिकार ही नहीं तो इनकी सुध कौन ले। देश की आजादी को इतने साल बीत जाने के के बाद भी विकास की रौशनी इस बस्ती को रौशन नहीं कर पाई। जीवन आज भी यहा नरक का अहसास करवाता है। आखिर इस का जिम्मेदार कौन है। राजनेतिक और प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार इन लोगो के जीवन स्तर में सुधार लाने के कभी कोई प्रयास क्यों नहीं हुए। इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है।
लगभग 300 झुग्गियों की इस बस्ती में रहने वाले यदि किसी को सरकारी अधिकारी के रूप में जानते हे तो वह है इलाके का पुलिस कांस्टेबल। जो वक्त बेवक्त इस बस्ती में पहंुच कर यहा किसी के निजाम होने का अहसास इन्हे करवाता है। बस्ती में रहने वालो के अधिकांश बच्चे शिक्षा से वंचित है क्यों की उनके पास अपने जन्म का प्रमाण नहीं। अवैध कही जाने वाली इस बस्ती में रहने वालो को किसी सरकार ने कभी भोजन का अधिकार देने की बात नहीं कही। कभी इन्हे नरक के समान इस बस्ती से उठा कर पक्के घरो में बसाने की कोशिश नहीं की गई। शिक्षा और चिकित्सा जैसे मुद्दे इनके लिए कभी रहे ही नहीं। दो वक्त की रोटी कमाने की मशक्कत के बाद बस पाँव फैला लेने जितनी जगह वाली झोपड़ी ही इनकी दुनिया है।

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