इस बार विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की खामोशी के मायने क्या रहे यह अहम सवाल भी राजनैतिक विश£ेषको की फलावट को किसी भी नतीजे तक नहीं पहुंचने दे रहा है। जानकारो की माने तो इस बार वोट सीधा अपने घर से निकलकर निर्देशित मतदान केन्द्र तक पहुंचा है। हालांकि इस बीच परम्परागत रूप से बूथो पर राजनैतिक दलो के काउण्टर भी थे, मगर ज्यादातर मतदाताओं ने इस बार किसी भी काउण्टर पर रूके बिना सीधे मतदान केन्द्र तक ही पहुंचना उचित समझा। इसका श्रेय निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाताओं को दी गई मतदाता पर्ची जैसी व्यवस्था व उसके द्वारा इस बार मतदान के लिये स्वीप के जरिए जोर शोर से किये गये प्रचार को भी जाता है। मतदान के समय की तस्वीर को आधार बनाया जाये तो यह तथ्य स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया है कि भले ही एक तरफ मतदाता पूरी तरह खामोश दिखाई दिया मगर वोट देने के प्रति वह उत्साह से भरा था। यही वजह रही कि इस बार केकडी क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत 75.59 प्रतिशत तक पहुंच गया। यानि इलाके के कुल दो लाख नौ हजार छह सौ पन्द्रह मतदाताओं में से एक लाख 58 हजार 453 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इन मतदाताओं में पुरूष मतदाताओं का कुल प्रतिशत 76.62 रहा जबकि महिलाओं का प्रतिशत 74.50 रहा। निर्वाचन विभाग द्वारा दिये गये आंकडो पर नजर डाले तो इस बार इलाके के कुल 1 लाख 8 हजार 32 पुरूष मतदाताओं में से 82 हजार 776 मतदाताओं ने तथा 1 लाख 15 हजार 83 महिला मतदाताओं में से 75 हजार 677 मतदाताओं ने वोट डाले। इस प्रकार इस बार पिछले विधानसभा चुनाव से 7.09 प्रतिशत मतदान की वृद्धि दर्ज की गई। 2008 में हुए चुनाव में केकडी क्षेत्र में कुल 68.35 प्रतिशत मतदान हुआ था।
हैल्लो….क्या पोजिशन है भाई, कौन जीत रहा है
-सुरेन्द्र जोशी- केकड़ी । दिन भर इधर से उधर घनघना रहे हैं फोन….चौराहो पर चल रही है चटपटी बाते व चुनावी चर्चाओं के चटखारे….बंद कमरो में प्रत्याशियों के समर्थको की चल रही है वोटो के जोड बाकी की मशक्कत और इन सब के बीच लोगों में घूम रहा है एक ही सवाल कि क्या पोजिशन है….? इस सवाल ने चौदहवीं विधानसभा चुनाव के लिये रविवार को हुए मतदान के बाद से ही न केवल आम मतदाताओं में वरन प्रत्याशियों की उम्मीदो को बैचेनी में तब्दील कर रखा है। हालांकि हार जीत का फैसला आगामी 8 दिसम्बर को होना है, मगर इसी उत्सुकता और बैचेनी के साथ इलाके में अटकलो व कयासो का दौर भी शुरू हो गया है। इस दौर में राजनैतिक चर्चाओं में दिलचस्पी लेने वाले लोग इलाके में पंचायतवार हुए मतदान को आधार बनाकर अपने अपने हिसाब से भविष्य के दर्पण पर छायी धुंध को साफ करने की कवायद में जुटे हुए है। मगर इस कवायद के दौरान ऐसे ढेरो सवाल मुंहबाहे खडे है जिनके जवाब भविष्य के गर्भ में छिपे हुए होने से जहां कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह की भविष्यवाणी करने से न केवल झिझक रहा है वरन दूसरो के बताये हुए आंकलन पर भी यकीन नहीं कर पा रहा है। ऐसे में मतदान के बाद इलाके की नब्ज को टटोलने की कोशिश की गई तो कई रोचक जानकारियां सामने आई।
मतदाताओ की खामोशी के क्या है मायने……?
घडी की टिक टिक पर टिकी निगाहे
केकडी क्षेत्र में इस बार भी लोगों की निगाहे एनसीपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव में खडे पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारिया द्वारा हासिल किए जाने वाले सम्भावित मतो की संख्या पर टिकी है। कांग्रेस प्रत्याशी डॉ.रघु शर्मा के धुर विरोधी माने जाने वाले सिंगारिया ने इस बार एनसीपी का दामन थाम कर घडी के चुनाव चिन्ह पर इलाके से चुनाव लडकर कांग्रेस की राह में कांटे बिछाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है। जानकारो की माने तो क्षेत्र के कई इलाको से सिंगारिया को मिलने वाली बढत चुनाव परिणामो पर अपना असर छोडे बिना नहीं रहेगी।
मोदी फैक्टर या विकास की आंधी ……?
इस बार पूरे देश की तर्ज पर यहां भी प्रभावी मोदी फैक्टर का असर विधानसभा चुनाव के परिणामो पर पडना तय लग रहा है। ऐसे में इस फैक्टर को असरदार मानने वाले लोग जहां भाजपा के नये चेहरे शत्रुघ्र गौत्तम की शक्ल में अभी से इलाके का भविष्य देखने लगे है, वहीं दूसरी ओर कुछ राजनैतिक विश£ेक एन्टीइनकंबेसी और मोदी फैक्टर को खारिज करते हुए बढे हुए मतदान प्रतिशत को प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा चलाई गई लोककल्याणकारी योजनाओं का असर मानकर इसे केकडी क्षेत्र में हुए विकास कार्यो से उपजा समर्थन बता रहे है। जो भी हो मतदान के बढे हुए प्रतिशत का खुलासा आठ तारीख पहले होना सम्भव नहीं है।
पहली बार वोट देने वालो का क्या रहा रूझान……?
हार जीत को लेकर राजनैतिक जानकारो की फलावट इस बार इलाके से पहली बार वोट देने वाले आठ हजार युवा मतदाताओं पर भी टिकी हुई। जानकारो की माने तो इस बार ज्यादातर युवा मतदाताओं का रूझान मोदी फैक्टर से प्रभावित था। हालांकि इलाके में राहुल के चेहरे में देश का भविष्य तलाशने वाले युवा मतदाताओं की भी अच्छी खासी तादात थी। यही वजह है कि हार जीत में युवा वर्ग की भूमिका को भी काफी अहम माना जा रहा है।
क्या गुल खिलायेगा राजपूतो का रूख……?
इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा के परम्परागत वोट बैंक माने जाने वाले राजपूत मतदाताओं का रूख राजनैतिक दलो के लिये बैचेनी का सबब बना हुआ है। गौरतलब है कि इस विधानसभा चुनाव में राजपूत समाज की ओर से इलाके के कद्दावर नेता व पूर्व प्रधान भूपेन्द्रसिंह शक्तावत ने भाजपा की ओर से अपनी दावेदारी पेश की थी मगर भाजपा ने एन वक्त पर ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए शत्रुघ्र गौत्तम को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया। भाजपा के इस फैसले से भाजपा के परम्परागत राजपूत वोट उसके हाथो से खिसने का अनुमान लगाया जा रहा है। हालांकि राजपूत समाज की राजनीति में अपना वर्चस्व कायम रखने वाले भूपेन्द्रसिंह शक्तावत चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में यहां हुई वसुन्धरा राजे की सभा में मंच पर भी दिखाई दिये थे, मगर चर्चाओ के मुताबिक उनकी सक्रिय भागीदारी के अभाव में विधानसभा क्षेत्र में उनके प्रभाव वाले सावर सताईसा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति को लेकर ऊहापोह कायम है।
कहां से किसको मिल रही है बढत……?
मतदान के बाद इलाके में शुरू हुए अटकलो व कयासो के दौर में इस बात पर काफी गहन मंथन किया जा रहा है कि आखिर किस उम्मीदवार को किस इलाके से कितनी बढत मिल रही है। इस सवाल के जवाब के लिये अब राजनैतिक विश£ेष्को को व आम मतदाताओं को भी केकडी क्षेत्र के सभी 248 मतदान केन्द्रो पर रहे मत प्रतिशत के आने का इंतजार है।
जीत के प्रति आश्वस्त है प्रमुख प्रत्याशी
विगत एक माह से चुनावी जंग में धूंआधार जूझ रहे प्रत्याशी मतदान का काम निबटते ही आज सोमवार को पूरा आराम करते नजर आये। नवज्योति ने जब प्रमुख प्रत्याशी रघु शर्मा व शत्रुघन गौतम के हाल जाने तो थकान उतारने का उनका तरीका कमोबेश एक जैसा ही था। सुबह देर से उठना और देर से स्नान-ध्यान। अलबत्ता इस बीच उनके यहां समर्थकों व कार्यकर्ताओं का तांता भी बना रहा, मगर न कोई आपा-धापी तो न ही कोई हडबडी। सहज बातें व सहज मुलाकातें। बस एक ही चर्चा कि चुनाव में कहां कैसी बढत। लब्बो-लुआब यह कि दोनों ही प्रत्याशी अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त नजर आये।