-कोई बंटी समझता है, कोई बबली समझता है। मगर कुर्सी की बैचेनी को, बस “कजरी” समझता है।
-मैं कुर्सी से दूर कैसा हूँ, मुझसे कुर्सी दूर कैसी है ! फकत शीला समझती है या मेरा दिल समझता है !!
-सत्ता एक अहसासों की पावन सी कहानी है ! कभी शीला दीवानी थी कभी कजरी दीवाना है !
-यहाँ सब लोग कहते हैं कजरी सत्ता पिपासु है। अगर तुम समझो तो ढोंगी है जो ना समझो तो साधू -है।
-समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता ! ये बंगला और ये गाड़ी, मैं इसको खो नही सकता !!
-मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले ! जो शीला का न हो पाया, वो मेरा हो नही सकता !!
-भ्रमर कोई अगर कुर्सी पर जा बैठा तो हंगामा! हमारे दिल में सत्ता का जो ख्वाब आ जाये तो हंगामा!!
-अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा कुर्सी का! मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!
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