
मामला आजम साहब का था। पता नहीं कब उखड जाएँ। वह तो भला हो कि पुलिस मंत्रालय अपने सीएम साहब के ही पास है वर्ना अफसर नहीं साजिश में मंत्री तक लिपट जाते। कितनों कि ऐसी-की-तैसी हो जाती। कुछ नहीं तो विरोधियों की साजिश तो बता ही दी जाती। कोई बड़ी बात नहीं कि नमो के ही किसी आदमी ने यह हरकत की हो। हल्का भी सबूत मिल गया ना तो चुनाव में भैंसे मुद्दा जरुर बनेंगी। जानवर बन चुके वोटरों में पैठ तो बढ़ेगी ही। हमें तो लगता है कि इसमें कंही-ना कहीं आप की भी साजिश होगी। दिल्ली पुलिस तो निपट चुकी अब बरी यूपी की होंगे।
अब आप ही सोचिये, वो वीवीआईपी भैंसों को बताइए सर्द रात कितनी परेशानी हुई होगी। बेचारियों के पास ओढनी भी नहीं होगी। फिर चोरों ने कितनी बेरुखी से हांक लगाई होगी। एक-दो किलोमीटर होती तब भी कोई बात नहीं होती पूरे 20 किलोमीटर तक बेचारियों का पैदल सफ़र कितना कष्टकारी रहा होगा। आजम की भैंसे बेचारी पैदल चलने के लिए हैं। मुआ चोरों को आजम साहब कि कोमल भैंसे ही मिलीं थीं। अरे चुरानी ही थी तो ऐसे गरीब की 7 क्या सात सौ चुरा ले जाते ना कोई पूछता ना पुलिस रिपोर्ट लिखती। जब रिपोर्ट नहीं लिखती तो बरामदगी का सवाल ही नहीं। नाशुकरे चोर कितने क्रूर थे। अब हो सकता है कि उन्हें पता ना चला हो कि ये भैंसे वीवीआईपी हैं। आजम साहब को तबेले के सामने अपने नाम की नेम प्लेट लगवा देनी चाहिए थी। नेम प्लेट होती तो शायद भैंसे चोरी ना जाती। उन्हें अपने नहीं अपनी पियारी भैंसों के लिए अब तो नेम प्लेट लगवा ही देनी चाहिए ताकि उनकी भैंसों को कष्ट ना हो। उनकी भैंसे मजे में रहेंगी तो पुलिस-प्रशासन-शासन भी चैन से रह पायेगा।