लोकसभा में किसी भी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में सरकार बनाने के लिए नए साथियों की तलाश में सीबीआइ अहम भूमिका अदा कर सकती है। मायावती, ममता बनर्जी और नवीन पटनायक जैसे तीन बड़े क्षत्रप सीबीआइ के निशाने पर हैं और उनके लिए सत्ताधारी दल के साथ टकराव आसान नहीं होगा।
ममता बनर्जी की तमाम कोशिशों के बावजूद शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सारधा चिटफंड घोटाले की जांच की जिम्मेदारी सीबीआइ को सौंप दी है। इस चिटफंड घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेता फंसे हुए हैं और जांच की आंच मुख्यमंत्री तक पहुंचने की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। इस घोटाले का दायरा पश्चिम बंगाल की सीमा से बाहर असम और ओडिशा तक फैला हुआ है।
अब तक घोटाले की जांच बीजू जनता दल के नेताओं तक भले ही नहीं पहुंची हो, लेकिन सीबीआइ जांच की स्थिति में इसकी सारी परते खुल सकती है। जाहिर है ममता और नवीन पटनायक के लिए घोटाले की आंच से अपने कुनबे को सुरक्षित बचाने की मजबूरी होगी। मोदी के खिलाफ ममता बनर्जी की तमाम तल्ख टिप्पणियों के बावजूद राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि केंद्र सरकार से सीधा टकराव लेना उनके लिए संभव नहीं होगा।
वैसे तो पिछले साल सुप्रीम कोर्ट से एफआइआर निरस्त होने के बाद मायावती एक तरह से सीबीआइ के चंगुल से बाहर निकल आई हैं, लेकिन आय से अधिक संपत्ति मामले को दोबारा खोलने की सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका नए सिरे से उनकी मुश्किलें बढ़ा सकती है। इस मामले पर 15 जुलाई को सुनवाई होनी है। फिलहाल सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट को एफआइआर निरस्त होने के बाद पुराने सुबूतों और बयानों के अप्रासंगिक होने का तर्क दिया, लेकिन अदालत के आदेश के बाद उसके पास जांच के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। ध्यान देने की बात है कि सीबीआइ सुप्रीम कोर्ट में लगातार मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के पुख्ता सुबूत होने और इस सिलसिले में चार्जशीट तैयार होने का दावा करती रही है।