मैंने आम चुनावो की अपनी पार्टी की हार को अपने मन में अपमानित हुए एक क्षण के रूप में बैठा लिया है और मन में उसका बदला लेने की ठान ली है और चाणक्य की तरह अपनी चोटी में नहीं मन में गिथान बांध ली है। जब तक अपनी पार्टी का मान-सम्मान पुनः ना लौट आये तब तक मेरा संघर्ष जारी रहेगा चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी दाव पर क्यों ना लगाना पड़े।