रक्षावन्धन (श्रावणी पूर्णिमा -2014) के शुभ मुहूर्त

पंडित दयानन्द शास्त्री
पंडित दयानन्द शास्त्री

रक्षावन्धन का पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसे श्रावणी पर्व भी कहते हैं यह त्यौहार भाई -बहिन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। भारतीय सनातन पद्धति के अनुसार रक्षा वन्धन का त्यौहार विश्वास ,समर्पण व् निष्ठा का त्यौहार है। रक्षा बन्धन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

अपराह्न का समय रक्षा बन्धन के लिये अधिक उपयुक्त माना जाता है जो कि हिन्दू समय गणना के अनुसार दोपहर के बाद का समय है। यदि अपराह्न का समय भद्रा आदि की वजह से उपयुक्त नहीं है तो प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना जाता है।
रक्षा वन्धन का अर्थ है -रक्षा के लिये बांधना,—अर्थात जब भाई को बहिन राखी बांधती है तो भाई का परम कर्तव्य बनता है बहिन की पग-पग पर रक्षा करना।
पूर्व काल में यह पर्व केवल भाई बहिन तक ही सीमित नहीं था अपितु विकट विषम परस्थिति आने पर किसी के आरोग्य की कामना के लिये यह रक्षा सूत्र किसी को भी बाँधा जाता रहा है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं-
”मयि सर्व मिदं प्रोक्तं सूत्रं मणि गवा इव ”
यह सूत्र विखरे हुए को एक सूत्र में बांधकर अविछिन्नता दर्शाता है!
लेकिन मेरे पावन भारत वर्ष में इस पर्व को भाई बहिन के प्रेम व् रक्षा का पवित्र त्यौहार मानते हैं यह प्रेम भ्रातृ प्रेम को प्रगाढ़ बनाता है और बहिन के द्वारा पहनाया गया रक्षा सूत्र भाई बहिन के बीच प्रेम व् श्नेह का भाव प्रगट करता है और यही रक्षासूत्र भाई को प्रतिबद्ध कर देता है कि हर क्षण हर पल कैसी भी विकट परस्थिति क्यों न आये -भाई का परम कर्तव्य है विकट परस्थिति में बहिन की रक्षा करना। इस पर्व से जुड़ी अनेक कथाएं हमारे धर्म शास्त्रों में हैं।
इस वर्ष 10 अगस्त 2014 (रविवार) को रक्षावन्धन का पर्व मनाया जाएगा लेकिन इस दिन भद्रा का योग भी बन रहा है।
भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सभी शुभ कार्यों के लिए भद्रा का त्याग किया जाना चाहिये। सभी हिन्दू ग्रन्थ और पुराण, विशेषतः व्रतराज, भद्रा समाप्त होने के पश्चात रक्षा बन्धन विधि करने की सलाह देते हैं।
भद्रा पूर्णिमा तिथि के पूर्व-अर्ध भाग में व्याप्त रहती है। अतः भद्रा समाप्त होने के बाद ही रक्षा बन्धन किया जाना चाहिये। उत्तर भारत में ज्यादातर परिवारों में सुबह के समय रक्षा बन्धन किया जाता है जो कि भद्रा व्याप्त होने के कारण अशुभ समय भी हो सकता है। इसीलिये जब प्रातःकाल भद्रा व्याप्त हो तब भद्रा समाप्त होने तक रक्षा बन्धन नहीं किया जाना चाहिये।
9 अगस्त की प्रात: 3:35मिनट से 10 अगस्त की दोपहर 1:37 मिनट तक भद्रा काल रहेगा और धर्म शास्त्रों में भद्रा काल को शुभ कार्य में वर्जित माना गया है इसलिए 10 अगस्त को दोपहर बाद 1:37 बजे भद्रा काल समाप्त होने के बाद रात्रि 10:39 बजे तक रक्षा बंधन मनाना शुभ रहेगा।
इस वर्ष रक्षावन्धन(श्रावणी पूर्णिमा -2014 के )शुभ मुहूर्त—
01-दोपहर 1:37बजे से 3:00 बजे तक शुभ
02-शाम 7:00 बजे से 8:30 बजे तक शुभ
03-रात 8:30 बजे से 10:00 बजे तक अमृत
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(१) रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय = १३:३७ से २१:११
अवधि = ७ घण्टे ३३ मिनट
(२) रक्षा बन्धन के लिये अपराह्न का मुहूर्त = १३:४५ से १६:२३
अवधि = २ घण्टे ३७ मिनट
(३) रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त = १९:०१ से २१:११
अवधि = २ घण्टे १० मिनट
भद्रा पूँछ = १०:०७ से ११:०७
भद्रा मुख = ११:०७ से १२:४७
भद्रा अन्त समय = १३:३७
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ = १०/अगस्त/२०१४ को ०३:३६ बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त = १०/अगस्त/२०१४ को २३:३९
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री.(ज्योतिष वास्तु सलाहकार)
मोब. – 09024390067 एवं 09669290067
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