षिक्षा नीति में सम्मिलित हो भारतीय संस्कृति-देवनानी

वासुदेव देवनानी
वासुदेव देवनानी

जयपुर। षिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने कहा है कि भारतीय षिक्षा में मूलरूप से जो परिवर्तन आने चाहिए, वह अभी परिवर्तन की प्रतीक्षा में है। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में क से कबूतर, ख से खरगोष की बजाय क से कम्प्यूटर, ख से खगोल और ग से गणेष पढ़ाए जाने की षिक्षा विद्यार्थियों को दिए की जरूरत है। साथ ही भारतीय संस्कृति के बारे में संक्षेप में बालकों को कैसे ज्ञान दिया जाए, इस पर भी षिक्षा नीति में विचारे जाने की जरूरत है।
श्री देवनानी आज यहां भारती भवन में ‘शैक्षिक मंथन’ संस्थान द्वारा ‘शैक्षिक मंथन’ पत्रिका ‘बढ़ते भारत की कैसी हो षिक्षा नीति?’ विषेषांक के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देष की चीजोें को विद्यार्थी युगानुकूल और युग की चीजों को देषानुकूल यदि षिक्षा में कर पाते हैं, तभी उसकी सार्थकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय संस्कृति की षिक्षा के संस्कार विद्यालयो में कैसे दिए जाएं, इस पर गंभीरता से विचारा जाए।
षिक्षा राज्यमंत्री ने कहा कि जरूरी यह है कि षिक्षा में इस बात पर अधिक विचारा जाए कि देष के बच्चों को कैसा बनाया जाए, उन्हें कैसे इस प्रकार की षिक्षा दी जाए कि वे भविष्य में देष के अच्दे नागरिक बन सकें। उन्होंने मैकाले की षिक्षा के विकल्प पर भी विचारे जाने और उसका प्रारूप तैयार करने के लिए भी कार्य किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अच्छे संस्कार प्रदान कर अच्छे नागरिक बनाने की षिक्षा विद्यालय दें। इसके लिए यदि षिक्षा नियामक आयोग भी बनाया जाता है तो उस पर भी विचार किए जाने की जरूरत है। उन्होंने षिक्षा के साथ पढ़ाने वाले तंत्र पर भी गंभीरता से विचार किए जाने पर जोर दिया।
श्री देवनानी ने कहा कि इस समय देष की षिक्षा में शैक्षिक वातावरण का अभाव दिखता है, इस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि षिक्षा का मूल भाव बच्चों की प्रतिभा को निखारकर आगे लाना होना चाहिए। इस समय की जो षिक्षा है वह व्यक्ति निर्माण की नहीं, व्यक्ति को आजीविका के लिए तैयार करने की दी जाती है। जरूरी यह है कि षिक्षा बालक के मन, शरीर और बुद्धि को विकसित करने वाली हो। इन सबको पाठ्यक्रम में समावेषित करेंगे तभी षिक्षा की सही मायने में सार्थकता होगी।
इस मौके पर मुख्य वक्तत्व देते हुए श्री हनुमानसिंह राठौड़ ने कहा कि कैसी की जगह कैसे हो भारत की षिक्षा नीति, इस पर हमें विचारना चाहिए। उन्होंने कहा कि वास्तव में देष की धारा कैसे बदले, इस पर षिक्षा में गंभीरता से विचार हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि पष्मि का जो भी है, वह आधुनिक नहीं है। वर्तमान परिस्थिति में गुरूकुल का वातावरण प्रत्येक विद्यालय में यदि हम दे पाते हैं, तो वह आधुनिकता है। इस पर षिक्षा नीति में विचारे जाने की जरूरत है। उन्होंने षिक्षा के उद्देष्य पर विचारे जाने पर जोर देते हुए कहा कि विडम्बना यह है कि षिक्षा को पेट भरने का साधान बना दिया गया है, इसी से षिक्षा अनैतिक हो गई है। उन्हांेने साफ कहा कि भोगवाद से आगे बढेंगे तो उसे परिणाम भुगतने ही होंगे।
‘षैक्षिक मंथन’ विषेषांक की रूपरेखा पर चर्चा करते हुए राजस्थान माध्यमिक षिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और षिक्षाविद् प्रो. विमलप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि यही वह वक्त है जब देष की षिक्षा नीति पर वृहद स्तर पर चिंतन किए जाने की जरूरत है। उन्होंने पत्रिका में सम्मिलित विषयों की चर्चा करते हुए कहा कि बढते भारत में षिक्षा की आवष्यकता और तदनुरूप षिक्षा के लिए सभी स्तरों पर विचारे जाने की जरूरत है। इस अवसर पर ‘षैक्षिक मंथन’ पत्रिका के संपादक प्रो. संतोष पांडे ने षिक्षा नीति कैसी हो, इस पर विषय प्रवर्तन करते हुए भारतीय षिक्षा के संबंध में विचार रखे। सभी का आभार श्री महेन्द्रकपूर ने जताया। कार्यक्रमें बड़ी संख्या में षिक्षाविदों ने भाग लिया।

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