
कथावाचक ने नशे के दुष्प्रभाव बताते हुए कहा कि नशा नाश का मार्ग है। संभ्रात लोग भौतिकता की चकाचौंध में फंसकर नशे के आदी हो गए हैं। नशे से घर, परिवार, समाज और राष्ट्र बर्बाद हो रहा है। प्रत्येक मनुष्य को शुद्ध और शाकाहारी वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कथाएं जीवन-यापन का मार्गदर्शन है। सत्संग जीवन को संवार देता है। संतों व शास्त्रों की आज्ञा का पालन करने से सफलता अवश्य मिलती है। संत ने पूतना वध का उदाहरण देते हुए समझाया कि परमात्मा दयालु है। जहर देने वाले को भी मोक्ष प्रदान करते हैं। सेवा में ही सच्चा सुख है। उन्होंने कहा कि परमात्मा ह्रदय में विराजित है। मनुष्य मोह-माया में उलझकर परमात्मा की तलाश में भटक रहा है। परमात्मा खोजने से नहीं, उनकी भक्ति में खो जाने से मिलता है। नियमित सत्संग करें। कथा, प्रवचन व भजन श्रवण करें। जय-जय राधारमण हरि बोल.., जिस हाल में रहो राधारमण कहो.., म्हारो बेड़ो पार लगा दीजो द्वारका रा नाथ… भजन पर श्रोता झूम उठे। कथा में संत केवलराम रामस्नेही व महंत फतेहगिरी भी शामिल हुए। मंच संचालन सुमित सारस्वत ने किया। उपसभापति सुनील मूंदड़ा व विनीता मूंदड़ा ने महाराजश्री द्वारा संचालित गुरुकुल आश्रम में एक विद्यार्थी की सेवा के लिए 11 हजार रुपए का आर्थिक सहयोग दिया। आयोजक कैलाशचंद राठी, छात्रसंघ अध्यक्ष आदित्य मूंदड़ा, नरेश मित्तल, पी.पी. गुप्ता, रुद्रदेव झंवर, बालकिशन राठी, कैलाश मूंदड़ा, जयनारायण हेड़ा, मुकुटबिहारी गोयल, जीआर जलवानिया, राजेंद्र शर्मा, शिवचंद लढ़ा, रामस्वरूप ईनाणी, नोरतमल माहेश्वरी, गणपतलाल शर्मा, प्रेमशंकर मूंदड़ा, घनश्याम बल्दुआ, रामेश्वर भूतड़ा, सुरेंद्र सोमानी, चांदमल राठी, कन्हैयालाल राठी, रामनिवास राठी, अमन मूंदड़ा ने महाराजश्री का स्वागत कर आशीर्वाद लिया।