कहते है जंगल का राजा शेर होता है और उसकी दहाड़ उसका हथियार। साल 2012 के जुलाई माह में भी राजनिति के अखाड़े में एक ऐसा ही शेर बाहार निकला था, दहाडा भी था और उसकी दहाड़ ने दबंगाई राजनेताओ के भी होश उड़ाए थे, लेकिन हालातो ने ऐसा जख्म दिया की वो शेर, अब दहाड़ के हथियार को उठा नहीं सकता क्योकि जिसने वो हथियार दिया भला उसपर ही वार कैसे करे ? हुंकार तो भरी थी अपनों के लिए लेकिन सत्ता क्या बदली रंग ही बदल गया । ना तो जिले की वो चीख सुनाई पड़ती है और ना ही जनता के हित में वो दहाड़ सुनाई देती है । 2012 में सावन का वो महीना जब सभी भगवान शंकर को मनाने में लगे थे और ब्यावर का शंकर कांग्रेस सरकार से रूठा हुआ था। जिसने अपनी तांडव लीला रचकर विपक्षी सरकार की नाक में दम भर दिया था । त्रिनेत्र खोल कांग्रेस सरकार की नींद उड़ा दी थी, लेकिन क्या मिला ? आश्वाशन की डेकची में उबलते बुलबुले । अब तो सरकार भी है और वजीर भी, लेकिन ना जाने क्यों ये बदकिस्मती ब्यावर की ही है जो उसके साथ छलावा होता रहा है। पहले जिले का हल्ला और अब तो जिले का शब्द भी गले पर नहीं आ रहा । आखिर क्या जुर्म किया है ब्यावर ने..? क्या 1200 करोड राजस्व देकर ब्यावर गलती कर रहा है ? क्या प्रदेश का 13 वा बड़ा शहर होना जुर्म है ? लगता है ब्यावर सिर्फ राजनीति के दांव पेचो में ही उलझकर रह जाएगा। उम्मीद तो बाकी है क्योकि कार्यकाल भी बाकी है..और उम्मीद के अलावा चारा भी क्या है साथियो ?
कुलभूषण