योग पर बबाल क्यों ?

sohanpal singh
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आखिर योग पर बबल क्यों ? योग वह भी भारतीय पुरातन योग जिसके सूत्रधार तो महाऋषि पतंजलि कहे जाते हैं लेकिन चूँकि भारत में सभी कुछ धर्म से जोड़ने की प्रथा है उस कारन से भी अधार्मिक कृत्य भी धार्मिक बना दिए जाते इस लिए योग को धर्म से नत्थी न किया जय तो फिर धर्म के नाम पर रोजी रोटी चलाने वाले तो बेरोजगार ही हो जायेंगे ! इसलिए ऐसे कुतर्क अगर सरकारी स्तर पर न किये जायं तो हिन्दू वादी सरकार की छवि कैसे स्थापित होगी ? आयुष मंत्रालय की ओर योग दिवस पर जारी बुकलेट में भगवन शिव को योग का प्रणेता कहा गया है ! जब की सरकारी योग गुरु वर्षों से यहस्थापित करने में लगे हुए हैं की योग के प्रणेता महाऋषि पतंजलि थे ! भगण शिव का तो निवास ही हिमालय था जहां रह कर वे ध्यान मुद्रा में लीं रहते थे ! ध्यान मुद्रा भी योग के अष्ठांगयोग का ही एक भाग ही है! अष्ठांगयोग आठ क्रियायों का योग है ! ( 1) यम (2) नियम (3) आसन (4) प्राणायम (5)प्रत्याहार (6) धारणा (7) ध्यान और (8)समाधि ! 21 जून को जिस आयोजन को योग दिवस कहा जा रहा है वह वह केवल आसान की क्रियाओं का प्रदर्शन मात्र है आसन की सभी क्रियाओं में केवल शरीर को प्राण वायु से भरपूर करने के उपाय होते हैं ! इसीलिए अनुलोम विलोम क्रिया का पालन किया जाता आसन के प्रत्येक सोपान में प्राणवायु (आक्सीजन )को स्वास् के द्वारा फेफड़ों लेने और स्वास् छोड़ने की प्रक्रिया का निरंतर पालन करना होता है । इस लिए यह केवल स्कूल कालेज में होने वाली पी टी क्रिया के अतिरिक्त कुछ नहीं है ! हमारे फौजी जवान और अधिकारी प्रातः चार बजे उठ कर जो पी टी करते है वह सब भी इशी आसान पद्धति का मॉडिफाइड रूप ही तो है जब वह दौड़ लगते है तो स्वाभाविक रूप से उनकी स्वास् भी तेज चलने लगती है जिस कारण से अधिक प्राण वायु उनके फेफड़ों जाती है । लेकीन योग के नाम पर जिस प्रकार धार्मिक उन्माद फैलाया जा रहा है वह उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि योग केवल आसन नही है योग की आठों विधा मिल कर सम्पूर्ण योग बनती हैं !
सरकारी स्तर पर योग को भगवान् शिव से जोड़ने मात्र से ही इस गंभीर जनकल्याण की योजना का हिन्दुत्विकरण करने की मंशा साफ़ झलकती है की इस बहाने भी ध्रुवीकरण किया जा सकता है ? वैसे भी बाबा राम देव जिस अष्ठांगयोग की बात करते हैं वह भी अधूरा सत्य ही बताते क्योंकि अष्ठांगयोग का आठवाँ सोपान समाधि है जो मनुष्य जीवन का मुक्ति मार्ग का द्वार खोलता हैं यानि ईश्वर से मिलान का रास्ता है ! और ईश्वर से मिलन में किसी एजेंट की जरूरत नहीं पड़ती और न ही किसी प्रधान सेवक या साधारण सेवक की जरूरत पड़ती है ।

अब अगर ऐसी जन कल्याण की योजना का कोई विरोध करता है तो वह इस लिए विरोध नहीं कर रहा है वह इसका विरोधी है ! केवल सरकारी स्तर से इसमें हिंदुत्व के घाल मेल के कारण ही विरोध कर रहा है ! क्योंकि नरेंद्र मोदी आज के समय में देश दुनिया के सबसे बड़े इवेंट मैनेजमेंट के ज्ञाता बन कर उभरे हैँ इस लिए वह छोटी से छोटी घटना को अपने साथ जोड़ने में समर्थ है ?इसलिए योग को भी अपने साथ जोड़ने का यत्न करने में मसगूल हैं जब की आधुनिक समय में बाबा राम देव ही इसके प्रणेता हैं और योग दिवस अथवा भारत में योग को फैलाने का सारा श्रेय उनको ही जाना चाहिए लेकिन अपनी सनक से वशीभूत मोदी योग का क्रेडिट इसी प्रकार लेना चाहते है जैसा कि नारद को स्वयंवर में शामिल होने के लिए श्री विष्णु जी का स्वरुप माँगना पड़ा था ? अन्यथा योग के प्रचार प्रसार को योगियों के लिए ही रहने दो तो उचित ही होगा क्योंकि कम यह नेताओं या प्रधान सेवक का नहीं है देस में सेवकों को करने के लिए बहुत कुछ है उसी पर ध्यान देना चाहिए? s.p.singh /meerut

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