आजकल कल कालेघोड़े की नाल का धंधा भी खूब चलरहा है, कुछ कालेघोड़े तो सड़क पर टहलाते हुए नज़र आते है! एक ओर जँहा इन घोड़ों को बार बार इंसान की असहनीय क्रूरता का शिकार होना पड़ता है, वंही दूसरी ओर वास्तु पीड़ित व्यक्ति भी ठगी का शिकार हो जाता है।वैज्ञानिक तथ्य यह है कि जो घोडा तेज़ कदमताल के साथ मैदान या कच्चे धरातल पर दौड़ता है उसकी नाल के सिरों पर चुम्बकीय ध्रुव प्रेरित हो जाते है जिनकी तीव्रता नाल के धातु पर निर्भर करती है। एक समय था जब नाल हेतु फौलाद का लोहा/कोबाल्टनिकल मिश्रण प्रयुक्त हुआ करता था,परंतु आजकल तो आर.सी.सी. में प्रयुक्त सरिये के स्क्रेप से नाल बनाई जा रही है। जबकि ऋणात्मक ऊर्जा प्रवेश निषेध व शनि उपाय हेतु घरों के मुख्यद्वार पर स्वतः ही घोड़े के पैर से निकली हुई नाल लगाने की सलाह हमारे वास्तुशास्त्री/ज्योतिषगंण देते है। साधारण सरिये से बनी व पशुक्रूरता से परिपूर्ण नाल तो स्वमं ऋणात्मक ऊर्जा का उत्सर्जक साबित होती है।आजकल लव बर्ड्स,स्टार कछुए पालने व फिश एक्वेरियम का भी प्रचलन वास्तु दोष निवारण के नाम से खूब चल गया है,जबकि वास्तुशास्त्र में पशु पक्षियों को कैद करने का कंही भी उल्लेख नहीं है।फेंगशुई में केवल इनकी प्रतिमा या चित्रों को यथास्थान लगाने का उल्लेख अवश्य है।वर्तमान में कई बिल्डर/रियल स्टेट एजेंट भी लोगों को उक्त पशु पक्षियों /प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर अपने बिगड़े हुए वास्तुयुक्त मकान/फ्लैट्स को बेचने हेतु वास्तु विरोधी सलाह प्रदान करने में नहीं चूकते है।
-इंजी.शैलेन्द्र माथुर(बी.टेक,वास्तुविशेषज्ञ);अलखनंदा कॉलोनी,वैशाली नगर,अजमेर।