ललित मोदी का यह जीवट हे। हिम्मत ही हे। कि वह अपने राजनेताओं के साथ सम्बन्धो का बेबाकी के साथ खुलासा दर खुलासा करने पर तुले हे। राजनीति में आज तक ऐसा नही हुआ। कोई भी आर्थिक अपराधी हो..। क्रिमनल हो..। अथवा कोई “अनैतिक हस्ती” हो..। अपने आकाओ के साथ रिश्ते यो उजागर नही करता!
ललित मोदी वंशानुगत सफल उद्दोगपति रहे हे। पढ़े लिखे हे। राजनेतिक गलियारों की “गलियों” की बारीकियो से अच्छे से रूबरू रहे होंगे। “व्यवसाई” राजनेताओं की कमजोरियों को भी खूब जानते होंगे। यह भी जानते हे कि हमाम में वे सब नंगे हे। उसी का उन्होंने जम कर दोहन किया हे। IPL उनकी इसी शातिर दिमाग की ही तो उपज हे!
IPL में धन बरसता हे। शवाब की बयार बहती हे। और भी ना जाने क्या क्या होता होगा..। उसमे धन के लालचियो। शवाब के मतवालों को ललचाना बाए हाथ का खेल होता हे। अभी IPL का जलजला बना हुआ हे। ललित कोई नादान नही हे। वे मंझे हुए खिलाड़ी हे। उन्होंने तो शातिराना चाले चलना शुरू कर दिया हे। भले ही ईडी उन पर कितना ही शिकंजा कसे। वो शख्श यो ही जल्दी घबराने वाला नही दिखता। भारत में उनसे उपक्रत होने वाले नेताओं की सूचि लम्बी हे। उसमे आला अधिकारी भी हो सकते हे। मोदी इस जमात को नही छेड़ेंगे। वे इसके माने खूब समझते हे। कुछेक नेताओं की सरपरस्ती में अन्दर खाने ये आधिकारी ही जो काम आयेंगे।
राजनीति को जेबी, पारिवारिक, धन उगाऊ व मनमाने रूप से चलाने वाले नेताओ के लिए मोदी ने खतरे की घंटी बजा दी हे। अगर ऐसी ही अन्य “हस्तियों” ने ललित मोदी को अपना “आइकाँन” मान जीवटता दिखाने की ठान ली तो सोचो क्या होगा!! अभी तक तो आमतौर पर यह देखने को नही मिल रहा हे। लेकिन मोदी ने इस अदृश्य आवरण में सुई जितना सा छेद कर दिया हे। इसे फिर बड़ा होने में देर कितनी लगेगी।
दाउद जैसे और भी कई भारत के अपराधी हे। जिनके राजनितिक सम्बन्धो की बात जग जाहिर हे। लेकिन उनके नामो के खुलासे आज तक छुपे हुए हे। उनके आपसी हितो के चलते उस पर राख डाली हुई हे। उनके लिए अगर ललित उदाहरण बन गये? तो राख के उड़ते भला कितनी देर लगेगी? फिर तो आग ही लग जायेगी।
यह केवल मिथ बन गया हे कि पैसे के बिना राजनीति सम्भव नही। अगर ऐसा ही होता तो भारत का ही एक राज्य हे: त्रिपुरा। उसके मुख्यमन्त्री हे मानिक सरकार। वे लगातार मुख्यमन्त्री बन रहे हे। वे एक मिसाल हे। सादगी और ईमानदारी के लिए। आम जनता ऐसे ही राजनेताओं की मुरीद होती हे। भारत के इतिहास में ऐसे जननेता भी हुए हे। जिनके एक आव्हान पर लोग खड़े हो जाते।
अब तो आम लोगो की धारणा बनने लगी हे। वे नेताओं से जबरदस्त निराश हे। साल भर का कार्यकाल समझ में आया हो अथवा नही आया। फिर भी सवा सौ करोड़ लोगो में भी बहुसंख्यक लोगो का विश्वास अभी भी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी में बना हुआ दिखता हे। वे फक्कड़ हे। परिवारजन अभी भी अपने अपने कार्यो में लगे हुए हे। समय मिला हे। मोदी को इतिहास पुरुष बनकर दिखाने के लिए। इसके लिए चाहे उनको कितने ही कड़े कदम ही क्यों नही उठाने पड़े।
सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राज.)
