रास्ते में हमने विश्व प्रसिद्ध जामा मज्जीद भी देखी जहाँ सेकड़ों जायरीन जा और आ रहें थे | घूमते घूमते हम भारत की धरोहर विश्व प्रसिद्ध धरोहर लाल किला के विशाल प्रागण के अन्दर पहुचं गये | इसी लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री चाचा नेहरु सन 1947 से प्रति वर्ष 15 अगस्त को तिरगें को सलामी देकर देश को सम्बोधित करते आ रहें हैं | हमने लालकिले के हर हिस्से को ध्यानपूर्वक देखा | हमने इतना विशाल महल पहली बार देखा था | लाल किले के भीतर हम दोनों को मुग़ल काल की भव्य एवं कलात्मक विरासत की झलक देखने को मिली | हमने लाल किले के प्रतेयक हिस्से को देखा | लाल किले के लॉन में मैने कुछ लोगों से अलग अलग मुद्दों पर बात भी की जिनमें गुजराती, मराठी, मद्रासी, तेलगु, मलायली, बंगाली और आसामी भी थे | अधिकांक्ष लोगों के ह्रदय में नेहरूजी एवं अन्य राजनीतिज्ञों के प्रति आदर सम्मान था तो कुछ नेहरु के कश्मीर की निती से नाराज भी थे | विभिन्न प्रान्तों के लोगों को देख दिल बोल उठा भाई दिल्ली तो दिल्ली ही है और मेरा प्यारा भारत देश अनकेता मे एकता की अपने आप में एक अनोखी मिसाल है | लाल किले को देखते देखते दोपहर हो गई इसलिये यहीं पर खड़े हुए ठेलों से हमने हल्का फुल्का लंच खा लिया |
लाल किले के बाद हमने जन्तर-मंतर देखा | जन्तर मन्तर का निर्माण जयपुर के महाराजा ने कराया था | जन्तर मन्तर हमारे खगोलविज्ञान के ज्ञान का जीता जागता प्रमाण है | जन्तर मन्तर के आस-पास के इतिहास के महत्व की अनेकों इमारतो को देखते हुए हम हमायूं के मकबरे को भी देखने गये जहाँ हमारे जैसे ही अनेक दर्शक मोजूद थे | हमें पुराने किले को देखने का भी अवसर मिला, घूमते घामते शाम हो चली थी और हम थक भी गये थे इसलिये गेस्टहाउस लोट आये | अपने गेस्ट हाउस मे ही हमने डीनर लिया ओर फिर हम सभी पुरानी दिल्ली स्टेशन के आस-पास के विभिन्न बाजारों एवं व्यापारिक महत्त्व की गलियों को भी देखने निकल चले इन बाज़ारों और गलियों में प्रति दिन लाखों रुपयों का कारोबार होता है |
आज 4 जून रविवार है दिल्ली में आज आये हुए हमें तीन दिन हो गये हैं | हम दोनों सुबह जल्दी ही उठ गये | जल्दी से तय्यार होकर चाय नास्ता किया और उसके बाद तुरंत बस से यात्रा कर राष्ट्र पिता बापू की समाधी के दर्शन करने और बापू के श्रीचरणों में श्रदा सुमन अर्पित करने हेतु राजघाट पहुचें | बापू की समाधी पर नमन कर मैनें हमेशा देश हित मे काम करने और सभी धर्मो का आदर करने का भी प्रण किया | बापूजी की समाधी पर खड़े रहते समय मुझे महान वैज्ञानिक आईन्स्टीन का कथन याद आ गया कि” आने वाली पीढीयां शायद ही विश्वास करेगीं कि एक दुबले पतले हाड़ मासं के आदमी ने बिना कोई हथियारों, अहिंसावादी तरीकों एवं जन आन्दोलन के जरिये भारत को ब्रिटीश साम्राज्य से मुक्त करवा कर स्वतंत्र राष्ट्र बना दिया”, यहीँ पर मैनें दरिद्र नारयण की सेवा के लिए खुद के जीन को समर्पित करने का खुद से वादा भी किया | बापू की याद दिल में सजोंये भीगी आँखों के साथ हम दोनों कनाट पैलेस को देखने चले गये |
कनाट पैलेस का नज़ारा चांदनी चौक के नजारे से बिलकुल अलग किस्म का था | विशालकाय खम्बों (पिलर्स), चोडे चोडे बरामदे, उनमें फुटकर व्यापारियों की छोटी बड़ी दुकानें वहीं दूसरी तरफ नामी गिरामी फर्मों के शोरूमों , बैकों के भवन, नामी सिनेमाघर थे | ये सभी इमारतें आधुनिक महानगर की छवि प्रस्तुत कर रहे थे | कनाट पैलेस के समीप ही जन पथ का बाज़ार भी देखा जहाँ निम्न मध्यमवर्गीय एवं औसत दर्जे के लोग अपने सीमित बजट में अपनी जरूरत की वस्तुयें खरीद रहें थे | ह्म दोनों घूमते हुए संसद भवन के सामने पहुचं गये, इसी संसद भवन में हम भारतीयों दुवारा निर्वाचित सांसद देश की ज्वलंत समस्याओं पर विचार विमर्ष करते हैं और राष्ट्र तथा जनता के हितार्थ कल्याणकारी कानून भी बनाते हैं | इसी संसद के नेता भारत में प्रजातन्त्रवादी परम्पराये को मजबूत करने वाले चाचा नेहरु हैं | हमने राष्ट्रपति भवन, आकाशवाणी, सचिवालय भवन एवं अन्य भवनों को भी बाहर से ही देखा | आज अधिकांश देशवासियों के दिलों मे नामी गिरामी राज नेताओं यथा नेहरूजी, पटेल, कामराज, शास्त्रीजी, डांगे, कामथ, क्र्पलानीजी, अटलबिहारीजी, बाबासहिब अम्बेडकर, राजेन्द्र बाबु आदि के लिये आदर है एवं हम जैसे नवयुवक उनसे प्रेरणा भी लेते हैं | किन्तु कभीकभार मन में सवाल भी उठता है कि क्या भविष्य में भी देश के राजनीतिज्ञों के प्रति ऐसा ही मान सम्मान बना रहेगा ? दोपहर के बाद हम बस से यात्रा कर क़ुतुब मीनार को देखने गए |
कुतुब मीनार ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। इसकी ऊँचाई 72.5मीटर(237.86फीट) और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर मात्र 2.75मीटर (9.02फीट) हो जाता है। इसमें 379 सीढियाँ हैं। मीनार के चारों ओर बने आहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं | कहा जाता है कि अफ़गानिस्तानमें स्थित ‘जाम की मीनार’से प्रेरित हो एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से दिल्लीकेप्रथम मुस्लिम शासककुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार का निर्माण सन1193में आरम्भ करवाया था परन्तु वह केवल इसका आधार ही बनवा पाया। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिशने इसमें तीन मंजिलों को जोड़ा और सन 1368 मेंफीरोजशाह तुगलकने पाँचवीं और अन्तिम मंजिल बनवाई। मीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जिस परकुरानकी आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है। हम दोनों कुतुबमीनार की सबसे उपर वाली मंजिल तक गये तथा वहीं से हमने दिल्ली को भी देखा | आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व निर्मित अशोक स्तम्भ को भी देख मैं प्रफुल्लित हो उठा क्योंकि यह हमारे धातु विज्ञान के गहन ज्ञान की जीती जागती मिसाल है | अशोक स्तम्भ हमारा राष्ट्रीय चिन्ह भी है | रात्री को थकें हारें हम लालाजी के गेस्टहाउस पहुचें और भोजन कर सो गये, हमें खूब गहरी नींद आई |
अगले दिन सोमवार को हम अपनी दिल्ली की यात्रा पूरी कर रेल मार्ग से अपने शहर ब्यावर के लिए रवाना हो गये | विष्णु जयपुर पर ही उतर गया था |
मेरी सफल दिल्ली यात्रा से सकुशल ब्यावर वापसी पर मेरे माता-पिता ओर भाइयो के अलावा सभी परिजनों को आश्चर्य हुआ | मैं अपनी पहली सफल यात्रा से खुश था क्योंकि मैं अपने पिताजी के विश्वास पर खरा उतर पाया | सफल दिल्ली यात्रा के लिये प्रभु को कोटि कोटि धन्यवाद और नमन |
जे.के. गर्ग
ब्यावर—-8 जून 1961
सन्दर्भ—मेरा 8 जून 1961 का मूल लेख ( इसकी मूल कॉपी मेरे पास आज भी रक्खी हुई है ) एवं मेरे डायरी के पन्ने |
पुनश्चय:—- आज की दिल्ली और 54 (यानि सन 1961 ) वर्ष पूर्व की दिल्ली में जमीन आसमान का अंतर साफ़ झलकता है ,उस वक्त आबादी जहाँ 25-26 लाख थी वहीं आज दिल्ली की जनसंख्या 150 लाख से भी अधिक है | आज दिल्ली में मेट्रो है, अनगिनत फ्लाईओवरस हैं किन्तु दिल्ली का दिल कहीं खो गया है | 54 वर्षो पहले जनसाधारण अपने राज नेताओं को सुनने और उनको देखने के लिये ललायित और उत्सुक रहता था किन्तु आज के राजनीतिज्ञों के बारे मे उनके क्या विचार है यह सर्वविदित है | कहाँ है वो देश भक्ति का जज्बा ? कहाँ चला गया है विभन्न वर्गों के लोगों के बीच का भाई चारा और पारस्परिक स्नेह और विश्वास ?
डॉ जे के गर्ग
