मानवता अज़ान हो जाए

कंचन पाठक
कंचन पाठक
मुहब्बत हर दिलों का जश्न बनकर आम हो जाए
कि अबके ईद नेमत प्यार का सामान हो जाए !!

मुबारक चाँद सबको हो नया रौशन फज़ाएँ हैं
मिले परवाज़ ख्वाबों को यही दिल से दुआएँ हैं
मिटे नफ़रत अमन हीं दीन और ईमान हो जाए !
कि अबके ईद नेमत प्यार का सामान हो जाए !!

जकातें प्रेम से बँटती रिवाज़ें हैं वही अच्छी
अता दिल से नमाज़ें हों इबादत है वही सच्ची
बरक्कत से भरा हर दिन माह रमजान हो जाए !
कि अबके ईद नेमत प्यार का सामान हो जाए !!

महकता इश्क से हीं है भले संसार कोई हो
मोहब्बत जीत हीं जाती भले बेजार कोई हो
बन्धकर बाँहों में एक-दूसरे की जान हो जाएँ !
कि अबके ईद नेमत प्यार का सामान हो जाए !!

मिले जब प्यार की ईदी ख़ुशी होती मेहरबां है
नहीं जिसका कोई मोमिन खुदा उसका निगेहबां है
भुला रंजिश गले लग कर चलो इंसान हो जाएँ !
कि अबके ईद नेमत प्यार का सामान हो जाए !!

हैं जिसके इश्क में हम गुम वो दिलबर है बड़ा आला
ईशारे पर उसी के है बरसता मेहर का प्याला
कहीं रहमान-रहीम वही, कहीं पर राम हो जाए !
कि अबके ईद नेमत प्यार का सामान हो जाए !!

हो मज़हब आदमियत तो हैं खिलते प्यार वाले गुल
थाम लो हाथों को बढ़कर जाए शिकवे सभी पुछधुल
सुकुनों से भरी बस्ती ना कहीं बेजान हो जाए !
कि अबके ईद नेमत प्यार का सामान हो जाए !!

न बेमतलब बहाओ खून अज़र सौगात को समझो
धरम आतंक न सिखलाता फ़रक ज़ेहाद को समझो
हो कायम भाईचारा यूँ कि मानवता अज़ान हो जाए !
कि अबके ईद नेमत प्यार का सामान हो जाए !!
– कंचन पाठक.
कवियित्री, लेखिका

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