अरे भाई ये भी नहीं वो भी नहीं अफीमची भी नहीं पडोसी भी नहीं हिंदी चीनी भी नहीं तो कौन है फिर चीनी ? नहीं भाई नहीं हम तो बात कर रहे चीनी की वो चीनी जिसका उपयोग छोटा बड़ा आमिर गरीब सब कोई करते है सुबह शाम रातदिन यानि जिसकी माँ का नाम। गन्ना है ।। और गन्ने को किसान खेतो में रात दिन मेहनत करके पैदा करता है जिससे चीनी बनती है छोटे छोटे मिनी कार खानो सहित बड़े बड़े मीलों में बनती है ? चीनी बनने के बाद जो शीरा बचता है उससे स्प्रिट बनती है जिससे अंग्रेजी शराब बनाई जाती। है । और गन्ने को खोई जला कर आजकल बिजली भी बनाई जाती !.अब तो गजब होने जा रहा है शीरे से एथेनॉल बनाया जायेगा जो पेट्रोल में मिलाने की कानूनी मान्यता प्राप्त है अब यह आदमी पर निर्भर है चाहे तो गाड़ी (वाहन) को पिलाये या स्वयं पिए। रोकेगा कौन !
रुकेगा तो किसान अपनी आत्म हत्या करने से जो रातदिन मेहनत करके गन्ना पैदा करता है और चीनी मिल उसका भुगतान नहीं करते ? अगर एथेनॉल के लाभ में किसानो का हिस्सा या रॉयल्टी मिले ! चूँकि एथेनॉल उत्पाद शुल्क की सीमा के अंतर्गत आता है इस लिए किसानो को एथेनॉल के प्रॉफिट से रायल्टी मिलनी ही चाहिए ? उलटी सरकार चीनी मिलो को करोडो रूपये की सहायता करती है बैंक ओवर ड्राफ्ट देते है मिलो को लेकिन किसानों के हाथ कुछ नहीं लगाता उनके हाथ फिर भी खाली ही हैं ! और शायद किसान इसीलिए आत्म हत्या जैसे कदम उठाता है अब तक पूरे भारत में लाखों किसान आत्म हत्या कर चुके हैं ! शायद एथेनॉल के उत्पादन से किसानो के जीवन में भी बहार आ जाए !
सरकारी छिना झपटी और आदेशों अनुदेशों के कारण चीनी का यह हाल है की जिला मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश में चीनी से गुड़ बनाया जा रहा है जो गुड़ बारिस के मौसम में गीला हो जाता (बैठ जाता) उसमे और चीनी मिला कर नया गुड़ बनाया जा रहा है कारण यह है कि गुड़ 40 रूपये किलो और चीनी 30 रूपये किलो !
“अंधेर नागरी नागरी चौपट राजा !टके सेर भाजी टके सेर खाजा ” !!
गुरु जी के कहने से मैं तो लटक गया तू भी लटक जा !!
S..P.Singh Meerut