राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत ने कहा है कि संघ की गणवेश में बदलाव किया जा सकता है। यह सब परिस्थितियों पर निर्भर करता है। 12 और 13 सितम्बर को जयपुर में हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में लेखकों के सवालों का जवाब देते हुए भागवत ने कहा कि संघ में पेंट पहन कर आने पर कोई पाबंदी नहीं है। कुछ लोग आरंभ में शाखाओं में पेंट पहन कर आते भी हैं, लेकिन जब उन्हें योग, व्यायाम आदि में असुविधा होती है, तो अपने आप ही नेकर पहनने लग जाते हैं। उन्होंने कहा कि बदलाव परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि संघ की गणवेश में भी बदलाव की जरुरत हुई तो हम तैयार है। आज जो संघ की गणवेश और नीतियां हैं, इसी की वजह से युवाओं का आकर्षण बढ़ा है। आज सर्वाधिक युवा किसी संगठन के पास हैं, तो वह संघ ही है। उन्होंने कहा कि हिन्दूत्व एक दृष्टिकोण है, हिन्दू प्रगतिशील है। हम अपना मॉडल खड़ा कर रहे हैं और यही होना चाहिए। पश्चिम की संस्कृति नहीं। हमें आधुनिक तकनीक का उपयोग करना चाहिए, जो लोग नव बाजारवाद को हमारी संस्कृति पर खतरा मानते हैं, उन्हें घबराने की जरुरत नहीं है। भागवत ने योगी अरविंद का उदाहरण दिया, उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने योगी अरविंद को अंग्रेजियत के अनुरूप बनाने के लिए इंग्लैंड भेजा। अंग्रेजों को उम्मीद थी कि योगी अरविंद वापस भारत लौटेंगे, तो अपने ज्ञान का उपयोग अंग्रेज सरकार के अनुरूप करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इंग्लैंड से पढ़ लिखकर योगी अरविंद ने जैसे ही भारत की धरती पर पैर रखा, वैसे ही उन्होंने अपने कपड़ों की धूल को झिड़क दिया। यानी उन्होंने अंग्रेजियत के जो संस्कार लिए वो हाथों हाथ हटा दिए। ऐसा इसलिए संभव हुआ कि उन्होंने अपने भारतीय संस्कार नहीं छोड़े। उन्होंने कहा कि हमारा परिवार आत्मीयता से बंध कर काम करता है। यदि कोई परिवार आत्मीयता के साथ रह रहा है, तो उस पर नव बाजारवाद का असर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में विज्ञान का बोलबाला है। ऐसी स्थितियों में बच्चों पर ज्यादा रोक टोक नहीं करनी चाहिए।
शिक्षा में बदलाव जरूरी
भागवत ने कहा कि सब मानते हैं कि शिक्षा व्यवस्था में बदलाव होना चाहिए, लेकिन साहस कोई नहीं करता। शिक्षा ऐसी हो जो आत्म गौरव प्रदान करती हो। उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है। शिक्षा नैतिक विहीन हो चुकी है। यह अफसोसजनक है कि शिक्षक और शिष्य में पहले जैसे संबंध नहीं रहे हैं। शिक्षक और शिष्य के संबंधों के बारे में बताते हुए भागवत ने कहा कि एक बार मैं स्वयं बीमार पड़ गया। मेरे शिक्षकों को भी यह पता था कि हमारा परिवार समर्थ है। मेरे पिता वकील थे, जो अच्छे से अच्छा इलाज करवा सकते थे। पहले दिन शिक्षक मुझे देखने के लिए घर पर आए। लेकिन जब में अगले दिन भी स्कूल नहीं पहुंचा तो मेरे शिक्षक घर आए और अपने साथ बुखार मिटाने का काढ़ा लाए।
लेकिन अब ऐसे शिक्षक कहा मिलते हैं। भागवत ने स्वयं से जुड़ी एक ओर घटना बताई। उन्होंने बताया कि स्कूल में विलम्ब से आने वाले विद्यार्थियों को प्रार्थना स्थल से दूर ही खड़ा किया जाता था। एक दिन जब दो लड़के और दो लड़कियां विलम्ब से आए तो शिक्षकों ने देखा कि प्रार्थना के समय लड़के-लड़कियां जोर जोर से बातें कर रहे थे, इस पर नाराज शिक्षक प्रार्थना स्थल छोड़कर लड़के-लड़कियों के पास आए और दो-दो थप्पड़ लगाए। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अब ऐसा संभव है? ऐसा नहीं कि कोई शिक्षक अपने शिष्य के साथ द्वेषता रखता हो, यदि थप्पड़ भी मारे तो यह शिक्षक की अपने शिष्य के प्रति आत्मीयता थी।
जड़ों को पहचाने-वैद्य
राष्ट्रीय संगोष्ठी में संघ के प्रचार विभाग के प्रमुख मन मोहन वैद्य ने कहा कि युवाओं को अपनी संस्कृति की जड़ों को पहचानना चाहिए। हम कितने भी मॉर्डन हो जाएं, लेकिन अपनी सनातन संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को उपदेश पसंद नहीं है। हमारे आचरण से ही युवा पीढ़ी सिखती है। आज अभिभावकों को समय का इनवेस्ट करना होगा। जिस प्रकार हम अपने भविष्य के लिए इनवेस्ट करते हैं, ठीक उसी प्रकार अपने बच्चों केसाथ समय का इनवेस्ट करें। उन्होंने कहा कि भारत पर दुनिया को दिशा देने का दायित्व है। अमरीका में भारतीय मूल के ऐसे परिवार हैं, जो स्काईव पर भगवत गीता का पाठ एक साथ करते हैं। परिवार का एक सदस्य अमरीका में तो दूसरा भारत में है, लेकिन स्काईब के जरिए भगवत गीता का पाठ एक साथ करते हैं। मैं अभी ऑस्ट्रेलिया प्रवास पर था, वहां भी भारतीय मूल के परिवारों को चिंतित देखा। मेरा मानना है कि यदि हम हिन्दू संस्कृति के अनुरूप परिवार चलाते हैं, तो हमें चिंतित होने की जरुरत नहीं है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511