राजेन्द्र हाड़ाअन्नत चौदस के दिन गणपति विसर्जन के लिए सुभाष उद्यान में नया बनाया गया कुंड छोटा पड़ गया। क्या धार्मिकता थी। शहर के कोने-कोने से सुभाष उद्यान आ रहे हर तरह के वाहनों में कुछेक बातें समान थी। कान फोड़ू संगीत चीखते डीजे थे। गणेश जी के नाम पर गुलाल उड़ाते नाचते-गाते झुंड थे। विसर्जन भले गणपति का था परंतु नजारा शिवजी की बारात से कम नहीं था। शिव बाराती भांग के नशे में तो गणपति बाराती सुरापान से सराबोर। ऐसी धार्मिक बयार बह रही थी मानों विसर्जन मंे शामिल सभी बहुएं अपने जेठ-जेठानी, देवर-देवरानी, सास-ससुर से बहुत ही मधुर संबंध वाली होगी। दिन रात उनकी सेवा में जुटी रहती होंगी। उन बहुओं और उनके साथ नाच रहे देवरों से ज्यादा शायद ही कोई सुखी होगा। उन बहुओं से ठिठोली करती ननदों के लिए तो होली ही आ गई थी। कई ननदों को यह दिन अपने आधुनिक कजन के साथ प्राचीन काल के मदन उत्सव जैसा महसूस हुआ। लम्बा चौड़ा सुभाष उद्यान, तेज हवाओं वाली बारादरी पर आनासागरी किनारा, गुलाल से रंगे-पुते चेहरे, चहुं ओर मस्ती ही मस्ती। आनंदपाल सिंह को ढूंढने के बहाने में जुटी पुलिस को फुर्सत ही नहीं थी कि गणेशोत्सव के दस दिनों में देर रात तक तेज आवाज में बज रहे अश्लील गानों को रोकने की कोशिश की जाए। सुप्रीम कोर्ट के रात दस बजे बाद तेज आवाज पर गाने बजाने पर पाबंदी के आदेश का पालन ना पुलिस कराना चाहती है और ना ही अजमेर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी। जुलूस में बगैर हेलमेट वाले दोपहिया वाहन दौड़ाते रहे। गणेशजी के साथ वाहनों पर बैठे गणेश भक्तों के लिए राह चल रहे लोगों खासकर लड़कियों पर गुलाल का स्प्रे चलाने और उन्हें ऐसा करने के लिए उकसाने वाले उनके साथी ऐसा आनंद महसूस कर रहे थे मानों वे गणेश जी की किसी शिक्षा का पालन कर रहे थे। चंदे के पैसे से गणेश प्रतिमा खरीदी, पास के बिजली खंभे से बिजली चोरी कर ली। आम सड़क या गली में टेंट लगा लिया, उसमें डीजे लगा दिया। फिर ऐसे ही एक वाहन का जुगाड़ किया। दारू पी, गुलाल उड़ाई और ले जाकर कुण्ड में प्रतिमा विसर्जित कर दी। यह भी भूल गए कि बाकी गणेश प्रतिमाएं उनके पैरों तले रौंदी जा रही है। गली, चौराहे, सड़क पर इस अस्थायी अतिक्रमण और उनमें बिजली की चोरी रोकने की फुर्सत नगर निगम और बिजली निगम के कारिंदों को नहीं थी। आस्था का ऐसा मखौल देखना अब रोजमर्रा की बात हो गई है। मुसलमानों ने तो एक दिन बकरा काटा परंतु गणेशोत्सव आयोजकों ने रोज ही मुर्गे काटे। जानते हैं उनके मुर्गों को। शाम की आरती किस से करवानी है, इसके लिए जिस वीआईपी को चुना जाता उसे मुर्गा नाम दिया गया। काटने का मतलब था आरती में कम से कम पांच सौ रूपए चढ़ावा और चंदा अलग से। थोड़े दिनों में ही नवरात्र शुरू होने वाले हैं। माता जी-भैंरू जी के भक्त प्रसाद और मुर्गों की तलाश में जुट गए हैं। इतिहास फिर दोहराना भी तो है। -राजेन्द्र हाड़ा 09829270160