जब की नियमो में बच्चों को सप्ताह में 4 दिन दाल देना अनिवार्य हे । क्या इतनी महंगी दालों के भाव में यह संभव हे । जबकि पोषाहार को बनाने में मसाला, ईंधन, व अन्य खर्चे भी होते हे ।
3.50 रूपये में क्या बच्चों में होने वाले कुपोषण पे लगाम लगा पाएंगे ।
क्या सरकार के मंत्री यह बताएँगे की आज 3.50 रूपये में एक बच्चे के पेट भरने लायक क्या मिलता हे । एक चाय भी 6 रूपये में मिलती हे । फिर कैसे यह स्कुलो में पोषाहार खिला रहे हे कोई एजेंसी हे इसकी जांच करने के लिए ?
बच्चों को मिड डे मिल के पोषाहार की समीक्षा होनी चाहिए ।
हेमेन्द्र सोनी BDN ब्यावर
