जानिए करवा चौथ 2015 का शुभ मुहूर्त

करवा चौथ का महत्त्व एवं पूजन विधान

पंडित दयानन्द शास्त्री
पंडित दयानन्द शास्त्री
हमारे देश में दांपत्य जीवन से जुड़ी परंपराएं व त्योहार आपसी प्रेम तथा सामंजस्य को बल देते हैं।
हमारे भारत देश में शादी सिर्फ दो इंसानों के बीच का संबंध नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन माना जाता है. जिस शादी से दो इंसानों और परिवारों की डोर बंधी हो उसे निभाने के लिए कई तरह के रीति-रिवाज होते ही हैं. उन्हीं में से एक है करवाचौथ।
करवा चौथ के दिन भारत की हर महिला दिनभर उपवास के बाद शाम को 18 साल की लड़की से लेकर 75 साल की महिला नई दुल्हन की तरह सजती-संवरती है। करवाचौथ के दिन एक खूबसूरत रिश्ता साल-दर-साल मजबूत होता है।
कुंवारी लड़कियां (कुछ संप्रदायों में सगाई के बाद) शिव की तरह के पति की चाहत में, तो शादीशुदा स्त्रियां अपनी पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं।

करवा चौथ 2015
करवा चौथ महिलाओं द्वारा पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में भी इस वर्ष 30अक्टूबर 2015 ( शुक्रवार) को मनाया जाएगा।
दरअसल करवा चौथ मन के मिलन का पर्व है. इस पर्व पर महिलाएं दिनभर निर्जल उपवास रखती हैं और चंद्रोदय में गणेश जी की पूजा-अर्चना के बाद अर्घ्य देकर व्रत तोड़ती हैं। व्रत तोड़ने से पूर्व चलनी में दीपक रखकर, उसकी ओट से पति की छवि को निहारने की परंपरा भी करवा चौथ पर्व की है। ।
इस दिन बहुएं अपनी सास को चीनी के करवे, साड़ी व श्रृंगार सामग्री प्रदान करती हैं। पति की ओर से पत्‍‌नी को तोहफा देने का चलन भी इस त्यौहार में है।

जानिए वर्ष 2015 में करवा चौथ पूजा मूर्हूत—-
करवा चौथ मूर्हूत पंचांग आधारित वह सटीक समय होता है जिसके भीतर ही पूजा करनी होती है। अक्टूबर 30 को करवा चौथ पूजा के लिए पूरी अवधि एक घंटे और 18 मिनट है।

इस वर्ष करवा चौथ के दिन उज्जैन में चन्द्रोदय का समय—
करवा चौथ पूजा मुहूर्त = १७:३९ से १८:५६
अवधि = १ घण्टा १६ मिनट्स
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय = २०:३४
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = ३०/अक्टूबर/२०१५ को ०८:२४ बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त = ३१/अक्टूबर/२०१५ को ०६:२५ बजे

करवा चौथ 2015 को चंद्रोदय का समय—
करवा चौथ के दिन उज्जैन में चन्द्रोदय का समय शाम 08:24 होगा। करवा चौथ के दिन चंद्रमा उदय होने का समय के सभी महिलाओं के लिए बहुत महत्व का है क्योंकि वे अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन (बिना पानी के) व्रत रखती हैं। वे केवल उगते हुये पूरे चाँद को देखने के बाद ही पानी पी सकती हैं।

चाँद देखे बिना, यह माना जाता है कि व्रत अधूरा है और कोई महिला न कुछ भी खा सकती हैं और न पानी पी सकती हैं। करवा चौथ व्रत तभी पूरा माना जाता है जब महिला उगते हुये पूरे चाँद को छलनी में घी का दिया रखकर देखती है और चन्द्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से पानी पीती है।
सभी विवाहित (सुहागिन) महिलाओं के लिये करवा चौथ बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार हैं। यह एक दिन का त्यौहार प्रत्येक वर्ष मुख्यतः उत्तरी भारत की विवाहित (सुहागिन) महिलाओं द्वारा मनाया जाता हैँ। इस दिन विवाहित (सुहागिन) महिलाऍ पूरे दिन का उपवास रखती हैं जो जल्दी सुबह सूर्योदय के साथ शुरु होता है और देर शाम या कभी कभी देर रात को चन्द्रोदय के बाद खत्म होता हैं। वे अपने पति की सुरक्षित और लम्बी उम्र के लिये बिना पानी और बिना भोजन के पूरे दिन बहुत कठिन व्रत रखती हैं।

करवा चौथ का व्रत कार्तिक हिन्दू माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दौरान किया जाता है। अमांत पञ्चाङ्ग जिसका अनुसरण गुजरात, महाराष्ट्र, और दक्षिणी भारत में किया जाता है, के अनुसार करवा चौथ अश्विन माह में पड़ता है। हालाँकि यह केवल माह का नाम है जो इसे अलग-अलग करता है और सभी राज्यों में करवा चौथ एक ही दिन मनाया जाता है।
करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने का दिन होता है, एक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। विवाहित महिलाएँ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक किया जाता है।

करवा चौथ व्रत को रखने वाली स्त्रियों को प्रात:काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर इस व्रत को करना चाहिए। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान है। स्त्रियां चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर ही जल-भोजन ग्रहण करती हैं। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे- कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन व रुपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए।

करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण, जो कि अर्घ कहलाता है, किया जाता है। पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान में भी दिया जाता है।

करवा चौथ व्रत से विवाह में आ रही बाधाएं होती हैं दूर—-
सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए भी करवा चौथ का व्रत सबसे अच्छा उपाय है। सभी सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिए कामना करती हैं, वहीं कुंवारी लड़कियां भी सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए यह व्रत कर सकती हैं। किसी भी अविवाहित कन्या की इच्छा होती है कि उसका विवाह किसी सुयोग्य वर के साथ ही हो। इसी बात की चिंता अधिकांश कुंवारी कन्याओं को सदैव सताती रहती है। इसके लिए कई कन्याएं हमेशा भगवान से प्रार्थना भी करती हैं।
हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि इस खास दिन कुछ विशेष उपाय किए जाएं तो कुंवारी कन्याओं की सुयोग्य वर संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं। इसके साथ ही जो स्त्रियां विवाहित हैं उनके लिए यह दिन वैवाहिक जीवन को सुखद और समृद्ध बनाने वाला है।
जिन कन्याओं के विवाह में बाधाएं आ रही हैं, अच्छा वर प्राप्त नहीं हो रहा हो तो वे कन्याएं भी करवा चौथ का व्रत कर सकती हैं। इस दिन निराहार रहकर व्रत करके चद्रंमा का दर्शन करें और शिव-पार्वती का पूजन करें। इस प्रकार व्रत और पूजन करने के बाद निश्चित रूप से शुभ लक्षणों वाला वर मिलने के योग बनते हैं। यह व्रत नियमित रूप से हर साल किया जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत से कन्याओं की सुयोग्य वर से संबंधित चिंताएं समाप्त हो जाती है।
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जानिए करवा चौथ वृत का महत्व
एक बार, वीरवती नामक एक सुंदर राजकुमारी थी। वह अपने सात भाइयों की इकलोती प्यार बहन थी। । उसकी शादी हो गयी और अपने पहले करवा चौथ व्रत के दौरान अपने माता पिता के घर पर ही थी। उसने सुबह सूर्योदय से ही उपवास शुरू कर दिया था। उसने बहुत सफलतापूर्वक उसका पूरा दिन बिताया हालांकि शाम को उसने बेसब्री से चंद्रोदय के लिए इंतज़ार करना शुरू कर दिया क्योंकि वह गंभीर रूप से भूख और प्यास पीड़ित थी। क्योंकि यह उसका पहला करवा चौथ व्रत था,उसकी यह दयनीय दशा उसके भाईयों के लिये असहनीय थी क्योंकि वे सब उससे बहुत प्यार करते थे। उन्होंने उसे समझाने का बहुत कोशिश की कि वह बिना चॉद देखे खाना खा ले हालांकि उसने मना कर दिया। तब उन्होंने पीपल के पेड़ के शीर्ष पर एक दर्पण से चाँद की झूठी समानता बनायी और अपनी बहन से कहा कि चंद्रमा निकल आया। वह बहुत मासूम थी और उसने अपने भाइयों का अनुकरण किया। गलती से उसने झूठे चाँद को देखा, अर्घ्य देकर उसने अपना व्रत तोङ लिया। उसे अपने पति की मौत का संदेश मिला। उसने जोर जोर से रोना शुरु कर दिया उसकी भाभी ने उसे बताया कि उसने झूठे चांद को देखकर व्रत तोड़ दिया जो उसके भाईयों ने उसे दिखाया था, क्योकि उसके भाई उसे भूख और प्यास की हालत को देखकर बहुत संकट में थे। उसका दिल टूट गया और वह बहुत ज्यादा रोई। जल्द ही देवी शक्ति उसके सामने प्रकट हुई और उससे पूछा कि आप क्यों रो रहे हो? । उसने पूरी प्रक्रिया के बारे में बताया और फिर देवी द्वारा निर्देश दिया गया कि उसे पूरी भक्ति के उसकी करवा चौथ का व्रत दोहराना चाहिए। जल्द ही व्रत पूरा होने के बाद, यमराज को उसके पति के जीवन वापस करने के लिए मजबूर किया गया।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रीय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रीय पंडित परिषद्
मोब. 09669290067 (मध्य प्रदेश)
वॉटसअप नंबर —09039390067

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