डेजर्ट इवेन्ट कंपनी जयपुर के कुछ युवक-युवतियों को एक सप्ताह पूर्व सदर थाना ब्यावर की पुलिस द्वारा अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विनीत बंसल के इशारे पर एक रिसोर्ट से पीटा एक्ट लगाकर गिरफ्तार किये जाने के मामले की प्रारम्भिक जांच के बाद पुलिस और प्रशासन को यह साफ महसूस हो गया कि इस मामले में मासूम युवक-युवतियों के साथ ज्यादती हुई है और पुलिस की घटिया व गैरकानूनी कार्यवाही से युवतियों का करियर तथा भविष्य खराब हो रहा है। पुलिस अपना कसूर मानने से ठीक वैसे ही मुकर रही है जैसे चोर, चोरी करने के बाद करता है। हालांकि जब चोर को पकड़ लिया जाता है और रिमांड पर लेते हैं तो पुलिस वाले उनसे जो चाहे बात कबूल करा लेते है। लेकिन पुलिस वालों से कौन कबूल कराये? गलती मान लेने में कोई छोटे बाप का नहीं बन जाता। इंसान है, गलती से या लालच में या दुर्भावना से कोई ऐसा कदम उठा भी लिया गया है जिससे अब पता चल गया कि जरा-सी असावधानी किसी मासूम लडक़ी की जिन्दगी, भविष्य और करियर चौपट करने वाला है, तो क्या वो आपके गलती मान लेने से होने वाले नुकसान से भी ज्यादा है? अगर वो बेटी किसी पुलिस के अधिकारी की ही होती तो…
सरकार दें पीडि़तों को राहत
चारों तरफ से घिरी पुलिस अपने अधिकारियों को बचाने में जुट गई है। प्रदेश की भाजपा सरकार के गृहमंत्री भी सरकार की दूसरी वर्षगांठ पर बदनामी के छीटों से बचने के लिए पूरे मामले को सीआईडी (मानवाधिकार) शाखा को सौंपकर इस विस्फोटक मामले पर ठण्डे पानी की बाल्टी उंड़ेलने का ही काम कर रहे हैं। पीडि़ताओं व उनके अभिभावकों में इस बात पर गहरा रोष है कि एक सप्ताह बाद भी इस मामले के मुख्य आरोपी के खिलाफ अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। अच्छा होता यदि गृहमंत्री गुलाबचन्द कटारिया सरकार की दूसरी वर्षगांठ पर मासूम पीडि़त लड़कियों व उनके अभिभावकों को उनकी बेगुनाही का तोहफा देते और सरकार यह संदेश प्रदेश में देती कि वह संवेदनशील भी है, न्यायप्रिय भी और अपने लोगों की ज्यादती पर कठोर भी, तो निश्चित रूप से जनता को लग जाता कि हां भई अच्छे दिन तो आये हैं।
बंसल तो रिसोर्ट में गये ही नहीं
पुलिस द्वारा शहर के रानीबाग रिसोर्ट में ठहरी इवेन्ट कंपनी की 7 लड़कियों पर सेक्स रैकेट चलाने का आरोप लगाते हुए जिस तरह की प्राथमिकी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विनीत बंसल ने दर्ज कराई है, उस पर कई तरह के सवाल उठ चुके है। पुलिस की एफआईआर और रानीबाग रिसोर्ट के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज का कोई तालमेल नहीं है। पुलिस के बयान और घटना के समय में भी काफी अंतर है। पीडि़ताओं का कहना है कि वे रिसोर्ट के दो कमरों में ही ठहरी थी और कमरे में आने के 20 मिनट बाद ही नाश्ता भी नहीं किया कि पुलिस ने दरवाजा खटखटाकर खुलवाया। उस समय वे पूरे कमरे में तथा सामान्य हालत में थी और उनके कमरे में कोई भी पुरूष नहीं था। लेकिन विनीत बंसल ने प्राथमिकी में 7 लड़कियों के साथ 7 लडक़ों को एक-एक कमरे में आपत्तिजनक हालत में होने का मामला दर्ज कर पीटा एक्ट में कार्यवाही कर दी जो सरासर झूठी साबित हो रही है। हकीकत यह है कि स्वयं विनीत बंसल रात 1 बजकर 40 मिनट पर ब्यावर पहुंचे थे। जबकि लड़कियां रात 12 बजकर 05 मिनट पर ही सदर थाने पहुंच चुकी थी। ऐसे में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विनीत बंसल ने खुद प्राथमिकी दर्ज कराई कि उन्होंने होटल के कमरा नम्बर 102, 103, 104…202, 203, 204…एक-एक कर खुलवाये। अगर उन्होंने वो कमरे रात को 2 बजे खुलवाये भी तो उनमें लडक़े-लडक़ी कहां से आ गये जबकि वो तो थाने में बैठे थे और वहां महिला कांस्टेबल रामप्यारी उनसे (सीता समान लड़कियों से) रावण की बहिन की तरह सलूक कर रही थी।
गणगौर होटल में भी बुरा हुआ
इस मामले में पुलिस गणगौर होटल में लड़कियों के साथ बदतमीजी कर उन पर बुरी नजर डालने वालों को तो भूल ही गई है। उनमें से दो पुलिसकर्मियों को भी लाइन हाजिर करने के निर्देश तो दिए है लेकिन बाबरा पुलिस चौकी के प्रहलाद मीणा व बलबीर नामक पुलिसकर्मी तथा सरपंच व पत्रकार को अभी तक नामजद कर उनके खिलाफ भी मामला दर्ज नहीं किया गया है।
सीआईडी के मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष एचआर कुर्डी ने इस मामले में प्रसंज्ञान लेते हुए आईजी मालिनी अग्रवाल व एसपी नितिनदीप ब्लग्गन से सारी रिपोर्ट मांगी है। अब तक आरपीएस सतीश जांगिड़ ने जांच शुरू करते हुए रिसोर्ट के कैमरा फुटेज देखे और कर्मचारियों के बयान लिए। साथ ही मामले में आरोपी 5 पुलिसकर्मियों को नोटिस देकर उनसे जवाब मांगा है जिनमें दो सदर थाने के गवाह संजीव व विश्राम मीणा व एक पुलिस का बोगस ग्राहक पुलिसकर्मी जगवेन्द्र सिंह है।
पुलिस और सीआईडी दोनों एक ही विभाग की दो शाखाएं हैं। ऐसे में केवल जांच का नाम बदला जा रहा है। जानकारों का कहना है कि जब मामले को लम्बित करना हो तो सीआईडी शाखा को सौंप दो और बरसों तक भूल जाओ। अगर ऐसा होता है तो यह मासूम लड़कियों के साथ और बड़ा अन्याय होगा। ध्यान रहे दो-चार साल में उनके मां-बाप को उनके हाथ भी पीले करने है। अगर पुलिस ने इस मामले में एफआर लगाकर जल्दी से जल्दी इससे उन्हें मुक्त नहीं किया तो उनके लिए पेशियां भुगतना और घर बसाना मुश्किल हो जायेगा।
गृहमंत्री मिलने के लिए बुलाकर खुद चल दिए
पूरे मामले में गृहमंत्री गुलाबचन्द कटारिया द्वारा पीडि़ताओं से फोन पर बात करने के बाद उन्हें मिलने हेतु जयपुर बुलाने और खुद उदयपुर निकल जाने के बाद से अब तक पीडि़ताओं का दर्द नहीं सुनकर पूरे मामले को सीआईडी को सौंपने से लग रहा है कि वे भाजपा सरकार और महिला मुख्यमंत्री के राज्य में निर्दोष बालिकाओं के राज्य की पुलिस द्वारा चरित्र हनन के मामले पर लीपापोती में लग गये है। वैसे भी जब से कटारिया गृहमंत्री बने हैं, वे पुलिस की पीठ थपथपाने और उनसे शाबाशी बटोरने में ही लगे हुए है जबकि प्रदेश में अपराधों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। जेल से कैदी फरार हो रहे हैं और महिलाओं की आबरू खतरे में है।
विधायक को आवाज बुलन्द रखनी होगी
इस मामले में क्षेत्रीय विधायक शंकरसिंह रावत को अपना साहसिक कदम आगे बढ़ाते हुए पुलिस के आला अधिकारियों से सवाल करना चाहिए कि उन्होंने पूरे थाने व आरोपी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के निलम्बन की मांग की थी उसका क्या हुआ? क्या जिस मामले में पुलिस को पीटा एक्ट लगाने में 15 मिनट नहीं लगे उस मामले की जांच करने में पूरा सप्ताह भी कम पड़ रहा है? क्या यह स्पीड है हमारे प्रदेश की पुलिस के जांच की? देर से मिला न्याय भी किसी अन्याय से कम नहीं है। विधायक जी को मुख्यमंत्री के दरबार तक ब्यावर का दर्द सुनाना ही होगा। जनता बेसब्री से इंतजार कर रही है। शायद मैडम वसुंधरा महिला होने के नाते महिलाओं के दर्द को अच्छी तरह महसूस करे।
प्रस्तुति : रामप्रसाद कुमावत, दैनिक ‘निरन्तर’ ब्यावर।